यतीन्द्रनाथ दास | जतीन्द्रनाथ दास | Yatindra Nath Das | Jatindra Nath Das

यतीन्द्रनाथ दास | जतीन्द्रनाथ दास | Yatindra Nath Das | Jatindra Nath Das

यतीन्द्रनाथ दास वङ्किम बिहारी दास के पुत्र तथा स्वर्गीय महेन्द्रनाथ दास मुन्सिफ के पौत्र थे । यतीन्द्रनाथ दास का जन्म सन् १९०४ में हुआ था । वह कलकत्ते के भवानीपुर वाले इन्स्टीट्यूशन के छात्र थे । यतीन्द्रनाथ दास ने सन् १९२० में मैट्रिक्युलेशन की परीक्षा पास की । १९२१ में असहयोग आन्दोलन में पड़कर इन्होने कालेज मे पढ़ना छोड़ दिया और कांग्रेस का कार्य करने लगे ।

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१९२१ में पश्चिम बंगाल में भयंकर बाढ़ आयी थी । उस समय दूसरे कार्यकर्ताओ के साथ बाढ़ पीड़ित स्थानों में जाकर इन्होने अपनी शक्ति भर बाढ़ पीड़ितों की सहायता की थी । वहा से इन्होने आते ही भद्र-अवज्ञा के अपराध में गिरफ्तार कर लिये गये । किन्तु चार दिन के बाद छोड़ दिये गये । उस समय यतीन्द्रनाथ दास के पिता ने इन सभी कामो को करने में रुकावट डाली । पिता के साथ मतभेद होने के कारण यतीन्द्रनाथ दास ने घर-बार छोड़ दिया और देश-सेवा का व्रत ले लिया ।

सन् १९२१ के अन्तिम दिनों में यतीन्द्रनाथ दास ने फिर भद्र अवज्ञा (सिविल डिसओवीडियन्स) करने के लिये गिरफ्तार किये गये । इस बार इन्हे एक महीने की सख्त कैद हुई, जेल से वापस आकर इन्होने फिर अपने को देश-सेवा-हित मे अर्पण कर दिया । सन् १९२२ में बड़े बाज़ार में धरनाके समय आप फिर दूसरे ६ कार्यकर्तांओं के साथ गिरफ्तार कर लिये गये और इस बार इन्हे ५ महीने की कडी कैद की सज़ा मिली । यतीन्द्रनाथ दास जी हुगली जेल में रखे गये थे । कहा जाता है, कि जेल में इनके साथ बड़ा दुर्व्यहार किया गया । तीन महीने बाद जब यतीन्द्रनाथ दास जी जेल से वापस आये, उस समय उनके शरीर में हड्डियां ही शेष रह गयी थीं । यतीन्द्रनाथ दास जी डेढ़ मास तक रोग-शय्या पर पड़े रहे ।

इसके बाद यतीन्द्रनाथ दास जी को उनके पिता मनाकर घर वापस ले गये । सन् १९२२ में ये आशुतोष कालेज में भर्ती हो गये । कालेज के समय के बाद आप अपनी मातृभूमि को गुलामी की जंजीर से मुक्त करने के लिये जी-तोड़ परिश्रम करने लगे । १९२४ में यतीन्द्रनाथ दास दक्षिण कलकत्ता कांग्रेस कमिटी के सहायक मन्त्री चुने गये । यतीन्द्रनाथ दास जी अपनी ज़िम्मेदारी को बड़े उत्साह और योग्यता के साथ पूरा करने लगे । ९ नवम्बर सन् १९२८ को आधी रात के समय यतीन्द्रनाथ दास जी अपने मकान में बंगाल आडिनेन्स के अनुसार गिरफ्तार किये गये, पहले वह कलकत्ता प्रेसिडेन्सी जेल में रखे गये । बाद को वहाँ से हटा कर इनको मेदिनीपुर सेण्ट्रल जेल में भेज दिया गया । जहाँ पर जेठ की भीषण गर्मी के कारण यतीन्द्रनाथ दास जी का शरीर इतना अधिक गर्म हो उठा, कि वह मृत्यु के द्वार तक पहुँच गये किन्तु समय पर दूसरे जेली साथियों की मदद पहुच जाने के कारण वह मृत्यु-यात्रा से बच गये । इस घटना के कारण चिकित्सा के लिये फिर यतीन्द्रनाथ दास जी कलकत्ता सेण्ट्रल-जेल भेज दिये गये । सम्भवतः इस बार यहाँ से फिर हटा दिये जाने का कारण यह था, कि उसी समय जेल में ही खुफिया पुलिस के विशेष सुपरिटेन्डंट की हत्या कर डाली गयी थी । ढाका जेल में यतीन्द्रनाथ दास को बड़ी तकलीफे झेहेलनी पड़ीं । कुछ दिनों के बाद वह मैमनसिंह सेंट्रल जेल भेज दिये गये । यहाँ पर भी उनसे व्यवहार बड़ा खराब किया जाने लगा और एक दिन जेल सुपरिएटेण्डएट के साथ हाथा-पायी भी हो गयी इसके फलस्वरूप यतीन्द्रनाथ दास जी को इस बेरहमी के साथ पीटा गया, कि वह मरते-मरते बचे ।

