रूस्तम
Rustom
रूस्तम की कहानी, रुस्तम मूवी, रुस्तम की असली कहानी
बालीवुड स्टार अक्षय कुमार की फिल्म रूस्तम, को लोगो ने काफी पसंद किया टीनु सुरेश देसाई के निर्देशन मे बनी इस फिल्म मे अक्षय कुमार के साथ नजर आई इलियाना डीक्रुजा |
हालाकी ज़्यादातर लोग जान चुके है की ये फिल्म कुख्यात नानावटी केस से प्रेरित है | जी हा ! ये कहानी है K.M. Nanavati V/S State of Maharastra
ये कहानी सच्ची घटना के साथ-साथ नौसेना के अधिकारी पर आधारित है | ये बात १९५९ की है जिसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया | इस कहानी पर आधारित बहुत सी फिल्मे बनी, जिसमे R.K. Naiyar की “ये रास्ते है प्यार के” और गुलजार की बनी फिल्म “अचानक” है |
नौसेना के कमांडर कवास मानेकेशव नानावती होंनहर अधिकारियों मे से एक थे, वे आई॰एन॰एस॰ मैसूर के कमांडर भी थे | उनका जन्म १९२५ मे एक फारसी परिवार मे हुआ था | नानावती दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान कई मोर्चो पर लड़ चुके थे | ब्रिटिश अधिकारियों ने उन्हे वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया था |
नौसेना के कमांडर कवास मानेकेशव नानावती की ब्रिटिश पत्नी सिल्विया ने उन्हे २७ अप्रैल १९५९ को एक सच्चाई बताई |
सिल्विया ने नानावती को बताया की वे किसी और से प्यार करती है और वो उनका पारिवारिक मित्र प्रेम आहूजा है | इसके बाद नानावती मुम्बई के कोलाबा के घर से पत्नी और तीन बच्चो के साथ निकले | बीबी और बच्चो को मेट्रो सिनेमा मे छोडकर वह बाम्बे हावर्ड की तरफ बढ़े जहा उनकी बोर्ट खड़ी थी |
बोर्ट पर पहुचकर उन्होने कप्तान से कहा की वह अहमदनगर जा रहे है, उन्हे बंदूक और छ: गोलियो की जरूरत है | वो लेकर वह यूनिवर्सल मोटर्स की तरफ बढ़ गए, यह गाड़ियो का शोरूम था जिसका मालिक प्रेम आहूजा था | पर प्रेम आहूजा वहा न होकर भोजन के लिए अपने घर चले गए थे | वहा पूछताछ करने के बाद नानावती अपनी कार से मलाबार हिल की उस फ्लैट मे गए जहा प्रेम आहूजा का घर था |
वहा पहुचने के बाद आहूजा की नौकरानी नानावती को उसके अपार्टमेंट तक ले गई | आहूजा नहाकर बाथरूम से बाहर आए ही थे की नानावती सीधे आहूजा के बैडरूम मे गए और अंदर से दरवाजा बंद कर दिए | उसके बाद तीन गोलियो की आवाज सुनाई दी | आहूजा खून से सना हूआ जमीन पर गिरा और उसके बदन पर सिर्फ एक तौलिया था |
नानावती अपार्टमेंट से बाहर निकल आए | वहा से निकलकर राजभवन की तरफ बढ़े और वहा रूककर नजदीकी पुलिस स्टेशन का रास्ता पूछा | पुलिस स्टेशन जाकर उन्होने आत्म समर्पण कर दिया |
नानावती पर चला ये मुकदमा दुनिया भर मे चर्चा का विषय बना रहा | सभी को इसमे इतनी दिलचस्पी थी की उस जमाने की मैगजीन जिस पर यह खबर छप रही थी वह २५ पैसे की जगह २ रूपये मे बिकने लगी |
आगे चलकर राम जेठमलानी और विजय लक्ष्मी पंडित जैसे लोगो का नाम भी इस केस के साथ जुड़ गया | इसमे मशहूर पत्रकार वी॰ के॰ कराचियाने भी अहम भूमिका निभाई |
सेसनकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक ये केस लगभग ढाई वर्षो तक चला और वी॰ के॰ कराचिया ने नानावती को छूड़वाने के ले लिए अपने अखबार का खूब फायदा उठाया | कराचिया और नानावती दोनों ही फारसी थे, इसलिए उनकी सहानुभूति नानावती की तरफ थी जबकि जेठमलानी ने प्रेम आहूजा की तरफ से केस लड़ा | ये केस फारसी और सिन्धी समुदाए के बीच मन-मुटाव का कारण भी बना |
१९६१ मे सुप्रीम कोर्ट ने नानावती को उम्र कैद की सजा सुनाई पर कुछ ही दिनो के बाद सरकार ने उसे माफ कर दिया और वे जेल से बाहर आ गए | नानावती पर धारा ३०२ के अंतर्गत मुकदमा दायर किया गया था, पर जूरी ने उन्हे ८:१ के मत से निर्दोष करार दिया | इसके बाद नानावाती, उनकी पत्नी सिल्विया औरे बच्चे टोरंटो मे जाकर निवास करने लगे |