राजा विक्रमादित्य और बेताल की कहानी | जग जाने सो सांचा | Raja Vikramaditya Story in Hindi
एक बार फिर विक्रम उस वृक्ष के निकट आया । बेताल के बार-बार भागने पर हालांकि राजा विक्रम को काफी क्रोध आता था, किन्तु उस योगी ने उसे पहले ही समझा रखा था कि वह बेताल सीधा-सीधा यहां नहीं आएगा । वह लाख अड़चनें डालेगा, मगर तुम्हें बहला-फुसलाकर हालत में उसे यहां लेकर आना है ।
अतः क्रोधित होने के बावजूद विक्रम अपने निर्णय पर अडिंग था । बेताल मुर्दा बना लटका था । राजा विक्रम ने उसे उठाकर अपने कंधे पर रख लिया । बेताल बोला- “राजा विक्रम मैं जानता था कि तुम आओगे, उस योगी को मेरी बहुत जरूरत है।” और वह हंसने लगा ।
“तुम हंसते क्यों हो ?” पूछा विक्रम ने ।
“हे राजा विक्रम।” बेताल बोला—”मुझे हंसी इस बात पर आ रही है कि विद्वान भी यदाकदा समय को नहीं पहचान पाते।”
“तुम्हारा मतलब क्या है?” विक्रम ने पूछा।
“सुनो । मैं एक कहानी सुनाता हूं।” बेताल बोला—
कलिंग देश में जयंत नामक एक व्यापारी रहा करता था । जयवंत नाम का उसका एक रूपवान पुत्र था । वह पिता के कहे अनुसार व्यापार करने एक देश से दूसरे देश आया-जाया करता था ।
एक समय की बात है कि वह गांधार देश में व्यापार करने गया । राज-दरबार में जाकर उसने राजा को अनमोल सामान दिखलाया । तब राजा ने उसे अन्तःपुर में आकर राजकुमारी को वह सामान दिखाने के लिए आमंत्रित किया । जयवंत अन्तःपुर में गया ।
अन्तःपुर में जाना नई बात न थी । प्रायः वह दूसरे राज्यों में भी जाया करता था । वहां से वह अच्छा व्यापार कर लाता था । वह कड़े पहरे में गांधार देश के अंत:पुर में लाया गया । जयवंत ने राजमाता को अपना सामान दिखलाना शुरू कर दिया । हे राजा विक्रम! इसी समय वहां राजकुमारी चन्द्रप्रभा आ गई । उसे देखकर जयवंत अवाक् रह गया ।
वह अनेक देशों के अन्तःपुर में गया था, पर उसने ऐसी सुन्दरी आज तक न देखी थी । वह उस पर मोहित हो गया । वह भी किसी राजकुमार से कम नहीं था, अतः राजकुमारी भी उस पर मोहित हो गई । दोनों ओर से नयनों के बाण चले और दोनों ही घायल हो गए ।
खैर ! अन्तःपुर से व्यापार कर जयवंत जैसे-तैसे बाहर आ गया । बाहर आकर वह चंद्रप्रभा के वियोग में बुरी तरह छटपटाने लगा । राजकुमारी चन्द्रप्रभा की मोहिनी सूरत वह भुला न पा रहा था ।
जयवंत की यह हाल हो गया कि व्यापार उसे फूटी आंखों न सुहाया । वह सब कुछ त्यागकर इसी उधेड़-बुन में पड़ गया कि राजकुमारी के एक बार दर्शन कैसे करे ? अन्तःपुर में सख्त पहरा होने के कारण वह वहां जा भी नहीं सकता था । अन्तःपुर की ऐसी व्यवस्था थी कि वहां पक्षी तक पर न मार सकते थे ।
राजा के मंदिर और बगीचे के वह पचासों चक्कर काटने लगा कि शायद किसी प्रकार राजकुमारी की एक झलक मिल जाए । किन्तु वह हर बार निराश होकर लौटता था । अपने मन का हाल भी वह किसी से नहीं कह सकता था । उसके साथी, सहायक, सेवक सब हैरान थे कि जयवंत को हुआ क्या है ? क्यों वह पागल-दीवानों की सी हरकतें कर रहा है । उन्होंने यह भी प्रयास किया कि जयवंत को वापस उसके घर ले जाया जाए ।
जयवंत ने वहां से जाने से इन्कार कर दिया । तब एक सहायक उसके पिता को सूचना देने चला गया । बाकी उसकी देख-भाल के लिए रह गए । जयवंत रात-दिन ठंडी आहें भरता और आशिक जैसा उसका हाल हो गया था । उसका पड़ाव नगर के प्रवेश द्वार के पास ही था । अपने डेरे में पड़ा-पड़ा वह बस एक ही बात सोचता रहता कि किसी प्रकार राजकुमारी चन्द्रप्रभा की एक झलक मिल जाए । किसी प्रकार उससे मिलन हो जाए ।
वह गुमसुम-सा बैठा रहता था । उसकी दशा पागलों के समान हो गई थी । इस दशा को देखकर उसके संग के सभी लोग अब परेशान हो उठे थे । समझ ही नहीं पा रहे थे कि आखिर उसे हुआ क्या है ।
