कुंडलिनी चक्र की शक्तियां एवं कार्य | कुंडलिनी चक्र की शक्तियां | Powers and Functions of Kundalini Chakra | Powers of Kundalini Chakra

कुंडलिनी चक्र

कुंडलिनी चक्र की शक्तियां एवं कार्य | कुंडलिनी चक्र की शक्तियां | Powers and Functions of Kundalini Chakra | Powers of Kundalini Chakra

‘कुण्डलिनी शक्ति योग’ के अन्तर्गत 6 चक्रों की, हर एक की स्वतन्त्र रूप से एक-एक शक्ति है, जो उस चक्रविशेष पर नियन्त्रण करती है ।

ये 6 चक्र ‘अनैच्छिक स्नायु संस्थान’ के अन्तर्गत ‘अनुकम्पी एवं परानुकम्पी स्नायु तंन्त्रिकाओं’ के द्वारा बुने हुए ‘तंत्रिका जाल’ (प्लैक्सस) हैं और प्रत्येक चक्र की अलग-अलग नियन्त्रण करने वाली शक्ति है ।

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इन सब चक्रों की सामूहिक रूप से नियन्त्रण करने वाली एक मुख्य शक्ति भी है जो स्वयं ‘कुण्डलिनी शक्ति’ है । प्रत्येक की अलग-अलग शक्ति का कार्य उन अंगों को शान्त करना है जो अनुकम्पी स्नायु संस्थान के द्वारा उत्तेजित अवस्था में कर दिए गए थे । यह कार्य उस शक्ति के द्वारा मेरु-रज्जु (स्पाइनल-कार्ड) में उपस्थित कुछ केन्द्रों के द्वारा होता है जो अनुकम्पी स्नायु तन्त्र का विरोध करते हैं । यह कार्य चुपचाप साधक की संज्ञानता में आए बिना हो जाता है। ये केन्द्र ‘सहायक उपकेन्द्र’ (सबसिडिअरी-सेन्टर) कहलाते हैं और प्रतिवर्त चाप (रिफ्लैक्स आर्क) के माध्यम से काम करते हैं ।

मूलाधार चक्र


यहाँ श्रोणी-स्नायु-तन्त्रिका-जाल (पैल्विक प्लैक्सस) एवं त्रिकास्थि क्षेत्र के स्नायु-जाल (सेकरल-प्लैक्सस) हैं । इसकी शक्ति का नाम ‘डाकिनी’ है ।

स्वाधिष्ठान चक्र


यहाँ अधोजठर प्रदेश का तन्त्रिका जाल है (हाइपोगेस्ट्रिक-प्लैक्सस) । इसकी शक्ति का नाम ‘राकिनी’ है ।

परानुकम्पी (पैरासिम्पेथेटिक) केन्द्रों से जो सुषुम्णा-रज्जु में, उसके त्रिकास्थि (सेकरम) के दूसरे, तीसरे व चौथे कशेरुक खण्ड के अन्दर के भाग में है एक स्नायु तन्त्रिका निकलती है, जिसे जनेन्द्रियों की नाड़ी (नरवाई-ऐरीजेन्स) कहते हैं । जनेन्द्रियों की उत्तेजना के लिए एवं बृहद् आंत्र (कोलन), मलाशय (रेक्टम) और मूत्राशय (ब्लैडर) को स्नायु-सूत्र भेजती है। यही केन्द्र वास्तव में ‘डाकिनी’ और ‘राकिनी’ शक्तियाँ हैं और अनुकम्पी स्नायु-तन्त्र की उत्तेजनात्मक क्रिया को इन अंगों में कम करती हैं। यह स्नायु के अपवाही (इफ्रैंट) सूत्रों के माध्यम से बाहर आती है।

मणिपूर चक्र


(कुक्षि तंत्रिका जालिका : सिलिएक प्लैक्सस) । यह ‘लाकिनी’ शक्ति के द्वारा नियन्त्रित है । सुषुम्णा के वक्षीय व कटिपरक क्षेत्रों से (थोरेसिक और लम्बर रियेजन स्पाइनल कार्ड के) अपवाही (इन्फ्रैंट) स्नायु-सूत्र निकलकर आशयिक तंत्रिकाओं (स्पलैंक्निक-नर्वज्) के रूप में बाहर उदर गुहा में आते हैं । ये सुषुम्णा के अन्दर से उप-केन्द्रों से आते हैं । यही उप-केन्द्र ‘लाकिनी’ शक्ति है । ये सूत्र आमाशय और आँतों को व अन्य अंतःअंगों को जाते हैं और पाचक रसों का अधिक बहाव (स्रवण) कराते हैं तथा अनुकम्पी स्नायुओं के उत्तेजनात्मक क्रिया का विरोध करते हैं । यह सारी क्रिया प्रतिवर्त चाप के माध्यम से इन उप-केन्द्रों के द्वारा होती है । इसलिए इन स्नायु आवेगों को ‘समान-प्राण’ कहा गया है। (पाँच प्रकार के प्राणों में एक समान-प्राण है)

