साधुओं की कहानी | Sadhu Santo Ki Kahani in Hindi
घटना सन् १९३८ की है । तत्कालीन ब्रिटिश राज्य के पोलिटिकल एजेंट कप्तान बार्ड, पोलिटिकल सेक्रेटरी डब्ल्यू.एच.मैकनाइटन, मिलिटरी सेक्रेटरी डब्ल्यू.जी.ओसवान आदि अंग्रेजों का एक दल राजनैतिक बातचीत के लिए पंजाब के राजा रणजीत सिंह के पास गए । बातचीत के बाद इन लोगों ने महाराजा से उनके राज्य के एक विचित्र योगी साधु से मिलने की इच्छा प्रकट की, जिसके बारे में उन लोगों ने अनेक अद्भुत बातें सुन रखी थीं ।
इस योगी की बड़ी प्रसिद्धि थी । राजा ने उस योगी साधु को बुला भेजा तथा उनसे कोई यौगिक क्रिया दिखाने को कहा । योगी ने राजा, उनके अनेक सरदारों तथा अंग्रेज अफसरों की उपस्थिति में अपने मुंह, नाक एवं कानों के छिद्रों को छोड़कर शरीर के सभी रोमकूपों को मोम से बंद करवा लिया, ताकि उन मार्गों से उनके शरीर में वायु न जा सके ।
उसके बाद योगी साधु वहीं समाधिस्थ हो गया । वहां उपस्थित अफसरों में से एक जनरल बेनटूरा ने अपनी देखरेख में योगी के समाधिस्थ शरीर को एक मजबूत बोरे में बंद कर बोरे को मोहरबंद कराया । फिर उस बोरे को एक संदूक में बंद कर उसे एक गड्ढे में दबा दिया गया तथा उस पर जौ को बो दिया गया । इतना सब करने के बाद भी उस स्थान के चारों ओर मिलिटरी का पहरा बैठवा दिया गया । योगी साधु जमीन के अंदर एक-दो नहीं, पूरे दस महीने तक समाधिस्थ पड़ा रहा ।
दस महीने के बाद उन्हीं अंग्रेज अफसरों के सामने वह गड्ढा खोदा गया । एक अंग्रेज कप्तान ने स्वयं अपने हाथ से संदूक निकाला तथा उससे बोरा निकाल कर उसकी मोहर तोड़ी । उस समय वे यह देखकर चकित रह गए कि योगी साधु के शरीर की चमड़ी पहले की ही तरह तरोताजा थी । जांच करने पर योगी साधु की नाड़ी तथा दिल की धड़कन बिलकुल बंद पाई गई, किन्तु उसके शरीर को देखकर सब उसे जीवित मानने को बाध्य हो गए । पुनः जांच पर पाया गया कि उसका सारा शरीर तो अवश्य ठंडा था, किन्तु उसका कपाल गर्म था । योगी साधु को जब गर्म पानी से स्नान कराया गया, तो धीरे-धीरे उसे होश आने लगा तथा देखते ही देखते वह पहले की तरह ही पूर्ण स्वस्थ दिखाई देने लगा ।
भारत उस योगी साधु के इस आश्चर्यजनक प्रदर्शन का वर्णन तत्कालीन मिलिटरी सेक्रेटरी डब्ल्यू.जी. ओसबर्न के संस्मरणों में आज भी सुरक्षित है ।