भाग्य या समय का चक्र देखो राजा विक्रम ! उस समय उस स्थान पर कामरू कामाक्षा से तंत्र सीखकर भूतदेव नामक एक तांत्रिक आया था । जयवंत का एक सेवक तांत्रिक की ख्याति सुनकर उसके पास गया और जयवंत की दशा का बयान किया ।
वह तांत्रिक जयवंत को देखने आया और अपने मंत्र बल से वह उसकी वास्तविकता को समझ गया । उसने स्पष्ट कह दिया कि यह राजकुमारी चन्द्रप्रभा से मिलने के लिए व्याकुल है । यह सुनते ही जयवंत में जैसे नई चेतना आ गई –“हां, तुम ठीक कहते हो—मैं किसी भी सूरत में उससे मिलना चाहता हूं।”
“मैं मिला दूंगा।”
भूतदेव ने उसे एक तावीज दे दिया और कहा-“तावीज को बांधते ही तू सुन्दर लड़की में बदल जाएगा । जब तावीज हटा देगा तो अपने असली रूप में आ जाएगा । इस प्रकार तू राजकुमारी से मिल सकता है। “
“पर अन्तः पुर में जाना कैसे होगा ?”
“इसका भी समाधान मेरे पास है।” तांत्रिक ने कहा और देखते ही देखते स्वयं एक बूढ़े धारण कर लिया ।
फिर जयवंत को उसने तावीज देकर लड़की का रूप धारण कराया और उस राजा के पास जा पहुंचा । राजमहल में जाकर उसने निवेदन किया- “हे राजन ! आप बड़े दयालु, धर्मात्मा व नीतिवान है । पूरा विश्वास कर मैं इसे आपके संरक्षण में छोड़कर जा रहा हूं। आपको बड़ा पुण्य होगा । जब मैं वापस आऊंगा तो इसे अपने साथ ले जाऊंगा।”
राजा ने तांत्रिक की बात मान ली ।
उसने युवती रूपधारी जयवंत को अन्तःपुर में राजकुमारी चन्द्रप्रभा के पास भेज दिया । तांत्रिक ने जयवंत से कहा- ‘एक सप्ताह में वह आ जाएगा । तब तक वह राजकुमारी का सुख पा ले। फिर देखा जाएगा।”
अन्तःपुर में राजकुमारी चन्द्रप्रभा ने उसे अपनी सहेली बना लिया । जब रात आई और दोनों एकांत में हो गए तो जयवंत अपने असली रूप में आ गया । राजकुमारी अत्यन्त प्रसन्न हुई । दोनों ने खूब सुख भोगा ।
इस प्रकार दोनों का प्रेम व्यापार चलता रहा । किसी को कुछ भी पता न चला । कब एक सप्ताह गुजर गया, पता न चला । एक सप्ताह बाद तांत्रिक आ गया । जयवंत ने गिड़गिड़ाकर उससे प्रार्थना की कि किसी प्रकार वह एक सप्ताह और रुक जाए । तात्रिक मान गया ।
हे राजा विक्रम ! इस बीच मंत्री का लड़का जयवंत के उस युवती रूप पर मुग्ध हो गया । वह उसके वियोग में तड़पने लगा । उसके पिता को जब यह ज्ञात हुआ तो उसने राजा से निवेदन किया कि युवती (जयवंत) से उसका विवाह करा दिया जाए । राजा ने तांत्रिक के आने तक रुक जाने के लिए कहा ।
एक सप्ताह समाप्त हो गया । तांत्रिक आ गया । तब राजा ने उसके सामने अपना प्रस्ताव रखा । तांत्रिक तब कहा – “राजन ! मैं अपनी कन्या से पूछ कर बताऊंगा।”
युवती रूपी जयवंत सामने आया तो उसने विवाह करने से इन्कार कर दिया । तांत्रिक जयवंत के साथ राजमहल से बाहर आ गया । बाहर आकर जयवंत ने तांत्रिक को बताया कि राजकुमारी गर्भवती हो गई है । इस पर तांत्रिक ने बड़ी प्रसन्नता जाहिर की और उसे बताया कि इसी आधार पर वह राजकुमारी से विवाह कर सकता है ।
जयवंत निश्चिन्त हो गया । तांत्रिक चला गया । तब जयवंत राजा के पास गया । उसने चन्द्रप्रभा को मांगा । राजा ने स्पष्ट इन्कार कर दिया ।
‘वह मेरे बच्चे की मां बनने वाली है।” जयवंत ने बतलाया ।
राजा ने फिर भी उसका प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया । वह बहुत निराश हो गया । राजा ने चन्द्रप्रभा से पूछा तो उसने सब कुछ बतला दिया । इसके बावजूद राजा ने जयवंत का प्रस्ताव ठुकरा दिया । इस इन्कार करने के कारण जयवंत को बड़ा सदमा लगा ।
हे राजा विक्रम ! उसने आत्महत्या कर ली ।
विक्रम बेताल के सवाल जवाब
बेताल के सवाल :
अब तुम निर्णय करो कि इसका पाप राजा पर पड़ा या नहीं ? क्या राजा दंड का भागी नहीं बनता ?”
