कविता लिखी हुई | Poem Poem

%E0%A4%86%E0%A4%B5%E0%A4%B2%E0%A5%87%20%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%B2%20%E0%A4%95%E0%A5%87

आवले दिल के

दिखाना चाहते हैं आपको, हम आवले दिल के ।
छिपा सकते नहीं सीने में, टुकड़े ये जले दिल के ॥

उर्दु की आशनाई में, बने हम बागवाँ दिल के ।
मगर फूटी यह किस्मत थी, वे पत्थर से मिले दिल के ॥

बहुत कुछ जल चुके हैं हम,बनाये कोयले दिल के ।
कज़ा भी है नहीं आती जो झंझट ये टले दिल के ॥


संकल्प

देशावमानना जब दिन रात हो रही है,
एवं विपन्न जनता रक्ताश्रु रो रही है
तब क्या कपूत है हम जो धीरता धरेगे ?
जिस देश में जिये हैं, उसके लिये मरेंगे !
क्या प्रिय स्वदेश को हम स्वाधीन कर सकेगे ?
फिर मान-शैल-शिर पर आसीन कर सकेंगे ?
हाँ, क्यों न कर सकेंगे, उद्योग जब करेंगे ?
जिस देश में जिये हैं, उसके लिए मरेंगे !
ले ढाल दृढ़ क्षमा की, असि सत्य की स्वकर में-
रिपु-वर्ग से लड़ेगे अविराम शर्म-समर में ।
उसके अनात्म-भौतिक बल से नहीं डरेगे,
जिस देश में जिये हैं, उसके लिये मरेंगे !
अन्याय को गढ़ी को जड़ खोद ढायेगे हम,
नयकी विजय-पताका नभ में उड़ायेगे हम ।
भयभीत भाइयों की भय-भावना हरेगे,
जिस देश में जिये हैं, उसके लिये मरेंगे !
सर्वस्व जानते हैं जब देश का सदा हम,
उस पर करें निछावर तब क्यों न सम्पदा हम ?
माँ का दिया चुकावें, जग से तभी तरेंगे ।
जिस देश में जिये हैं, उसके लिये मरेंगे !

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *