योगिनी साधना | योगिनी साधना मंत्र | योगिनी साधना कैसे करें | Yogini Sadhana in Hindi | Yogini Sadhana Mantra
अथ प्रातः समुत्थाय कृत्वा स्नानादिकं शुभम् ।
प्रसादञ्च समासाद्य कुर्य्यादाचमनं ततः ।।
प्रणवान्ते सहस्रारहुँफट्दिग्बन्धनं चरेत् ।
प्राणायामं ततः कुर्य्यान्मूलमंत्रेण मंत्रवित् ।।
षडङ्गमायया कुर्य्यात्पद्ममष्टदलं लिखेत् ।
तस्मिन्पद्मे महामंत्रं बीजन्यासं समाचरेत् ।।
पीठदेवीं समावाह्य ध्यायेद् देवीं जगत्प्रियाम् ।
पूर्णचन्द्रनिभां गौरीं विचित्राम्बरधारिणीम् ।।
पीनोत्तुंगकुचां वामां सर्वेषामभयप्रदाम् ।
इति ध्यात्वा च मूलेन दद्यात्पाद्यादिकं शुभम् ।।
पुनर्धूपं निवेद्यैव नैवेद्यं मूलमन्त्रतः ।
गन्धचन्दनताम्बूलं सकर्पूरं सुशोभनम् ।।
प्रणवान्ते भुवनेशि ह्यागच्छ सुरसुन्दरि ।
वह्नेर्भार्या जपेन्मंत्रं त्रिसन्ध्यन्तु दिने दिने ।।
सहस्रैकप्रमाणेन ध्यात्वा देवीं सदा बुधः ।
मासान्ते व्याप्य दिवसं बलिपूजां सुशोभनाम् ।।
कृत्वा च प्रजपेन्मंत्रं निशीथे सति सुन्दरि ।
सुदृढं साधकं मत्वाऽऽयाति सा साधकालये ।।
सुप्रसन्ना साधकाग्रे सदा स्मेरमुखी ततः ।
दृष्ट्वा देवीं साधकेन्द्रो दद्यात्पाद्यादिकं शुभम् ।।
सुचन्दनं सुमनसो दत्वाभिलषितं वदेत् ।
यद्यत्प्रार्थयते सर्वं सा ददाति दिने दिने ।।
प्रातःसमय उठकर स्नानादि नित्यक्रिया करके “ हौं” इस मंत्र से आचमन कर “ ओ हौं फट् “ इस मन्त्र से दिग्बन्धन करे, फिर मूलमंत्र से प्राणायाम कर “ ह्राँ अंगुष्ठाभ्यां नमः “ इत्यादिक्रम से करांगन्यास करे, फिर अष्टदल पद्म अंकित कर उस पद्म में देवी का बीज न्यास करे और पीठ देवता का आवाहन करके, सुर-सुन्दरी का ध्यान करे
“ पूर्णचन्द्रनिभाम् “ पूर्ण चन्द्रमा के समान कान्तिवाली गौरी विचित्र वस्त्र धारण किये, पीन और ऊँचे कुचों से युक्त सबको अभय प्रदान करने वाली, इत्यादि ऊपर लिखित नियम से ध्यान करे । ध्यान के अन्त में मूल मंत्र से देवी की पूजा करे, मूल मन्त्र उच्चारणपूर्वक पाद्यादि देकर धूप दीप नैवेद्य गन्ध चन्दन और ताम्बूल निवेदन करे |
“ ओं ह्रीं आगच्छ भुवनेशि सुरसुन्दरी स्वाहा “ इस मंत्र से पूजा करनी चाहिये । साधक प्रतिदिन (त्रिकाल- संध्या) तीनों सन्ध्याओं में ध्यान करके एक-एक हजार मंत्र जप करे, इस प्रकार एक मास जप करके महीने के अंतिम दिन में बलि इत्यादि विविध उपहार से देवी की पूजा करे, पूजा के अन्त में पूर्वोक्त मंत्र जप करता रहे, इस प्रकार जप करने से अर्द्धरात्रि के समय देवी साधक के निकट आती हैं, देवी साधक को दृढ़प्रतिज्ञ जानकर उसके गृह में आती हैं । साधक देवी को अपने सम्मुख प्रसन्न और हास्यमुखी देखकर फिर पाद्यादि द्वारा पूजा करे और उत्तम चन्दन तथा सुशोभन पुष्प प्रदान करके अभिलषित वर की प्रार्थना करे, साधक देवी के निकट जो-जो प्रार्थना करेगा, देवी नित्य उपस्थित होकर वही प्रदान करेंगी ।