राजा विक्रमादित्य के जवाब :
विक्रम कुछ देर सोचता रहा । फिर बोला—“नहीं । राजा ने एकदम सही काम किया।”
बेताल ने पूछा–“वह कैसे ?”
“सुनो बेताल ! सच वही है, जो दुनिया के सामने आता है । चोरी-छिपे किया जाने वाला काम सच नहीं कहलाता । इस कारण राजा का इन्कार करना ठीक था ।
फिर जयवंत ने आत्महत्या क्यों की ? वह स्वयं दोषी माना जाएगा । मंत्री का बेटा भी तो जयवंत के स्त्री रूप पर मोहित हो गया था । उसने आत्महत्या क्यों नहीं की ? वह तो जीवित है । मेरा यही न्याय है कि जग जाने सो सांचा । बाकी सब झूठा।”
बेताल बोला–“तुम ठीक कहते हो राजा ‘विक्रम !” और वह अट्टहास करता हुआ भाग खड़ा हुआ ।
विक्रम फिर उसके पास लपक गया । और कुछ देर बाद ही उसे फिर से अपने कंधे पर लाद कर चल पड़ा | विक्रम की यात्रा फिर शुरू हो गई ।
बेताल बोला—”राजा विक्रम ! इस प्रकार वह मर गया । जब राजकुमारी को इसका पता चला तो वह दुखी हो गई । ठीक समय उसने जयवंत के पुत्र को उत्पन्न किया । राजा ने उस पुत्र को धाय को दान कर दिया और वह राजकुमारी का विवाह करने के फेर में पड़ गया । राजकुमारी सुन्दर थी ही । एक राजकुमार सहमत हो गया ।
उसने राजकुमारी से विवाह कर लिया । दोनों का जीवन सुखपूर्वक बीतने लगा । कुछ समय बाद राजकुमारी का वह पुत्र बड़ा हो गया । वह राजकुमारी से मिलने आया पर राजकुमारी ने उसे अपना पुत्र मानने से इंकार कर दिया |
वह बेचारा चुपचाप लौट गया ।
विक्रम बेताल के सवाल जवाब
बेताल के सवाल :
अब राजा विक्रम आप कहो यह मां का कैसा रूप है ? क्या यह पाप नहीं है? “
विक्रम कुछ न बोले । ‘जवाब दो, राजा विक्रम!”
राजा विक्रमादित्य के जवाब :
‘‘देखो बेताल । वह राजकुमारी का अवैध पुत्र था । वह उसे कैसे स्वीकार कर सकती थी ? जग में कैसे कहती कि वह उसका बेटा है।”
“पर मां का यह व्यवहार ।”
राजा विक्रम हंसकर बोला—“बेताल ! स्त्री का चरित्र जानना बहुत मुश्किल है । इस बात को मानते हो ?”
“हां बेताल।”
“हां। क्या यह त्रिया-चरित्र है ?”
बेताल बोला—“राजा विक्रम ! तुम सारी नारी जाति का अपमान कर रहे हो।”
और वह कंधे से उछलकर भाग खड़ा हुआ । राजा विक्रम बहुत प्रयास करके भी उसे न रोक सका । बेताल तीर के समान भाग गया । राजा विक्रम देखता रह गया । उसने सोचा–“बेताल को किसी प्रकार साधु के पास तक ले ही जाना है।” वह हिम्मत हारने वाला न था । फिर वापस लौट पड़ा । मन-ही-मन बहुत क्रोध आ रहा था, पर उसने अपना क्रोध दबा रखा था । उसे अपना काम बनाना था । भयानक रास्ता पार करता हुआ, वह वापस लौटा । उस समय वातावरण और भी भयानक हो गया था । फिर भी विक्रम निडरतापूर्वक चला जा रहा था । वह डरा नहीं । फिर उसे अपनी तलवार और बाहुबल पर भी तो भरोसा था । वह बढ़ता गया । उसी स्थान पर आ गया, जहां बेताल लटका था ।
एक बार फिर वह उसे वृक्ष से उतारकर अपने कंधे पर लादने का प्रयत्न करने लगा ।