राशि रत्नों की ऊर्जा | Rashi Ratno ki Urja

Rashi Ratno ki Urja

Rashi Ratno ki Urja

चमत्कार के कार्य में उपयोग में लाए जाने वाल पत्थरों की कतार हैरान करने वाली होती है । साथ ही उनका आकार प्रकार जिस प्रकार विभिन्नता लिए होता है उसी प्रकार उनका उपयोग भी अत्यंत भिन्न-भिन्न होता है ।

ये पत्थर वास्तव में ऊर्जा के भंडार गृह होते हैं और वांछित परिवर्तन लाने के लिए चमत्कारों में उनकी इन्हीं ऊर्जाओं का इस्तेमाल किया जाता है । पत्थरों में पाई जाने वाली ये उर्जाएं मूलतः दो प्रकार की होती हैं तथा उन में विभिन्न प्रकार की तरंगें समाहित रहती हैं । इन्हें संप्रेषक एवं संग्राहक कहते हैं ।

ये वास्तव में प्रत्येक वस्तु का निर्माण करने वाली ब्रह्मांडिय ऊर्जाओं के विशुद्ध रूप का प्रतीक होती हैं और इनके अनेक प्रतीक भी होते हैं । धर्म में इन्हें देवी तथा देवता, खगोलशास्त्र में सूर्य तथा चंद्र और मानव में स्त्री-पुरुष के रूप में जाना जाता है ।

नीचे इसी प्रकार के कुछ युग्म दिए जा रहे हैं ।

संप्रेषक, विद्युत, गर्म, दिवस, शारीरिक, उज्ज्वल, ग्रीष्म ऋतु, चाकू, सक्रिय, संग्राहक, चुंबक, शीतल, रात्रि, आध्यात्मिक, अंधकार, शीत ऋतु, कप, निष्क्रिय

चूंकि संपूर्ण ब्रह्मांड में ये शक्तियां व्याप्त हैं इस कारण ये हम मे तथा पृथ्वी में भी उपस्थित रहती हैं । यदि प्रतीकात्मक रूप से कहा जाए तो यही कारण है कि हम संतान उत्पन्न कर सकते हैं तथा प्रत्येक प्रकार का चमत्कार दिखा सकते हैं । मानव में संप्रेषक व संग्राहक ये दोनों प्रकार की उर्जाएं रहती हैं । लेकिन इनका हमारी शारीरिक काम वासना से कोई संबंध नहीं रहता और होना भी नहीं चाहिए । लेकिन चूंकि हमें बचपन से उस ऊर्जा पर जोर देना सिखाया जाता है जो हमारी शारीरिक काम-वासना के अनुकूल हों, इस कारण इनमें असंतुलन स्वाभाविक है । लड़के नीले रंग के कपड़े पहनते हैं तथा बॉल खेलते हैं आदि-आदि । फिर भी वर्तमान में बदलाव आ रहा है, लेकिन अभी भी यह एक रीति है ।

चमत्कार लाने वाले व्यक्ति के लिए यह आवश्यक है कि उसका इन दोनों उर्जाओं में संतुलन रहे । असंतुलन होने अर्थात किसी एक के कम-ज्यादा होने का परिणाम उसे भुगतना पड़ता है ।  संप्रेषक शक्ति की अधिकता के कारण चमत्कारिक व्यक्ति चिड़चिड़ा, क्रोधी, आक्रामक तथा गुण-दोषों को अधिक देखने वाला बन जाता है । स्वास्थ्य के क्षेत्र में यह असंतुलन अल्सर, सिरदर्द, उच्च रक्तचाप आदि रोगों के रूप में उभरता है ।

इससे विपरित संग्राहक उर्जा के अधिक होने पर व्यक्ति तुनक मिज़ाज, सुस्त, दमित तथा रूचिहीन बन जाता है । उसके सम्मुख रोजगार की समस्या रहती है तथा पितोन्माद भी उसे सताता है ।

यदि कभी आप स्वयं में इस प्रकार का असंतुलन अनुभव करें तो उसकी क्षतिपूर्ति के लिए कोई नग धारण करें ताकि विपरीत उर्जा भली प्रकार कार्य कर सकें | संप्रेषक पत्थरों की पहचान यह है कि वे चमकीले, उभरे हुए आक्रामक से एवं विद्युतिय होते हैं । उनमें निहित उर्जा तीव्र शक्तिशाली एवं आवेग युक्त होती है । वह बुरी आत्माओं को दूर रखती है, निष्क्रियता हटाती है व गतिशीलता प्रदान करती है ।

संप्रेषक पत्थरों से बीमारियों का विनाश होता है, चेतन मस्तिष्क शक्तिशाली बनता है तथा व्यक्ति में ये साहस व दृढ़ संकल्प की भावना उत्पन्न करते हैं । इसके अतिरिक्त वे शारीरिक बल को बढ़ाते हैं, सौभाग्य को आकर्षित कर सफलता दिलाते हैं । चमत्कार के दौरान ये क्रियाओं को अतिरिक्त बल प्रदान करते हैं ।

