लक्ष्मी कवच | लक्ष्मी कवच मंत्र | लक्ष्मी कवच हिंदी अर्थ सहित | लक्ष्मी कवच इन हिंदी | Laxmi Kavach in Hindi

लक्ष्मी कवच | लक्ष्मी कवच मंत्र | लक्ष्मी कवच हिंदी अर्थ सहित | लक्ष्मी कवच इन हिंदी | Laxmi Kavach in Hindi

लक्ष्मीर्मे चाग्रतः पातु कमला पातु पृष्ठतः ।
नारायणी शीर्षदेशे सर्वांगे श्रीस्वरूपिणी ।।

टीका – लक्ष्मी मेरे अग्रभाग की रक्षा करें, कमला मेरी पीठ की रक्षा करें, नारायणी मेरे मस्तक की और श्रीस्वरूपिणी देवी मेरे सर्वांग की रक्षा करें ।

रामपत्नी प्रत्यंगे तु सदावतु रमेश्वरी ।
विशालाक्षी योगमाया कौमारी चक्रिणी तथा ।।
जयदात्री धनदात्री पाशाक्षमालिनी शुभा ।
हरिप्रिया हरिरामा जयंकारी महोदरी ।।
कृष्णपरायणा देवी श्रीकृष्णमनमोहिनी ।
जयंकरी महारौद्री सिद्धिदात्री शुभंकरी ।।
सुखदा मोक्षदा देवी चित्रकूटनिवासिनी ।
भयं हरेत्सदा पायाद् भवबन्धाद्विमोचयेत् ।।

टीका – जो रामपत्नी और रामेश्वरी हैं वह विशाल नेत्र योगमाया लक्ष्मी मेरे सम्पूर्ण अंगों की रक्षा करें । वही कौमारी, चक्रधारिणी, जय देनेवाली, धनदात्री, पाशपक्षमालिनी, कल्याणी, हरि की प्रिया, हरिरामा, जय करने वाली, महोदरी, कृष्णपरायणा, श्रीकृष्णमोहिनी, महारौद्री, सिद्धिदेनेवाली, शुभ करनेवाली, सुख देनेवाली, मोक्ष देनेवाली और वही चित्रकूटनिवासिनी आदि नामों से प्रसिद्ध हैं। वही अनपायिनी लक्ष्मी देवी मेरा भय दूर करें, सर्वदा रक्षा करें और मेरा भवपाश छेदन करें ।

कवचन्तु महापुण्यं य: पठेत् भक्तिसंयुतः ।
त्रिसन्ध्यमेकसन्ध्यम्बा मुच्यते सर्वसंकटात् ।।

टीका – जो व्यक्ति भक्तियुक्त होकर प्रतिदिन तीनों सन्ध्याओं में व एक सन्ध्या में, इस परम पवित्र लक्ष्मी का पाठ करता है वह सम्पूर्ण संकट से छूट जाता है ।

पठनं कवचस्यास्य पुत्रधनविवर्द्धनम् ।
भीतिविनाशनञ्चैव त्रिषु लोकेषु कीर्त्तितम् ।।

टीका – इस कवच के पाठ करने से पुत्र और धनादि की वृद्धि होती है और भय दूर होता है, इसका माहात्म्य त्रिभुवन में प्रसिद्ध है ।

भूर्ज्जपत्रे समालिख्य रोचनाकुंकुमेन तु ।
धारणाद् गलदेशे च सर्वसिद्धिर्भविष्यति ।।

टीका – भोज पत्र पर रोचना और कुंकुम द्वारा इसको लिखकर कण्ठ में धारण करने से सर्वकामना सिद्ध होती है ।

अपुत्रो लभते पुत्रं धनार्थी लभते धनम् ।
मोक्षार्थी मोक्षमाप्नोति कवचस्य प्रसादतः ।।

टीका – इस कवच के प्रसाद से अपुत्री को पुत्र, धनार्थी को धन और मोक्षार्थी को मोक्ष प्राप्त होता है ।

गर्भिणीं लभते पुत्रं वन्ध्या च गर्भिणीभवेत् ।
धारयेद्यदि कण्ठे च अथवा वामबाहुके ।।

टीका – यदि स्त्रियाँ कण्ठ अथवा वाम बाहु में इस कवच को यथानियम धारण करें, तो गर्भवती उत्तम पुत्र को प्राप्त करती हैं और वन्ध्या (बाँझ) स्त्री भी गर्भवती होती है ।

