Peepal Pathwari Ki Katha
एक बुढ़िया थी । उसके चार बेटे थे और चार भैंसे थी । आया कार्तिक का महीना । वह अपनी बहुओं से बोली – मैं तो कार्तिक नहाने जाऊँगी और तुम लोग एक-एक भैंस ले लो । एक महीने में आऊँगी, देखूँगी कि तुम में से कौन सी सबसे ज्यादा घी जोड़ पाएगी ।
तीनों बहुत चालाक थी । छोटी बहू को ना तो दूध विलोना आता था न घी निकालना । तीनों देवरानी-जिठानी बोलीं अब देखेंगे कैसे करेगी ? सासू छोटी से ज्यादा प्यार करती थीं । अब उसको कोई कुछ नहीं बताता था । वह बड़ी भोली थी । वह अपना सारा दूध-दही पीपल पथवारी में गिरा देती ।
महीना पूरा हो गया । तीनों बहुओं ने डिब्बा भर के घी जोड़ रखा था । छोटी बहू पथवारी माता से बोली कि मेरी सासू आएगी । मैं घी कहाँ से दूँगी ? पथवारी बोलीं – तू चार कंकड़ ले जा और जाकर चार डिब्बों में डाल देना ।
उनका एक-एक डिब्बा भरा होगा तो तेरे चार डिब्बे भर जायेंगे । वह चार कंकर लेकर चली गई और चार डिब्बों में डाल दिये । उसके चार डिब्बे भर गए ।
सासू आई बोली – लाओ, अपना-अपना घी दिखाओ । किसने कितना जमा किया है ? सब बड़ी खुशी-खुशी लेकर आईं । बोलीं- अब सास से इसको डाँट पड़ेंगी । सबसे छोटी चार डिब्बे लेकर आई ।
सब बोलीं – इसने तो कभी जमाया नहीं, बिलोया नहीं, इतना घी कैसे लाई ? इसके पति ने लाकर दिया होगा । तब वह कहने लगी – मुझे तो बिलोना नहीं आता था, न कोई बताता था । सो मैं दूध पीपल में और दही पथवारी में सींच देती थी । मुझे पथवारी माता ने दिया है ।
सब बोलीं – पथवारी माता के सींचे का इतना धर्म व फल होता है । अगले साल से हम भी सब कार्तिक नहाएँगे और पथवारी माता सींचेगें ।