ऋषि पंचमी व्रत | ऋषि पंचमी व्रत कथा | ऋषि पंचमी व्रत पूजा विधि | Rishi Panchami Vrat Katha in Hindi | Rishi Panchami Vrat Vidhi
भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी को ऋषि पंचमी कहते है । यह व्रत जाने-अनजाने हुए पापों के प्रक्षालन के लिए स्त्री पुरुष दोनों को करना चाहिए ।
ऋषि पंचमी व्रत पूजा विधि | ऋषि पंचमी की पूजा विधि
व्रत करने वाले को गंगा नदी या किसी अन्य नदी अथवा तालाब में स्नान करना चाहिए ।
यदि यह सम्भव न हो तो घर पर ही पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान कर लेना चाहिए | तत्पश्चात् गोबर से लीपकर मिट्टी या ताँबे का जल भरा कलश रखकर अष्टदल कमल बनाएं । अरुन्धती सहित सप्त ऋषियों का पूजन कर कथा सुने तथा ब्राह्मण को भोजन कराकर स्वयं भोजन करें ।
ऋषि पंचमी व्रत कथा | ऋषि पंचमी की कहानी
सिताश्व नाम के राजा ने एक बार ब्रह्माजी है से पूछा – पितामह ! सब व्रतों से श्रेष्ठ और तुरंत फलदायक व्रत कौन है ? उन्होनें बताया कि ऋषि पंचमी का व्रत सब व्रतों में श्रेष्ठ पापो का विनाश करने वाला है ।
ब्रह्माजी ने कहा – विदर्भ देश में उत्तंक नामक सदाचारी ब्राह्मण रहता था । उसकी पत्नी सुशीला बड़ी पतिव्रता थी। उसके एक पुत्र एवं पुत्री थी। उसकी पुत्री विवाहोपरांत विधवा हो गई । दुखी: ब्राह्मण-दम्पत्ति कन्या सहित गंगातट पर कुटिया बनाकर रहने लगे ।
उत्तंक को समाधि में ज्ञात हुआ कि उसकी पुत्री पूर्व जन्म में रजस्वला होने पर भी बर्तनों को छू लेती थी । इससे इसके शरीर में कीड़े पड़ गए हैं । धर्मशास्त्रों की मान्यता है कि रजस्वला स्त्री पहले दिन चाण्डालिनी, दूसरे दिन ब्रह्मघातिनी तथा तीसरे दिन धोबिन के समान अपवित्र होती है । वह चौथे दिन स्नान करके शुद्ध होती है ।
यदि यह शुद्ध मन से ऋषि पंचमी का व्रत करे तो पापमुक्त हो सकती है । पिता की आज्ञा से उसकी पुत्री ने विधिपूर्वक ऋषि पंचमी का व्रत एवं पूजन किया । व्रत के प्रभाव से वह सभी दुखों से मुक्त हो गई । अगले जन्म में उसे अटल सौभाग्य सहित अक्षय सुखों का भोग मिला ।