विक्रम बेताल की कहानी – किसकी पत्नी | Vikram Betal Second Story in Hindi
जब विक्रम उस पेड़ के पास आया तो उसने बेताल को यथा-स्थान और यथा-स्थिति में लटके पाया । विक्रम ने उसे उतारकर कंधे पर डाला और अपनी राह पर चल दिया ।
“तुम हठी हो विक्रमादित्य ! आखिर तुम फिर आ गए मुझे लेने।” बेताल बोला–“खैर! मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूं ताकि तुम थकावट महसूस न करो।”
विक्रम खामोश रहा । बेताल ने कहानी सुनानी आरम्भ की –
यमुना के तट पर धर्मस्थल नामक एक नगर था । वहां केशव नामक एक ब्राह्मण रहता था, जो बड़ा ज्ञानी-ध्यानी और तपस्वी था । उसके परिवार में उसकी पत्नी, पुत्र और एक पुत्री थे ।
पुत्र और पुत्री दोनों ही जवान हो चुके थे, अतः ब्राह्मण परिवार को पुत्री के विवाह की चिन्ता सताने लगी थी । पुत्री का नाम मधुमालती था । वह बड़ी ही रूपवती और गुणवती थी । ब्राह्मण केशव, उसकी पत्नी और पुत्र तीनों ही मधुमालती के लिए किसी योग्य वर की तलाश में जुट गए ।
एक दिन केशव एक यजमान के यहां गया हुआ था, जहां एक बड़ा ही रूपवान और गुणी ब्राह्मण युवक भी आया हुआ था । केशव को वह लड़का अपनी पुत्री के योग्य वर लगा, उसने यजमान से उस युवक के कुल-गोत्रादि के विषय में पूछा, फिर उस युवक के पिता से मिलने गया और बातचीत करके अपनी बेटी का रिश्ता उसके साथ तय कर दिया ।
उधर, उसकी पत्नी ने भी एक गुणी युवक से अपनी बेटी का रिश्ता तय कर दिया । ईश्वर की करनी देखिए कि उसी दिन उसके भाई ने भी अपनी बहन का रिश्ता तय कर दिया । उसका होने वाला बहनोई उसका मित्र ही था । तीनों अपने-अपने किए अनुसार कन्या के विवाह की चिन्ता से मुक्त हो गए । अब तीनों एक-दूसरे को यह खुशखबरी देने को आतुर थे । पत्नी अपने पति और बेटे का घर बैठी बेसब्री से इन्तजार करने लगी । पुत्र भी शीघ्र घर लौट आया और अपने पिता का इन्तजार करने लगा । वह मां और पिता को एक साथ यह खबर सुनाना चाहता था । शाम होते-होते ब्राह्मण भी लौट आया ।
शाम को जब पूरा परिवार एकत्रित होकर बैठा तो सभी के चेहरे तनावमुक्त और प्रसन्नता से खिले हुए थे । ऐसा लगता था मानो सभी के दिलो-दिमाग से एक भारी बोझ उतर गया हो ।
ब्राह्मण केशव ने सबसे पहले कहा – “आज मैं तुम दोनों को एक खुशखबरी सुनाऊंगा।”
मेरे पास भी आप सबको सुनाने के लिए एक खुशखबरी है।” केशव की पत्नी भी उत्साहित होकर बोली ।
“मां-पिताजी ! मैं भी आपको आज एक ऐसी खुशखबरी सुनाऊंगा जिसे सुनकर आपकी सारी चिंताएं दूर हो जाएंगी।” ब्राह्मण का पुत्र बोला- “मैंने अपने एक मित्र के साथ बहन का रिश्ता पक्का कर दिया है।”
“क्या ?” ब्राह्मण चौका–”एक सुयोग्य युवक के साथ मैंने भी उसका रिश्ता पक्का कर दिया है।”
“और…।” हैरानी में डूबी केशव की पत्नी बोली- “मैं भी आपको यही बताना चाहती थी कि एक सुयोग्य व गुणी युवक के साथ मैंने भी अपनी मधुमालती का रिश्ता पक्का कर दिया है।”
एक-दूसरे की बात सुनकर तीनों ही स्तब्ध रह गए ।
अब क्या होगा ? यह तो नई मुसीबत खड़ी हो गई ।
