मंगो पार्क | मुंगो पार्क | Mungo Park History | Mungo Park discovered River Niger in What Year
आज से लगभग २०० वर्ष पहले लोग नाइजर नदी के विषय में जानते थे लेकिन कुछ ही व्यक्ति ऐसे थे जिन्होंने इसे देखा था । जिन व्यक्तियों ने इसे देखा था उनके विचार भी इस नदी के विषय में अलग-अलग थे । कुछ लोगों का कहना था कि यह पुरव की ओर बहती है तो दूसरे कुछ लोगों का कहना था कि यह पश्चिम की ओर बहती है । कुछ व्यक्तियों के मत के अनुसार यह नील नदी की सहायक नदी थी लेकिन दूसरे विशेषज्ञ यह मानते थे कि यह कांगो (Congo) नदी की शाखा है ।
एक विशेषज्ञ का कहना था कि यह अटलांटिक सागर में गिरती है । लेकिन दूसरे व्यक्तियों का कहना था कि इसका अंत सहारा मरुस्थल में होता है । जो लोग इसके किनारे पर रहते थे या जिन्होंने इस नदी की यात्राएं भी की थीं, उन्हें भी इसके विषय में बहुत ही कम ज्ञान था । वास्तविकता तो यह है कि लोगों के लिए यह नदी एक कौतूहल का विषय थी ।
इस नदी के विषय में जानकारी प्राप्त न कर पाने के अनेक कारण थे । इसके किनारों पर अनेक स्थानों पर भयंकर दलदल थे और घातक जंतुओं का निवास था । वहां पर अनेक लुटेरे थे जो किसी भी खोज-यात्री को लूट लेते । यहां तक कि उसकी हत्या भी कर देते थे । कुछ खोज-यात्रियों ने इस नदी के विषय में जानकारी प्राप्त करने के प्रयास भी किये लेकिन या तो वे रास्ते में मर गये या उन्हें रास्ते की कठिनाइयों के कारण वापस आना पड़ा ।
नाइजर नदी के विषय में पूर्ण जानकारी प्राप्त करने का बीड़ा सर्वप्रथम सन् १७९५ में मंगो पार्क ने उठाया । मंगो पार्क का जन्म स्कॉटलैंड के एक गरीब किसान परिवार में सेलकिर्क (Selkirk) नामक नगर में सन् १७७१ में हुआ था । उसे बचपन से ही यात्राओं का शौक था ।
मंगो पार्क (मुंगो पार्क) ने नाइजर नदी की यात्रा जून, १७९५ में आरंभ की । उसके साथ एक लड़का था, जिसका नाम बेंम्बा था । यात्रा की सामग्रियां थीं – कुछ कपड़े, एक चुंबकीय कंपास, एक घोड़ा, दो गधे, दो पिस्तौल और एक बड़ी छतरी । जून के अंत तक वह गांबिया (Gambia) नदी पर पहुंच गया । रास्ते में चार व्यापारी उसके साथ हो लिए, लेकिन वे कुछ ही दिन उसके साथ रहे । जैसे-जैसे वह आगे बढ़ा, मलेरिया से प्रभावित क्षेत्र में पहुंचता गया । छोटी-छोटी पहाड़ियों और घने जंगलों को पार करना मुश्किल हो गया । दिन के समय चट्टानें इतनी गर्म हो जाती थीं कि खुली त्वचा को जला सकती थीं । रातें इतनी ठंडी होती थीं कि सोना मुश्किल हो जाता । कभी-कभी मूसलाधार वर्षा होती । इसके अतिरिक्त उसे डर बना हुआ था कि कहीं लुटेरे उस पर हमला न कर दें । धीरे-धीरे मंगो पार्क (मुंगो पार्क) गांव-गांव होता हुआ पूरब की ओर बढ़ता गया । प्रत्येक गांव में मिट्टी की झोंपड़ियां बनी हुई थीं और वहां जादू-टोना करने वाले डाक्टर और पुजारी काफी मात्रा में थे । जैसे-जैसे समय बीतता गया उसके कपड़े चिथड़ों के रूप में बदलते गये, दाढ़ी बढ़ती गयी और उसकी हालत खराब होती गयी ।
२५ दिसंबर को उसकी मुलाकात लुटेरों के पहले समूह से हुई । लुटेरों ने उसे बताया कि वे वहां के राजा के दरबार से आये हैं और एक अनजान व्यक्ति को इस धरती पर आने का टैक्स देना होगा । उन्होंने मंगो पार्क (मुंगो पार्क) के सभी सामान में से आधा कर लिया । एक रात की बात है जब वह एक झोंपड़ी में सो रहा था तभी उसे जोर-जोर की आवाजें सुनायी दीं । उसने दूर से देखा कि बैलों का एक समूह भागा चला आ रहा है और उसके पीछे पांच घुड़सवार हैं । थोड़ी ही देर में पशुओं का एक झुंड इकट्ठा हो गया और लुटेरे झुंड में से १६ बैल छांटकर ले गये और लोग इस दृश्य को बिना बोले चुपचाप देखते रहे ।
मंगो पार्क (मुंगो पार्क) आगे बढ़ता रहा । जो आदमी उसके साथ था, वह भूख से मर गया । दीना (Deena) शहर में एक बार फिर लुटेरों ने उसे लूट लिया और पिटाई की । उसके जो चार व्यापारी थे, उन्होंने भी साथ छोड़ दिया था । उसने अकेले ही आगे बढ़ने का निश्चय किया । रास्ते में उसे अनेक कठिनाइयों का मुकाबला करना पड़ा । चंद्रमा की रोशनी में जंगली जानवरों की भयानक आवाजें सुनायी देती थीं ।
आगे चलने पर उसे अली नाम के एक शासक ने बंदी बना लिया और सब कुछ छीनकर एक महीने जेल में रखा । इस शासक के यहां से आजाद होकर इस बहादुर यात्री ने आगे बढ़ना शुरू किया । अनेक कष्ट सहने पर भी मंगो पार्क (मुंगो पार्क) ने २६०० मील लंबी नाइजर नदी का सर्वेक्षण किया । उसके उद्गम का पता लगाया और उत्तर-पश्चिम अफ्रीका की यात्रा पूरी की । इस यात्रा में उसका सब कुछ लुट गया, केवल एक कमीज और पेंट उसके पास रह गयी थी । इतने लंबे समय तक, इतनी कठिन यात्रा बिना किसी की सहायता के करना बहुत बड़े साहस का काम था ।
उसकी इस यात्रा का लाभ ब्रिटेन को अफ्रीका से व्यापार बढ़ाने में मिला । यद्यपि आज नाइजर नदी के विषय में हमें अनेक जानकारियां प्राप्त हो गयी हैं लेकिन मंगो पार्क (मंगो पार्क) ने जिन दिनों यात्रा की, वह आज के सभी साधनों से वंचित थी । इस महान साहसी यात्री को आने वाली सदियां भी नहीं भुला पायेंगी ।