मेरिवेदर लुईस और विलियम क्लार्क | Meriwether Lewis and William Clark Both
१८वीं शताब्दी में जब यूरोप के बाशिदे संयुक्त राज्य अमरीका में आये तो उन्होंने पूर्वी किनारों पर खेती करना आरंभ किया । धीरे-धीरे वे आंतरिक भागों में प्रवेश करने लगे लेकिन १९वीं सदी के आरंभ तक उत्तरी अमरीका के विशाल पश्चिमी क्षेत्रों के विषय में उन्हें कोई ज्ञान न था ।
सन् १८०४ में राष्ट्रपति थोमस जेफरसन (Thomas Jefferson) ने कैप्टन मेरीवेथर लेविस और कैप्टन विलियम क्लार्क को एक खोज-यात्रा के अगुआओं के रूप में नियुक्त किया । इस यात्रा का उद्देश्य था मिसौरी (Missouri) नदी के साथ-साथ चलकर उसके उद्गम स्रोत का पता लगाना ।
सरकार इस बात की इच्छुक थी कि दूसरे देशों से आने वाले बाशिदों के लिए खेती करने योग्य नयी जमीन और नये साधनों का पता लगाया जाये । लेविस और क्लार्क ने तुरंत ही तैयारियां आरंभ कर दी और मई, १८०४ तक वे यात्रा के लिए तैयार हो गये । यात्रा की यह तैयारी बड़ी तीव्रता के साथ हुई और जाने वाले सभी सदस्यों ने सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर कर दिये । व्यापार के उद्देश्य से इस खोज-यात्री दल ने कांच के दाने, चश्में, चाक और अनेक प्रकार के पेंट (Paint) अपने यान में लादे । यान एक बड़ी नौका के रूप में था, जिसकी लंबाई ५५ फुट थी तथा जो २२ चप्पुओं (Oars) के द्वारा चलाया जाता था ।
इसमें एक विशाल मस्तूल भी लगा था । उन्होंने नाव को नदी के प्रवाह की उल्टी दिशा में खेना आरंभ किया । इसकी चाल बहुत धीमी थी क्योंकि नदी का प्रवाह तीव्र था और भयानक बलुवा किनारे थे । साथ ही साथ भारी वर्षा भी हो रही थी । समय-समय पर उन्हें नौका को किनारे की ओर लाना होता था ताकि वे एल्क (Elk) का शिकार करके अपना भोजन प्राप्त कर सकें ।
यात्रा के आरंभ में उन्हें कुछ भी आश्चर्यजनक दिखायी न दिया लेकिन जुलाई के महीने में इस दल के एक सदस्य ने कुछ इंडियन कैंप देखे जिनसे आग का धुआं निकल रहा था । दल के एक वरिष्ठ व्यक्ति के साथ दो यात्री उन इंडियन शिविरों की ओर गये । उनका विचार इंडियनों को अपनी नौका के पास लाना था ।
जब वे तीनों यात्री वहां के बाशिदों को लाने के लिए गये तो क्लार्क और लेविस ने उनके स्वागत की तैयारी की । तीन दिन तक खोज-यात्री दल इनके आने की प्रतीक्षा करता रहा और तीसरे दिन उन्होंने देखा कि इंडियन घुड़सवार अपनी बंदूकों से फायर करते और चिल्लाते हुए नौका की ओर बढ़ रहे हैं । लेविस ने अपने लोगों को हुक्म दिया कि वे शांत रहें, लेकिन साथ ही साथ उन्हें अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए अपनी तोप दागने का आदेश दिया । यात्री दल के एक सदस्य यॉर्क (York) ने एक पेड़ का निशाना लगाकर तोप दागी । इससे इंडियन तुरंत ही वापस चले गये । उनके पीछे से उनके अपने तीनों यात्री घोड़ों पर चढ़कर वापस आ गये ।
यात्री दल के सदस्यों ने इंडियनों के साथ फिर से संपर्क स्थापित करने का प्रयास किया । अंत में यात्री दल की, उनके मुखिया से मुलाकात हो गयी । खोजी दल के यात्रियों ने उनके साथ बैठकर तंबाकू के पाइपों से धूम्रपान किया । दोस्ती बढ़ाने के अनेक प्रवचन दिये गये और वहां के रहने वालों को बताया गया कि हम सब अमरीकी राष्ट्रपति के परिवार के सदस्य हैं । लेविस ने बताया कि हम में और आप में कोई अंतर नहीं है । अंत में दोनों दलों ने एक दूसरे को उपहार दिये और यात्री दल अपनी यात्रा पर आगे बढ़ चला ।
