[wpv-post-body][wpv-post-title][wpv-post-shortcode]
श्री शचींद्रनाथ सान्याल । Sachindra Nath Sanyal
श्री शचींद्रनाथ सान्याल का जन्म ३ अप्रैल १८९३ मे कलकत्ते में हुआ था । इनके पिता श्रीयुत हरिनाथ सान्याल एक सरकारी नौकर थे, फिर भी इनमें राष्ट्रीयता का भाव बहुत अधिक था । १९०८ ई० में जब, श्री शचींद्रनाथ सान्याल की उम्र सिर्फ १५ वर्ष की थी, उनका देहान्त हो गया । पर देहान्त के पूर्व ही अपने पुत्रों को इन्होंने कलकत्ते की “अनुशीलन समिति” में भर्ती करा दिया था । पिता की मृत्यु के बाद श्री शचींद्रनाथ सान्याल बनारस आये और यहाँ पर नवयुवकों का संगठन आरम्भ कर दिया । १७ वर्ष की अवस्था में ही इन्होंने तीन शाखाओं सहित एक बढ़िया संस्था संगठित कर ली । कुछ दिनों तक इसके मूल केन्द्र के ३०० तथा शाखा-केन्द्रो के १०० से १५० तक सदस्य थे । १९१५ ई० में इस संस्था को पुलिस ने नष्ट कर डाला ।
श्री शचींद्रनाथ सान्याल ने १९१२ में ही बंगाल के क्रान्तिकारी दल से अपना सम्बन्ध स्थापित कर लिया था । इसके बाद से वे बराबर युक्त प्रान्त में क्रान्तिकारी आन्दोलन को बढ़ाने के प्रयत्न में लगे रहे । बनारस में इनके तथा इनके साथियों के पीछे सदा खुफिया पुलिस लगी रहती थी । फिर भी यह तारीफ की बात है, कि उस अवस्था में भी ये श्रीयुत रासबिहारी बोस, श्री यतीन मुखर्जी आदि जैसे फरार क्रान्तिकारियों को छिपा सके थे । १९१४ में श्रीयुत रासविहारी बोस को गिरफ्तार कराने वाले के लिये ७५०० रू. के इनाम की घोषणा सरकार द्वारा हो चुकी थी । पर उसी अवस्था में श्री बोस ने बनारख पहुँचकर उसे ही अपने कार्य का मुख्य केन्द्र बनाया ।
श्री रासविहारी बोस का शचीन्द्रनाथ पर बहुत विश्वास था और वे इनके ज़िम्मे बहुत बड़ी-बड़ी जिम्मेदारी के कार्य सौपते थे । उन्होंने श्री शचींद्रनाथ सान्याल तथा उनके दो और साथियों को नये प्रकार का बम वनाना खिखाया । एक बार उसके प्रयोग का अनुभव करते समय वह फूट पडा और श्री शचींद्रनाथ सान्याल बुरी तरह से घायल हुए । पुलिस-चौकी उस स्थान से सिफ ५ मिनट की दूरी पर थी; पर पुलिसवालों को इस बात का कुछ भी पता न लगा ।
लाहौर-षडयन्त्र के मुकदमे के समय ही पहले पहल भी श्री शचींद्रनाथ सान्याल का नाम पडयन्त्रकारी के रूप में प्रकट हुआ । इसके बाद ८ महीने तक, जब तक कि १९१६ में बनारस पड़यन्त्र के सम्बन्ध में वे गिरफ्तार न हो गये- वे फरार रहे । इसके पहले कलकत्ते में क्रान्तिकारियों की एक मीटिंग हुई थी । इसमें श्री रासबिहारी, श्रीनरेन भट्टाचार्य,श्रीयतीन मुखर्जी, गिरजा बाबू, श्री शचीन्द्रनाथ आदि उपस्थित थे । इस मीटिंग में श्री रासबिहारी बोस को विदेश जाकर वहाँ से अस्त्र-शस्त्र भेजने तथा धन-संग्रह का काम, श्री नरेन को विदेशी हथियारों को लेने तथा रक्षा करने का काम, श्री यतीन और श्री गिरजा को देश में धन-संग्रह का काम और श्री शचींद्रनाथ सान्याल को पंजाब तथा युक्त प्रान्त के किसानों तथा सैनिकों में क्रान्तिकारी भाव फैलाने का काम दिया गया था । श्री शचींद्रनाथ सान्याल की गिरफ्तारी इनके दल के ही एक आदमी के विश्वासघात के कारण हुई थी ।
