राजा विक्रमादित्य का इतिहास | ज्ञानी का गुण | Vikramaditya Akhand Bharat

राजा विक्रमादित्य का इतिहास | ज्ञानी का गुण | Vikramaditya Akhand Bharat

“देखो बेताल… मैं तुम्हारे टुकड़े-टुकड़े कर डालूंगा।”

“नहीं महाराज ! चलो। मैं चलता हूं।”

बेताल राजा विक्रम की पीठ पर इस प्रकार लटक गया जैसे कोई बंदर का बच्चा मां की गरदन से लटक जाता है । विक्रम उसे लटकाकर चल पड़ा । अभी थोड़ा ही रास्ता पार हो पाया था कि बेताल बोला -” राजा विक्रम कहानी सुनो।”

“बकवास बंद करो। मैं तुम्हारी एक न सुनूंगा।”

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“राजा विक्रम ! इतना गुस्सा न करो । रास्ता आराम से कटेगा । सुनो — और बेताल कहने लगा –

राजा विक्रम ! मगध देश में एक धर्मात्मा ब्राह्मण रहता था । उसके दो पुत्र थे । पुत्र बड़े ही मेधावी थे । बड़ा पुत्र तो स्पर्श मात्र से यह बतला सकता था कि कौन क्या है अथवा कौन-सी वस्तु है, किसी भी तिजोरी को वह बाहर से ही सूंघकर बतला सकता था कि उसमें क्या-क्या वस्तुएं हैं । हे राजा विक्रम ! यह लड़का जमीन में दबी सम्पत्ति को सूंघकर अपनी जीविका उपार्जन करता था । जमीन सूंघकर वह बतला सकता था कि वहां पर सम्पत्ति दबी है या नहीं ? लोग आते थे, उसको अपने साथ ले जाया करते थे । वह अपना शुल्क लेता और जवाब देता था । उसके हां कहने पर खजाना अवश्य निकलता था । इस प्रकार जमीन सूंघकर वह इस बात को भी बता सकता था कि कहां पर कुआं या सरोवर बनवाने पर खारा या मीठा पानी निकलेगा ? उसकी राय लेकर ही संपन्न लोग कुआं या सरोवर बनवाया करते थे । इस विषय का वह अकेला गुणी था ।

दूसरा लड़का स्त्री-पारखी था । किसी भी स्त्री को देखकर वह बतला सकता था कि वह किस गुण और स्वभाव वाली है । अतएव अपने विवाह के संबंध में लोग उसकी राय लिया करते थे । ब्राह्मण का यह लड़का अपने इस गुण के कारण अच्छी जीविका पाता था । यह उसका व्यवसाय था । दोनों भाइयों की घ्राण शक्ति गजब की थी ।

राजा विक्रम ! जो जन्म लेता है, वह मृत्यु को प्राप्त होता है । धर्मात्मा ब्राह्मण मरणासन्न हो गया । उसे लकवा मार गया था ।

दोनों पुत्रों ने बड़ी सेवा की । वैद्यराज ने इलाज किया और कहा – “कछुआ ले आओ। उससे इनके लकवे का इलाज सम्भव है।”

दोनों भाइयों ने गंध के कारण कछुआ लाने से इन्कार कर दिया । एक अन्य सेवक भेजा । सेवक लेने गया । उसका धींवर से झगड़ा हो गया । राजा के सिपाही सेवक को पकड़कर ले गए । सेवक को छुड़ाने दोनों भाई गए । राजा से सब वृत्तांत कहा ।

राजा ने पूछा – “जब तुम्हारे पिता बीमार हैं तो तुम कैसे पुत्र हो, जो स्वयं कछुआ लेने नहीं गए ।”

दोनों ने गंध की बात कही ।

सुनकर राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ । उसने दोनों भाइयों से कहा – ”हम तुम्हारे पिता का इलाज कर देंगे। तुम लोग हमारी सेवा में रहो।”

दोनों लड़कों ने बात मान ली ।

हे राजा विक्रम ! राजा के इलाज के कारण वह धर्मात्मा ब्राह्मण शीघ्र ठीक हो गया । दोनों ब्राह्मण पुत्र राजा की सेवा में लग गए ।

एक दिन की बात है । एक कीमती हार को लेकर दो व्यक्ति आपस में लड़ते हुए राजदरबार में आए । दोनों हार अपना बतला रहे थे । दोनों अपने-अपने प्रमाण दे रहे थे । राजा ने तब दूसरे लड़के से कहा – ‘फैसला करो, हार किसका है।”