अब किस वर को इन्कार करें और किसे स्वीकार करें ? इत्तफाक की बात तो यह थी कि तीनों ने एक ही दिन बारात ले आने के लिए लड़के वालों को बताया था । आखिर विवाह की तिथि आ गई किन्तु कोई निर्णय न हो सका ।
पूरा परिवार एक अजीब धर्म संकट में फंस चुका था । शाम होने पर तीनों वर भी अपने- अपने संबंधियों के साथ उपस्थित हो गए । तीनों ही मधुमालती से विवाह करने का दावा करने लगे । मधुमालती की खूबसूरती देखकर तो वे दावे और भी अधिक प्रबल हो उठे ।
उधर, मधुमालती भी उन तीनों युवकों से प्रभावित दिखाई दे रही थी- तीनों ही गुणी, बुद्धिमान और रूपवान थे । किसको वरूं ? वह स्वयं हैरान थी ।
किन्तु तभी ऐसा हुआ कि न जाने कहां से एक भयंकर काला सर्प निकला और मधुमालती को डसकर गायब हो गया । काला सर्प उसका काल बनकर आया और सारे विवाद पर विराम लगा गया । मधुमालती अगला सांस भी नहीं ले पाई थी कि किस्सा खत्म ।
चारों ओर हाहाकार मच गया । वे तीनों युवक इस प्रकार विलाप करने लगे मानो उनकी ब्याहता मर गई हो । मगर अब रोने-पीटने से क्या होना था ? अब तो किस्सा ही खत्म हो गया था । समाज-बिरादरी ने मिलकर मधुमालती का अंतिम संस्कार कर दिया ।
उन तीनों युवकों में से एक का नाम माधव था । दूसरे का वामन और तीसरे का मधुसूदन था । माधव नामक युवक ने मालती की चिता ठंडी होने के बाद उसकी हड्डियां एक पोटली में बांधकर अपने पास सुरक्षित रख लीं । वह वन की ओर चला गया और तपस्या करने लगा । वामन नामक युवक ने मधुमालती की राख एक पोटली में बांधी और वहीं एक कुटिया बनाकर रहने लगा ।
मधुसूदन भी साधु वेश धारण करके वन को निकल पड़ा । मधुसूदन भ्रमण करता एक नगर में जा पहुंचा जहां वह एक तांत्रिक के घर ठहर गया । तांत्रिक देर रात गए अपने घर भोजन करने आया तो किसी बात पर वह अपनी पत्नी से क्रुद्ध हो उठा । उसी गुस्से में उसने अपने बच्चे को उठाकर चूल्हे की आग में झोंक दिया । लड़का जलकर मर गया । इस पर उसकी पत्नी रोने-चीखने लगी ।
यह देखकर मधुसूदन को क्रोध आ गया । वह अपने आसन से उठा और क्रोधावेश में बोला- “मैंने तो आप लोगों को धर्मात्मा और सज्जन समझकर यहां रुकने और भोजन करने का मन बनाया था, किन्तु तुम तो एकदम दुष्ट हो । ऐसा क्रोध भी किस काम का कि अपने बच्चे को ही तुमने आग में झोंक दिया । अब मैं यहां एक पल भी नहीं रुक सकता।“
“आप इस प्रकार क्रोधित होकर मत जाइए महाराज ! मेरे पास एक संजीवनी पोथी है, उसके द्वारा मैं इस बच्चे को अभी जीवित कर देता हूं।” तांत्रिक ने कहा । “
“संजीवनी पोथी ?” मधुसूदन चौंका ।
“हां महाराज!” तान्त्रिक ने कहा – “मैं अभी आपको उसका चमत्कार दिखाता हूं।” कहकर तांत्रिक भीतर गया और वहां से एक पोथी निकाल लाया, फिर उसने बच्चे की राख और हड्डियां एकत्रित करके मंत्र पढ़े और बच्चे पर अभिमंत्रित जल छिड़ककर उसे जीवित कर दिया । यह चमत्कार देखकर मधुसूदन आश्चर्यचकित रह गया ।
यह तो वाकई एक अनोखी घटना थी ।