अक्तूबर के अंत में यह खोज-यात्री दल इंडियन लोगों की एक बहुत बड़ी बस्ती में पहुंचा । वहां इस दल ने इन लोगों से दोस्ती कर ली । शीत काल आ गया था, इसलिए यात्री दल के सदस्यों ने अपने रहने के लिए वहीं पर मकान बना लिए ।
ठंड बहुत अधिक थी और मिसौरी नदी का पानी जम गया था । उनकी नौका भी बर्फ में घिर गयी, अतः वे आगे बढ़ने की इच्छा रखते हुए भी मजबूरी के कारण आगे नहीं बढ़ सकते थे ।
अगले वर्ष के अप्रैल में कहीं जाकर वे यात्रा आरंभ कर सके और एक सप्ताह में ही उन्होंने मिसौरी नदी के उच्चतम बिंदु को पार कर लिया । किसी भी यूरोपीय के लिए इस स्थान को पार करने का यह पहला अवसर था । उनके चारों ओर हरियाली ही हरियाली दिखती थी जिसमें बारहसिंघे, हिरन और एल्क मस्ती से विचरण करते थे लेकिन उनकी यह खुशी जल्दी ही समाप्त हो गयी क्योंकि वहीं पर अत्यधिक संख्या में मच्छर थे और धूल भरी शुष्क हवाओं से यात्रियों के चेहरे जलने तथा गले सूखने लगे थे ।
यात्रा के एक प्रातःकाल उन्होंने झाड़ियों में एक भालू देखा । ड्यूबर नामक यात्री ने उस पर गोली चलायी, भालू गोली से बच गया तथा उस पर झपटा, वह तेजी से दौड़कर नदी में कूद पड़ा । उसने भालू पर दूसरा वार किया, जिससे वह मर गया । यात्री दल आगे बढ़ता रहा और धीरे-धीरे वे रेगिस्तानी क्षेत्र में जा पहुंचे ।
यद्यपि मई का महीना था लेकिन फिर भी तापमान बर्फ से नीचे ही था । अंततः वह तीन जून को उस स्थान पर पहुंचे जहां नदी दो धाराओं में बंटती थी । वहीं पर उन्होंने अपना कैंप बना लिया ।
लेविस अपने कुछ साथियों के साथ चारों ओर के क्षेत्र को देखने के लिए निकला । तीन दिन तक यात्रा करने और ६० मील की दूरी तय करने पर उन्होंने आकाश में एक इंद्रधनुष देखा । साथ ही गड़गड़ाहट की आवाज सुनी । जैसे ही वे आगे बढ़े, उन्होंने एक जलप्रपात देखा जो लगभग ९० फुट की ऊंचाई से गिर रहा था और जल की छोटी-छोटी बूंदों के बिखरने के कारण यह इंद्रधनुष बन रहा था ।
यह मोंटाना (Montana) जलप्रपात था । लेविस ने इस प्रदेश के मानचित्र बनाये । इसके बाद क्लार्क और लेविस एक दूसरे से मिले । १३ दिन की और यात्रा करने के बाद वे केवल १८ मील की दूरी ही तय कर पाये । नदी में पानी की गहरायी कम होने के कारण उन्हें अपनी नौकाओं को धकेलना पड़ना था । जब वे नदी के रास्ते और आगे न बढ़ सके तो उन्होंने पैदल चलना आरंभ किया । रास्ते में बहुत से इंडियन दिखायी दिये ।
यात्रा करते-करते ये दोनों साहसी यात्री आखिरकार अपने लक्ष्य पर जा पहुंचे । हजारों मील की यात्रा के बाद वे प्रशांत महासागर के पास जा पहुंचे थे और उन्होंने इस प्रकार मिसौरी नदी के उद्गम का पता लगाया । तीन साल की यात्रा के दौरान उन्होंने अनेक रहस्यों का पता लगाया और पश्चिमी अमरीका के प्रदेशों के विषय में जानकारी प्राप्त की ।
२६ मार्च, १८०७ को लेविस और क्लार्क इस यात्रा से वापस चल दिये । लेविस का जन्म सन् १७७४ में हुआ और मृत्यु सन् १८०९ में बहुत छोटी-सी उम्र में हो गयी थी । क्लार्क का जन्म सन् १७७० में हुआ और मृत्यु सन् १८३८ में हुई थी । नौसेना के ये दोनों साहसी अफसर अपनी इस यात्रा से विश्व में अमर छाप छोड़ गये ।