यतीन्द्रनाथ दास जी के ऊपर मारपीट, दुव्यवहार एवं बहुत से अभियोंग लगाकर मामला चलाया गया । इस पर उन्होंने उपवास करना और २३ दिन तक खाना-पीना छोड़े रहे । अन्त में बंगाल सरकार के बीच में पड़ने से इन्होने उपवास करना छोड़ दिया । सुपरिए्डेएट को अपनी करतूत के लिये माफी माँगनी पड़ी और यतीन्द्रनाथ दास जी की जितनी मांगे थीं, सब पूरी की गयीं । यद्यपि इस प्रकार उस अनशन का अन्त कराया गया; किन्तु सरकार ने मन-ही-मन इसका बदला चुकाने का निश्चय कर लिया था । अत एव एक दूसरे साथी के साथ वे मियाँवाली जेल ( पंजाब प्रान्त) को भेज दिये गये । यहां पर यतीन्द्रनाथ दास जी की कष्टों की सीमा न रही । वह यहां हृद से अधिक सताये जाने लगे । किसी तरह बसन्त ऋतु बीत गया; किन्तु गरमी में वहाँ की गरमी अत्यन्त भयंकर हो उठी । जो कमरा, रहने को दिया गया था, उसमें हवा आने जाने के लिये खिड़कियाँ भी न थीं । अन्त मे नौबत यहाँ तक पहुच गयी, कि वे फिर अनशन करने का विचार करने लगे । किन्तु इसी बीच वे फिर कलकते वापस भेज दिये गये । कुछ दिनों के बाद ये फिर वहाँ से हटाकर चटगाँव ज़िले के एक छोटे से गाँव में नज़रबन्द करके रखे गये ।

घर से जाने के कुछ ही दिन बाद यतीन की बहन का स्वर्गवास हो गया । किन्तु यतीनदास ने हिम्मत नहीं छोड़ी । २९ सितम्बर १९२८ को नज़रबन्दी की हालत से रिहा कर दिये गये ।

वापस आते ही वह फिर देश के काम में लग गये । यद्यपि वह उस समय बहुत कमज़ोर थे, फिर भी कलकत्ता कॉंग्रेस के अधिवेशन के अवसर पर वह दृढ़ और सुसंगठित स्वयंसेवक दल स्थापित करने में कोई कसर बाकी नहीं रखे । कॉग्रेस अधिवेशन समाप्त हो जाने के बाद वह दक्षिण कलकत्ता में स्वयं सेवक दल सम्हालने का भार लिया और वह उसके आफिसर इन-कमाण्ड बनाये गये । यतीन्द्रनाथ दास जी फिर अपना कालेज-जीवन आरम्भ किया और बंगालवासी कालेज में वह बी.ए. क्लास में अध्ययन करने लगे ।

इसके बाद यतीन्द्रनाथ दास जी फिर लाहौर हत्याकाण्ड और षडयन्त्र में सम्मिलित होने के अभियोग में गिरफ्तार कर लाहौर भेज दिये गये और वहीं ६२ दिनो तक अनशन करने के बाद वह अमर लोक को सिधार गये ।

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