मुकदमा होते समय जब इनसे सफाई माँगी गयी, तब इन्होंने बड़ी निर्मीकता और बहादुरी के साथ निम्नलिखित वक्तव्य पेश किया:- “मे हिन्दुस्तान के लिये पूरी आज़ादी चाहता हूँ और मैने अपना जीवन उसी की प्राप्ति के लिये निसार कर दिया है मैं ब्रिटिश सरकार के जजों की अपेक्षा किसी और उन्नत शाक्ति में विश्वास करता हूँ, जो मनुष्यों और राष्ट्रो की भाग्य-निर्णायक है।”
उन्हें आजन्म काले पानी की सज़ा हुई और बढ़ी खुशी से उन्होंने उसका आलिंगन किया । अंडमान में पहुँच कर इनकी सिक्खों से बड़ी मित्रता हो गयी । वहीं पर देशभक्त श्री सावरकर से भी इनका परिचय हुआ । समी कैदी इन्हें बडे आदर की निगाह से देखते थे। वहाँ पर इन्होंने अर्थशास्त्र, इतिहास आदि का अध्ययन किया । १९२१ की राज-घोषणा में वे रिहा हो गये । इसके बाद कुछ अन्य कामो में लगे रहे । पर फिर ज्योही बनारस पहुँचे, अपने उसी उत्साह, लगन और मुस्तैदी के साथ पुराने साथियों की खोज-ढूँढ कर, उसी कार्य में लग गये । इसके बाद बंगाल के काले कानून के अनुसार कलकत्ते में दूसरी बार भी इनकी जो गिरफ्तारी हुई, यह इनके एक अपने ही आादमी के विश्वासघात के कारण । उसने सिर्फ १००० रू के लोभ में आकर पुलिस को इनके निवास-स्थान का पता बतला दिया था । इन दौ मौको के और अपने ही कहे जाने वाले आदमियों के विश्वासघात से इनके हृदय को बढा गहरा सदमा पहुचा और तब से एक प्रकार से नौजवानों पर से इनका विश्वास उठ सा गया ।
इस नज़रबन्दी की अवस्था में ही उन पर बांकुड़ा-राजद्रोह केस चलाया गया । इस मुकदमे का आधार उनके पास में एक ऐसे लिफाफ का पाया जाना था, जिसके भीतर क्रांतिकारी नामक पर्चा था और जिस पर श्री रासबिहारी बोस का जापान का पता लिखा हुआ था । इस मुक़दमे में इन्हें दो वर्ष की सख्त कैद की सज़ा मिली । इस प्रकार नज़रबन्दी और उक्त सज़ा की मियाद भुगत ही रहे थे, कि काकोरी-षड़यंत्र केस में पकड़ लिये गये और आजन्म काले पानी की सज़ा दे दी गयी ।
काकोरी-षड़यंत्र के जीवन को बनाने में उनकी माता का बहुत अधिक हाथ रहा है इनके सबके सब पुत्र बड़े बहादुर, देशभक्त, वीर और त्यागी निकले । जो भी व्यक्ति इस पवित्रात्मा महिला के संसर्गम में आया, वही इनके गुणो पर मुग्ध हो गया । ये समस्त बंगाल में प्रसिद्ध क्रान्तिकारी माता के नाम से विख्यात हैं ।