धर्मात्मा ब्राह्मण के लड़के ने बारी-बारी से दोनों के हाथ सूंघे । फिर हार को सूंघकर उसने यह बतलाया की हार मोटे आदमी का है । मोटा आदमी प्रसन्नता में चीख पड़ा-महाराजाधिराज की जय हो। उचित निर्णय है।”

दूसरे ने भी बात मान ली । “तब तुम हार अपना क्यों बतला रहे थे ?” राजा ने पूछा ।

‘अन्नदाता ! क्षमा करो । हमने इन लड़कों के बारे में सुन रखा था, इस कारण परीक्षा लेने का मन हो गया । हम ब्राह्मण हैं, महाराज।”

राजा प्रसन्न हो गया । लड़के की योग्यता की सबने भूरि-भूरि प्रशंसा की । दोनों का और भी सम्मान बढ़ गया । समय बीतता गया । राजा के राज्य में एक अत्यन्त रूपवती गणिका आई । उसके सौन्दर्य का समाचार राजा को मिला । राजा ने धर्मात्मा ब्राह्मण के लड़कों से कहा कि वह परखकर बताए, गणिका कैसी है ?

दोनों ने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया । दोनों गणिका के पास गए । उस समय वह अपने बगीचे में झूला झूल रही थी । दोनों ने उसको देखा । वह दोनों उसके पास गए । गणिका ने उनका स्वागत किया । धर्मात्मा ब्राह्मण का बड़ा लड़का गणिका पर मोहित हो गया । गणिका भी उसकी ओर आकर्षित हो गई । वार्तालाप कर दोनों लौट आए ।

राजा के पास गए ।

“कैसी है वह ?”

‘अनुपम सुन्दरी है, महाराज !” बड़ा लड़का बोला ।

“गुणों की क्या बात है ?”

“‘अन्नदाता ! गणिका सरल स्वभाव की है । उत्तम चरित्र है, पर वर्णसंकर संतान है । उसका पिता ब्राह्मण और मां शूद्र है । इसी विवशता के कारण उसका वरण करने के लिए कोई तैयार नहीं है । फलतः वह गणिका बन गई है।”

राजा ने गणिका को अपने दरबार की नर्तकी बना दिया । वह राजा की बात सुनकर हैरान रह गई ।

“महाराज ! आपको मेरे माता-पिता का ज्ञान कैसे हो गया ? यह तो अत्यन्त गोपनीय विषय है । बोली – आश्चर्य!”

राजा ने धर्मात्मा ब्राह्मण के लड़के का गुण बतला दिया ।

गणिका का प्रेम और बढ़ गया ।

उसने बड़े लड़के को अपने निवास पर आमंत्रित किया तथा भोग-विलास किया । धर्मात्मा ब्राह्मण का बड़ा लड़का बोला -“तुम तो मुझे दुख दे रही हो।” “क्यों ?”

“तुम्हारे उस गद्दे में एक बाल है, वह चुभ रहा है।”

“हां, प्रिये ।”

उस शानदार गद्दे से सेमल की रुई की तहों में से सचमुच एक बाल निकला । गणिका चकित रह गई । वह गद्गद हो गई । उनका प्रेम और प्रगाढ़ हो गया । दोनों आनन्दयुक्त रहने लगे ।

विक्रम बेताल के सवाल जवाब

बेताल के सवाल :

ऐ न्यायप्रिय राजा विक्रम ! बतलाओ कि दोनों में से कौन अधिक गुणी है ? बड़ा लड़का या छोटा लड़का ? विक्रम से बेताल ने अपना प्रश्न कर दिया । विक्रम चुप रह गया ।

बेताल ने अपना प्रश्न दोहराया, जवाब दो विक्रम ।”

राजा विक्रमादित्य के जवाब :

“देखो बेताल।” राजा विक्रम ने कहा – “ज्ञानी के ज्ञान की कोई सीमा नहीं होती । दोनों अपने स्थान पर योग्य हैं।”

“रुई में छिपा बाल लड़के को चुभा क्यों?” बेताल ने कहा ।

“वह बाल चुभा इसलिए कि उसमें गंध थी।” विक्रम ने कहा—“वह किसी नीच पशु का बाल रहा होगा।”

“तुम ठीक कहते हो राजा विक्रम!” बेताल ठठाकर हंस पड़ा।

उसने भागने का प्रयास किया, पर इस बार वह विक्रम की पकड़ से निकल न सका । छटपटाकर रह गया । राजा विक्रम अपनी इस सफलता पर खुश होकर तेज-तेज चल पड़ा । अब वह बेताल को भागने नहीं देगा । उसे लेकर श्मशान तक जरूर पहुंच जाएगा ।

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