यह क्रिया देखकर मधुसूदन के मन में पाप आ गया । उसने सोच लिया कि वह किसी प्रकार इस पोथी को ले जाकर अपनी मधुमालती को जीवित कर लेगा । उसी रात उसने मौका देखकर वह पोथी हथिया ली और सवेरा होने से पहले ही वहां से रफूचक्कर हो गया । वह जंगल में उस स्थान पर पहुंचा जहां माधव नामक युवक मधुमालती की अस्थियां लेकर अपनी कुटिया में बैठा तपस्या में लीन था ।
उसने उसे पूरी बात बताई कि किस प्रकार मधुमालती को जीवित किया जा सकता है । फिर उन्होंने आपस में सहमत होकर वामन को खोज निकाला जिसके पास मधुमालती की चिता की राख थी ।
तीनों युवकों ने आपस में मंत्रणा करके मधुमालती को जीवित करने का निश्चय कर लिया । उस समय उनमें से किसी के भी मन में यह विचार न उभरा कि जीवित होने के बाद मधुमालती पर किसका अधिकार होगा ।
तीनों ने मिलकर पहले उसकी अस्थियां जोड़ीं, फिर उन अस्थियों पर राख डाली, सबसे अन्त में मधुसूदन ने संजीवनी पोथी के माध्यम से उसे जीवित कर दिया । मालती जीवित हो गई । इस बार उसका रूप पहले से भी अधिक सुन्दर था । उसे देखकर तीनों की नीयत डोल गई ।
अब तीनों ही उस पर अपनी पत्नी होने का दावा करने लगे । मधुसूदन का तर्क था कि उसने संजीवनी पोथी लाकर उसे जीवित किया है । अतः मालती पर उसका अधिकार है, क्योंकि यदि वह संजीवनी पोथी न लाता तो मालती के जीवित होने की कोई सूरत ही न बनती ।
वामन का कहना था कि यदि वह राख संभालकर न रखता तो भला यह कैसे जिन्दा हो पाती ।
माधव का कहना था कि यदि उसके पास उसकी अस्थियां न होतीं तो भला मालती को कौन जीवित कर सकता था ?”
विक्रम बेताल के सवाल जवाब
बेताल के सवाल :
इतनी कहानी सुनाकर बेताल खामोश हो गया, फिर एक क्षण रुककर उसने विक्रम को सम्बोधित किया – “अब तुम ये बताओ विक्रम कि वास्तव में मालती किसकी पत्नी हुई ?”
राजा विक्रमादित्य के जवाब :
विक्रम कुछ देर खामोशी से कुछ सोचता रहा, फिर बोला-“मेरे न्याय के अनुसार मालती को वामन की पत्नी होना चाहिए।”
“कैसे?” उत्सुकता से बेताल ने पूछा ।
“सुनो बेताल ! इस संसार में रिश्ते-नातों की अपनी अलग ही गरिमा है, इसलिए इसका निर्णय करते समय हमें इसका ध्यान अवश्य ही रखना होगा । प्रत्येक रिश्ते का कोई न कोई कर्तव्य है । उन तीन मित्रों ने स्वेच्छा से जो कार्य किया, उसके अनुसार इनका मालती से जो रिश्ता बनता है, वह इस प्रकार है – मधुसूदन ने क्योंकि उसे जीवनदान दिया था, इसलिए वह उसके पिता के तुल्य था । माधव ने उसकी अस्थियों को संजोकर रखा था, यह बेटे का कर्तव्य होता है, इसलिए वह उसके पुत्र के तुल्य हुआ । वामन ने चूंकि उसकी राख़ रखी थी, अतः यह पति का कर्तव्य माना जाता है, इसलिए मालती वामन की पत्नी हुई ।
“आह…हा…हा…।” विक्रम की बात समाप्त होते ही बेताल ने एक जोरदार हंसी लगाया – “तुमने बिल्कुल ठीक न्याय किया विक्रम – किन्तु मेरे मना करने के बावजूद भी तुम बोल पड़े, इसलिए मैं चला।”
हँसता बेताल विक्रम के कंधे से उड़कर विपरीत दिशा की ओर चला ।
राजा विक्रमादित्य तेजी से उसके पीछे लपका । मगर बेताल उसके हाथ नहीं आया और उसी वृक्ष पर जाकर उलटा लटक गया ।