इन पत्थरों व खनिज पदार्थों का उपयोग मूलतः दो प्रकार से किया जाता है । वे अनचाही, नकारात्मक उर्जा को दूर करते हैं या फिर किसी पदार्थ या व्यक्ति में उर्जा का निक्षेप करते हैं । उदाहरण के तौर पर एक महिला ने साहस के लिए अकीक धारण कर रखा था, जिसकी शक्तियां उस महिला में समाहित हो गई । किंतु जब उसी महिला ने स्वयं में से नकारात्मक शक्ति को हटाना चाहा तो उसने दृश्यात्मक कल्पना के द्वारा अकीक को और शक्तिशाली बनाया । इस प्रकार उस पत्थर ने उस महिला में उर्जा भरने के स्थान पर उसकी नकारात्मक शक्ति को दूर कर दिया । यह दृश्यात्मक कल्पना का ही परिणाम था ।

संप्रेषक नग चेतन मस्तिष्क के संपर्क में रहते हैं तथा प्रायः दे भारी या सघन, कभी-कभी अपारदर्शी होते हैं । उनका रंग लाल, नारंगी, पीला, सुनहला होता है । सूर्य की भांति वे चमकदार होते हैं । माणिक, हीरा, लावा, पुखराज रोडोक्रोसाइट पत्थर इसके उदाहरण हैं । इस श्रेणी के नगों का संबंध सूर्य, बुध, मंगल, यूरेनस तथा वायु व अग्नि के तत्वों से रहता है । साथ ही इनका संबंध सितारों से भी रहता है क्योंकि सितारे भी एक प्रकार से दूरस्थ सूर्य ही होते हैं ।

संग्राहक नग संप्रेषक नगों के प्राकृतिक प्रतिपूरक होते हैं । वे सुखद्. प्रशांतक, दबे हुए से चुंबकीय होते हैं तथा ध्यान, आध्यात्मिकता, बुद्धिमत्ता और रहस्यात्मकता को बढ़ावा देते हैं । साथ ही वे शांति का प्रसार करते हैं । ये नग चेतन और अवचेतन मस्तिष्क के मध्य संदेशों के आदार-प्रदान को बेहतर बनाते हैं जिससे आत्मिक सजगता बढ़ती है । इन से निकलने वाली उर्जा प्यार, दौलत और मित्रता को आकर्षित करती है । साथ ही इनका उपयोग भूमि में दबाने के लिए भी किया जाता है ।

संप्रेषक नगों की भांति संग्राहक नगों का भी दो रूपों में इस्तेमाल किया जाता है । वैदूर्य मणि का उपयोग प्यार को प्राप्त करने में किया जाता है । साथ ही यह दमित भावनाओं को नष्ट करती है जिससे व्यक्ति आनंद का अनुभव करता है ।

संग्राहक नगों के रंगों में अत्यंत विविधता देखने को मिलती है । ये हरे, नीले, हरे-नीले, भूरे, चांदी के समान, गुलाबी, काले और श्वेत रंगों में पाए जाते हैं । ये अचारदर्शी भी हो सकते हैं तथा प्राकृतिक रूप से मध्य से छिदे भी । चंद्रमणि (मून स्टोन) वैदूर्य, गुलाबी बिल्लौर, पन्ना, फिरोजा, टूरमेलिन और कंजाइट इसी श्रेणी के नग हैं तथा इनका चंद्रमा, शुक्र, शनि, नेपच्यून, बृहस्पति तथा पृथ्वी और जल के तत्वों से संबंध रहता है ।

लेकिन यह आवश्यक नहीं कि सभी नगों को इन श्रेणियों में आसानी से विभक्त किया जा सके । लेकिन फिर भी नगों को उनकी मूल शक्तियों से जोड़ने की यह अच्छी प्रणाली है ।

इसके साथ वैदूर्य मणि जैसे नग भी होते हैं जिनमें दोनों श्रेणियों के गुण या उर्जाएं रहती हैं । अतः उनकी मूल शक्ति का अंदाजा लगाने के लिए स्वयं निर्णय लीजिए । स्मरण रखे यह प्रणाली आपकी भलाई के लिए है । साथ ही यह शत प्रतिशत खरी भी नहीं उतरती है । वैसे आप किसी भी अनजाने पत्थर को देखकर उसके रंग व वजन से अंदाजा लगा सकते हैं कि उसमें कौन सी चमत्कारिक शक्तियां हैं, चाहे आपने उन्हें अनुभव किया हो या नहीं । अतः भविष्य में जब भी आपको कोई नग दिखाई दे तो अंदाजा लगाइए कि वह संप्रेषक है कि संग्राहक । अगर यह प्रक्रिया आपके लिए अत्यंत सहज स्वाभाविक बन जाए तो आप नगों के विषय में शीघ्र ज्ञान प्राप्त कर लेंगे और आपके लिए चमत्कार दिखाना सरल बन जाएगा ।

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