अनाहत चक्र


(हृदय का स्नायु-जाल, कारडियक-प्लैक्सस) । यह ‘काकिनी’ शक्ति है । यह उप-केन्द्र सुषुम्णा के तीसरे व चौथे वक्षीय खण्डों में स्थित है (अपर थोरेसिक रियेजन ऑफ स्पाइनल कार्ड)। और ये अपने स्नायु-सूत्र, सुषुम्णा के वक्षीय मेरु तंत्रिकाओं के माध्यम से भेजता है । आवेग अपवाही होते हैं (इन्फ्रैंट)। ये सूत्र हृदय, फुफ्फुस और महाधमनी पर नियन्त्रण करते हैं । वैसे तो इन अंगों को नियन्त्रित करने वाली मुख्य नाड़ी ‘प्राणदा तंत्रिका’ (वेगस नर्व) है, जिसका केन्द्र मज्जका (मेड्युला-ऑब्लांगेटा) में है । परन्तु प्राणदा नाड़ी की क्रिया रासायनों द्वारा रोक देने पर भी सुषुम्णा के ऊपर बताए गए उप-केन्द्र से आनेवाले अनुकम्पी सूत्र हृदय का संकुचन और शिथिलता पुनः शुरू कर देते हैं । उस उप-केन्द्र से आने वाले आवेगों को ‘प्राण-आवेग’ यौगिक भाषा में कहा गया है (प्राण-आवेग पाँच प्रकार के प्राणों में से एक) ।

विशुद्धि चक्र


(अवटु, परावटु, बाल्य ग्रन्थि का स्नायु तंत्रिका जाल एवं अग्रबाहुँ, कन्धों, गर्दन का स्नायु तंत्रिका जाल, कैरॉटिड- बॉडी और कैरॉटिड-साइनस इत्यादि) । इनकी शक्ति ‘शाकिनी’ है इसकी आज्ञाएँ ग्रीवा की स्नायु तंत्रिकाओं के माध्यम से अपवाही आवेगों (इफ्रैंट- इम्पल्सेस) और मज्जका (मेड्युला-ऑब्लांगेटा) में स्थित प्राणदा नाड़ी के (वेगस-नर्व) केन्द्रकों से, प्राणदा नाड़ी के सूत्रों के माध्यम से आती हैं ।

यह भी यौगिक भाषा में ‘प्राण-आवेग’ है । ऊपर की दोनों शक्तियाँ (काकिनी और शाकिनी) प्राणों के ‘प्राण-क्षेत्र में स्थित है अर्थात् प्राणों के पाँच क्षेत्र : उदान, प्राण, समान, अपान, व्यान में से ये शक्तियाँ ‘प्राण-क्षेत्र’ में स्थित हैं ।

‘शाकिनी-शक्ति’ के बारे में कहा गया है कि यह चन्द्रमा के स्थान में स्थित है और इस पर सदा अमृत टपकता रहता है । यह शक्ति तीसरे निलय में स्थित है और इस पर प्रमस्तिष्कमेरु-द्रव बहता रहता है । यह भी कहा गया है कि शक्ति अस्थि के ऊपर बैठी हुई है, तो यह शक्ति खोपड़ी की आधारवाली सतह पर स्थित है । यह शक्ति वास्तव में ‘अधश्चेतक’ (हाइपोथैलेमस) है ।

आज्ञा चक्र


पीयूष ग्रन्थि (पिट्यूटरी-ग्लैण्ड) +पीनियल-ग्रन्थि (पीनियल बॉडी)। यह ‘हाकिनी’ नाम की शक्ति के द्वारा नियन्त्रित है । यह शक्ति वास्तव में ‘चेतक’ (थैलेमस) है। चेतक से एक नेत्र-प्रेरक-नाड़ी (ऑकुलोमोटर-नर्व) निकलती है । उसके माध्यम से चेतक अपवाही आवेग (इफ्रैन्ट-इम्पल्सेस) भेजता है और पीयूष तथा पीनियल-ग्रन्थि पर नियन्त्रण करता है । ‘योग-साहित्य’ में कहा गया है कि ‘हाकिनी शक्ति’ मस्तिष्क की मजिष्ठा में स्थित है (मजिष्ठा = मज्जा = मैरो) ।

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