यः पठेन्नियतो भक्त्या स एव विष्णुवद्भवेत् ।
मृत्युव्याधिभयं तस्य नास्ति किञ्चिन्महीतले ।।

टीका – जो व्यक्ति नित्य भक्तिसहित इस कवच का पाठ करते हैं, वह विष्णु की समानता को प्राप्त होते हैं और पृथ्वी में मृत्यु अथवा आधि-व्याधि-भय उनके ऊपर आक्रमण नहीं कर सकता ।

पठेद्वा पाठयेद्वापि शृणुयाच्छ्रावयेदपि ।
सर्वपापविमुक्तस्तु लभते परमां गतिम् ।।

टीका – जो पुरुष इस कवच को पढ़ते या पढ़ाते हैं, अथवा स्वयं सुनते या दूसरों को सुनाते हैं, वह सम्पूर्ण पापों से छूटकर परमगति को प्राप्त करते हैं ।

विपदि संकटे घोरे तथा च गहने बने ।
राजद्वारे च नौकायां तथा च रणमध्यतः ।
पठनाद्धारणादस्य जयमाप्नोति निश्चितम् ।।

टीका – इस कवच के पाठ करने से विपद्, घोर संकट, गहन वन, राजद्वार, नौका मार्ग, रणमध्य, कोई भी स्थान क्यों न हो, इसे विधानपूर्वक पाठ अथवा धारण करने से सर्वत्र जय प्राप्त हो सकती है ।

अपुत्री च तथा वन्ध्या त्रिपक्षं शृणुयादपि ।
सुपुत्रं लभते सा तु दीर्घायुष्कं यशस्विनम् ।।

टीका – बाँझ स्त्री, जिसके पुत्र उत्पन्न नहीं होता हो, वह यदि तीन पक्ष पर्यन्त विधानपूर्वक यह कवच सुने तो वह दीर्घायु, महायशस्वी, सुपुत्र प्राप्त कर सकती है, इसमें सन्देह नहीं ।

शृणुयाद्यः शुद्धबुद्धया द्वौ मासौ विप्रवक्रतः ।
सर्वान्कामानवाप्नोति सर्वबन्धाद्विमुच्यते ।।

टीका – जो पुरुष शुद्ध मन से दो महीने तक ब्राह्मण के मुख से यह कवच सुनता है, उसकी संपूर्ण मनोकामनायें पूर्ण होती हैं, और वह सर्व प्रकार के भवबन्धन से छूट जाता है ।

मृतवत्सा जीववत्सा त्रिगासं शृणुयाद्यदि ।
रोगी रोगाद्विमुच्येत पठनान्मासमध्यतः ।।

टीका – जिस स्त्री के पुत्र उत्पन्न होकर जीवित नहीं रहते हों, वह तीन महीने तक इस कवच को भक्तिसहित सुने, तो जीववत्सा होती है और रोगी पुरुष पाठ करे, तो एक महीने में रोग-मुक्त होता है ।

लिखित्वा भूर्जपत्रे च अथवा ताडपत्रके ।
स्थापयेन्नियतं गेहे नाग्निचौरभयं क्वचित् ।।

टीका – जो व्यक्ति भोजपत्र पर या ताड़पत्र पर इस कवच को लिखकर घर में स्थापन करे, तो उसको अग्नि वा चोर आदि का भय नहीं रहता |

शृणुयाद्धारयेद्वापि पठेद्वा पाठयेदपि ।
यः पुमान्सततं तस्मिन्प्रसन्ना सर्वदेवताः ।।

टीका – जो पुरुष प्रतिदिन यह कवच सुनता, पढ़ता अथवा दूसरे को पढ़ाता है, या इसको धारण करता है, उस पर देवतागण सदा सन्तुष्ट रहते हैं ।

बहुना किमिहोक्तेन सर्वजीवेश्वरेश्वरी ।
आद्या शक्तिः सदा लक्ष्मीर्भक्तानुग्रहकारिणी ।।
धारके पाठके चैव निश्चलानिवसेद् ध्रुवम् ।।

टीका – मैं अधिक और क्या कहूँ? जो पुरुष इस कवच को पाठ करते अथवा धारण करते हैं, तो सर्वजीवेश्वरी भक्तों पर अनुग्रह करनेवाली आद्या शक्ति लक्ष्मी देवी अचल होकर उसमें वास करती हैं, इसमें सन्देह नहीं ।

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