क्रिस्टोफर कोलंबस कौन था | क्रिस्टोफर कोलंबस हिस्ट्री | क्रिस्टोफर कोलंबस कहां का था | कोलंबस की यात्रा | Christopher Columbus History | Christopher Columbus in Hindi
विश्व की खोज-यात्राओं के संदर्भ में क्रिस्टोफर कोलंबस का नाम आज भी बड़े आदर के साथ लिया जाता है । वह एक ऐसा साहसी नाविक था, जिसके मन में भारत पहुंचने का स्वप्न भीतर ही भीतर पल रहा था । वह इटली के बंदरगाह जिनोआ (Genoa) से भारत की खोज करने निकला था । जब यात्रा करते-करते अंततः उसका दल भूमि के पास पहुंचा तो उसे लगा कि वह इंडिया (India) पहुंच गया, लेकिन वस्तुतः वह उत्तरी अमरीका के बहामा द्वीप समूह पर पहुंचा था ।
इन टापुओं को आज भी वेस्ट इंडीज कहा जाता है और वहां के निवासियों को वेस्ट इंडियन ।
कोलंबस का जन्म सन् १४५१ में इटली के जिनोआ नगर में हुआ था । वह बचपन से ही समुद्र यात्राओं का बड़ा शौकीन था । उसकी अभिलाषा थी कि वह यूरोप के पश्चिमी रास्ते से एटलांटिक महासागर को पार करके एशिया पहुंचे, लेकिन इस कार्य के लिए बहुत से धन और साधनों की आवश्यकता थी ।
एक गरीब जुलाहे का बेटा होने के कारण उसके लिए यह एक कठिन कार्य था । उसने सुना था कि पुर्तगाल का राजा जॉन द्वितीय (John II), इस प्रकार की योजना में काफी रुचि रखता है । कोलंबस ने जॉन द्वितीय से मुलाकात की लेकिन राजा के सलाहकारों ने उसकी इस महान योजना को एक पागलपन करार दिया ।
उसने इंग्लैंड के राजा हेनरी (Henry) को भी लिखा लेकिन वहां भी उसकी दाल न गली । इन सब असफलताओं के बावजूद भी कोलंबस ने हिम्मत न हारी और वह स्पेन आ गया ।
नई दुनिया की खोज से भाव-विभोर कोलंबस उस समय किसी भी विदेशी का स्पेन के राजा से मिलना कोई साधारण काम न था, लेकिन कोलंबस ने वहां के राजा से मिलने का दृढ़ निश्चय कर रखा था । वहां उसने कुछ अधिकारियों से मित्रता की । जल्दी ही वह स्पेन के राजा फर्डीनैंड (Ferdinand) और महारानी ईसाबेला (Isabella) से मिलने में सफल हो गया ।
उसने अपनी योजना इन दोनों के सामने प्रस्तुत की । उन दोनों ने उसकी योजना पर विचार करने का आश्वासन दिया । आशा-निराशा में डोलता कोलंबस उस दिन का इंतजार करने लगा जब उसकी योजना का परिणाम सुनाया जाना था ।
आखिरकार १ मई, १४८६ को उसकी प्रतीक्षा की घड़ियां समाप्त हो गयीं और १० साल से संजोया उसका सपना साकार होने की दिशा में प्रवृत्त हुआ । राजा फर्निंड और रानी ईसाबेला ने उसकी योजना को स्वीकार कर लिया और ऐलान किया कि वे उसकी समस्त यात्रा का खर्चा उठायेंगे ।
वास्तविकता तो यह है कि उसे सहारा देने वाली रानी ईसाबेला थी । उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि कोलंबस जिस प्रदेश को खोजेगा, वहां का उसे वायसराय बना दिया जाएगा और वहां की आमदनी में से उसे १० प्रतिशत हिस्सा भी दिया जाएगा । कोलंबस ने उन्हें विश्वास दिलाया कि वह ऐसे प्रदेश को खोजने की कल्पना कर रहा है, जहां सोने-चांदी और हीरे-जवाहरात के भंडार मिलेंगे ।
३ अगस्त, १४९२ को उसकी महान साहसिक यात्रा का श्रीगणेश हुआ । प्रातःकाल ही पालोस (Palos) बंदरगाह से तीन छोटे-छोटे जहाज-निना (Nina), पिटा (Pinta) और सांता मारिया (Santa Maria) भारत की यात्रा पर रवाना हुए । कोलंबस इस यात्रा का नायक था और उसके साथ सौ अन्य यात्री भी थे । कोलंबस मात्र स्वप्न ही नहीं संजोता था बल्कि उन्हें पूरा करने के लिए सुलझे हुए दिमाग से काम भी लेता था । आरंभ में उसके जहाज केनरी द्वीपसमूह की ओर चलते रहे । फिर एक अनजान रास्ते पर पश्चिम की ओर चल पड़े । दिन पर दिन गुजरते गये लेकिन उन्हें सागर और आकाश के सिवाय कुछ भी दिखाई नहीं देता था ।
