Laxmi Shlok
|| लक्ष्मी श्लोक ||
बालार्क-ध्युतिमिंदु-खंड-विलसत्-कोटीर-हारोज्ज्वलाम्,
रत्नाकल्प-विभूषितां कुच-नतां शाले: करर्मञ्जरीम् ।
पद्धयम कौस्तुभ-रत्नमप्यविरतं संम्विभ्रतीं सस्मिताम् ।
फुलाम्भोज-विलोचन-त्रय-युतां ध्यायेत परामम्बिकाम् ||
इसका एक लाख जप करने से काम पूरे हो जाते हैं। जप पूरा होने पर घी, शहद और शर्करा मिले हुए बेल के फल से दस हजार आहुतियां देनी चाहिए। दूसरे मंत्र का जप करते समय महालक्ष्मी का ध्यान निरंतर करते रहना चाहिए।
जगदंबा के शरीर की आभा अरुण समान है। वे कमल के ऊपर विराजमान हैं। उनका रूप मनोहारी है। उनके शरीर पर इंद्र नीलमणि वलय, हार, कुंडल, करधरी जैसे आभूषण हैं उनके हाथ में रत्न का पूर्ण पात्र, दो कमल और दर्पण है। उनकी सेवा में सेविकाएं उपस्थित हैं। ऐसी महाविष्णु की प्रिया महालक्ष्मी का ध्यार श्रद्धापूर्वक करना चाहिए।
ध्यान के समय इस श्लोक का पाठ करना चाहिए।
सिंदूरारुण-कांतिमब्ज-वसतिं सौंदर्य-वारां निधिम्,
कोटीराडगद-हार-कुंडल-कटी-सूत्रादिभिर्भूषिताम् ।
हस्ताब्जैर्वसु-पात्रमब्ज-युगलादशौं वहन्तीं परा-
मावीतां परिचारिकाभिरनिशं ध्यायेत प्रियां शाडिग्ण्म।।
महालक्ष्मी के प्रकट होने की कथा पुराणों में वर्णित है। मूल रूप में वे भगवती कृष्ण प्रिया राधा का ही एक स्वरूप हैं। रास मंडल में राधा की छाया के रूप में लक्ष्मी प्रकट हुई थीं, तो भगवान कृष्ण ने उन्हें अपने मूल स्वरूप भगवान विष्णु को सौंप दिया था। महालक्ष्मी ने भगवान विष्णु का वरण किया और वे उनके साथ बैकुंठ चली गयीं।
इस प्रकार महालक्ष्मी के आविर्भाव की तिथि भादों शुक्लपक्ष की अष्टमी है और यह राधाष्टमी के रूप में आज भी बड़ी श्रद्धा के साथ मनाई जाती है।