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व्हेल के पेट में दो दिन । Two day in the stomach of a whale

व्हेल के पेट में दो दिन । Two day in the stomach of a whale

ये बात है सन् १८९१ की । एक अंग्रेज मछुआरा अपने जहाज और दल-बल के साथ व्हेल मछली के शिकार के लिए निकला था । आकलैंड द्वीप के पास उसे एक विशालकाय व्हेल दिखाई पड़ी । दो नावों की मदद से उस व्हेल पर भालों के द्वारा आक्रमण किया गया । व्हेल ने बचने के लिए पलटा खाया, तो उसकी पूंछ की चपेट में नाव आ गई । एक नाविक तो तत्काल डूब गया और दूसरा जेम्स बर्टली गायब हो गया । उसे व्हेल ने निगल लिया था । ऐसा निगला हुआ व्यक्ति जीवित बच जाएगा, इसकी कौन आशा कर सकता है ? पर बर्टली निराश नहीं हुआ ।

उसने अपना चाकू किसी प्रकार निकाला तथा बड़ी हिम्मत के साथ व्हेल का पेट चीरना शुरू कर दिया । पेट के अंदर फसे रहने की जकड़न कुछ करने नहीं दे रही थी, फिर भी जेम्स बर्टली ने अपना प्रयत्न जारी रखा तथा पेट चीर कर बाहर निकलने की कोशिश करता रहा ।

दो दिन की तलाश के बाद उसे बेहोशी की अवस्था में तैरता पाया गया । नाविक उसे किसी प्रकार बाहर ले आए तथा अस्पताल में भर्ती किया । तीन हफ्ते में जाकर कहीं उसके मस्तिष्क ने ठीक काम करना शुरू किया । उसका सारा शरीर पीला हो गया और चमड़ी का रंग अंत तक वैसा ही बना रहा ।

बर्टली का संस्मरण ‘डेट डिबैट्स’ पत्र में छपा है । उसने पत्रकरो को बताया है कि व्हेल के मुंह में मैंने एक अंधेरी गुफा में घसीटे गए व्यक्ति की तरह प्रवेश किया । उसके तालाब जैसे पेट में सांस लेने की तो गुंजाइश थी, पर गर्मी तेज पड़ रही थी । मानो उबाल आ रहा हो, फिर भी मैंने साहस से काम लिया । कमर में से कठिनाई से ही चाकू निकाला, जो मछली की आंतों में बुरी तरह कसा हुआ था । हिलने-डुलने की गुंजाइश नहीं थी, फिर भी किसी तरह भीतर से मछली का पेट चीरने का सिलसिला चलाया, पेट की परत इतनी मोटी तथा उसकी भीतरी अंग-रचना इतनी जटिल थी कि उसके परतों को फाड़ते- फाड़ते घंटों लग गए, जब कहीं बाहर निकलने का रास्ता बन सका ।

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