हताश हो कोलंबस के साथियों ने उसका विरोध करना शुरू कर दिया । उन्होंने आपस में कहना आरंभ किया कि उन्हें वापस लौट जाना चाहिए, यह इटली का नाविक तो उन्हें मरवा देगा ।
चलते-चलते सवा महीना हो गया और नाविकों को कहीं भी भूमि का टुकड़ा दिखाई न दिया । एक दिन अचानक नाविकों को बहुत दर सागर में आग की भयंकर लपटें दिखायी दीं, जिन्हें देखकर यात्रियों में खलबली मच गयी ।
वे चिल्लाये-“कोलंबस धोखेबाज है । यह हमें राक्षसों की दुनिया में मरवाने के लिए ले जा रहा है।” सबने मिलकर कोलंबस को समुद्र में फेंकने की धमकी दी । उसने उन्हें समझाया कि वह आग किसी भूत-प्रेत के मुंह से नहीं अपितु किसी ज्वालामुखी के विवर से निकल रही है, लेकिन उसके साथियों ने उसकी बात पर विश्वास नहीं किया ।
अंत में कोलंबस ने अपने साथियों से हाथ जोड़कर प्रार्थना की कि यदि तीन दिन में हमें जमीन का किनारा दिखायी न दे तो आप लोग मुझे समुद्र में फेंक सकते हो । इसके बाद चलते-चलते कई दिन बीत गये । जमीन के कहीं भी दर्शन न हुए ।
हताश साथी कोलंबस को उठाकर शायद समुद्र में फेंक ही देते, तभी पिटा जलयान का एक नाविक जोरों से चिल्लाया कि उसे जमीन दिखायी दे रही है । उनका दल उस दिशा की ओर चलता गया और १२ अक्तूबर, १४९२ को वे किनारे पर जा पहुंचे । कोलंबस घुटनों के बल जमीन पर बैठ गया और उसने भगवान को शतशः धन्यवाद दिये ।
वह स्थान उत्तरी अमरीका का बहामा द्वीप समूह (Bahama Islands) था, जिसे कोलंबस गलती से भारत समझ बैठा । इस प्रकार कोलंबस भारत के बदले आज के वेस्टइंडीज टापुओं पर जा पहुंचा । यूरोप लौटने से पहले उसने और भी कई अनजाने पश्चिमी टापुओं को खोजा । इन द्वीपों से उसे सोने-चांदी और हीरे-जवाहरात न मिले । दुर्भाग्यवश उसका जहाज सांता मारिया चकनाचूर हो गया, जिसमें उसके काफी साथी मर गये । दुर्घटना के बाद कोलंबस ने वापस लौटने का निश्चय किया ।
अपनी इस पहली यात्रा की असफलता से कोलंबस निराश नहीं हुआ । उसने खोज-यात्राएं करना जारी रखा । दूसरी यात्रा में कोलंबस १७ जहाजों और १२०० यात्रियों के साथ रवाना हुआ । यात्रा के दौरान उसने डोमिनिका (Dominica), मार्टिनिक (Martinique), प्यूर्टोरिको (Puertorico) जमैका (Jamaica) आदि देशों को देखा, लेकिन इन छोटे-छोटे देशों से उसे कोई भी कीमती वस्तु प्राप्त न हो सकी । इसलिए कोई लाभ न होने की वजह से कोलंबस की यात्राओं में स्पेन के राजा की रुचि कम हो गयी ।
और तीसरी यात्रा में वह अमरीका के पास वेनेजुएला तक पहुंचा लेकिन स्पेन से जो लोग वहां बसने लगे थे, उन्होंने उसके विरुद्ध शिकायतें कीं कि उसकी उपस्थिति उनके लिए विघ्न डाल रही है । शिकायतों के परिणामस्वरूप उसे गिरफ्तार करके सन् १५०० में स्पेन वापस लाया गया । स्पेन की महारानी ईसाबेला को इससे बहुत दुःख हुआ । रानी ने उसकी पुरानी उपलब्धियों का लिहाज करते हुए बहुत सारा धन देकर उसे रिहा कर दिया ।
अपनी अंतिम और चौथी यात्रा उसने अपने धन से की और वह आज के पनामा स्थित भूमरूमध्य (Isthmus) तक जा पहुंचा । लंबी और तनावपूर्ण यात्राओं के कारण कोलंबस का स्वास्थ्य काफी बिगड़ गया था अतः वह स्पेन लौट आया ।
२० मई, १५०६ को यह महान नाविक भगवान को प्यारा हो गया । इतिहास आज भी कोलंबस को ही अमरीका का खोज-यात्री मानता है ।