जॉन लॉगी बेयर्ड | जॉन लॉगी बेयर्ड in hindi | जॉन लोगी बेयर्ड टेलीविजन | John Logie Baird Inventions | John Logie Baird in Hindi

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टेलीविजन आज हमारे जीवन का अटूट अंग बन गया है । इसके द्वारा देश-विदेश में होने वाली घटनाओं का विवरण हमारे सामने इस प्रकार आ जाता है जैसे मानो वे घटनाएं हमारे सामने ही घटित हो रही हो । इस महत्वपूर्ण यंत्र का निर्माण किसी एक व्यक्ति द्वारा नहीं हुआ लेकिन फिर भी इसके विकास में महानतम योगदान देने वाले व्यक्ति थे – जॉन लॉगी बेयर्ड

ये पहले व्यक्ति थे जिन्होंने ग्रेट ब्रिटेन में टेलीविजन संदेशों का सफल प्रसारण सन् १९२६ में करके दिखाया था ।

जॉन लॉगी बेयर्ड का जन्म १३ अगस्त, १८८८ को स्लैसगों के पास हैलन्सवर्ग में हुआ था । इनके पिता एक शिक्षित पादरी थे, लेकिन उनकी आय कम थी । जॉन बचपन में बहुत ही कमजोर थे । इनसे बड़ी दो बहनें और एक भाई था । स्कूल जाने से पहले का अपना सारा समय इन्होंने पड़ोस में रहने वाले एक माली के लड़के के साथ बिताया ।

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जॉन लॉगी बेयर्ड की प्रारम्भिक शिक्षा पास के एक स्कूल में हुई । इनकी पढ़ने में बहुत रुचि थी । उन दिनों इनके स्कूल में फोटोग्राफी को बहुत महत्त्व दिया जाता था । फोटोग्राफी में इन्होंने इतनी रुचि दिखाई कि वे अपने स्कूल में फोटोग्राफी के अध्यक्ष बन गए । यह बालक इतना चतुर था कि १२ वर्ष की उम्र में ही इन्होंने अपने साथियों की सहायता से एक टेलीविजन लाइन बनाई और अपने छत वाले कमरे को चार साथियों के घर से जोड़ दिया ।

स्कूल छोड़ने के बाद इन्होंने ग्लैसंगों में स्थित रॉयल टेक्नीकल कालिज में विज्ञान का अध्ययन किया । इनका स्वास्थ्य अच्छा नहीं रहता था इसलिए इनकी पढ़ाई भी अच्छी प्रकार नहीं हो पाई लेकिन फिर भी पांच साल बाद वे सहायक इंजीनियर बन गए ।

२६ साल की उम्र में ३० शिलिंग प्रति सप्ताह के वेतन पर इन्होंने एक इलेक्ट्रीकल कम्पनी में नौकरी करनी शुरू की । इन्हीं दिनों प्रथम विश्वयुद्ध चल रहा था । इनके पैरों को बहुत ठंड लगती थी । ठंड से बचने के लिए वे अक्सर अपने पाव से टायलेट पेपर लपेट लेते थे । प्रथम विश्वयुद्ध समाप्त होने पर इन्होंने मोजे बनाने आरम्भ किए । इस काम से इन्होंने १६०० पौंड कमाए ।

इसके बाद इन्होंने जेम और चटनी बनाने का कारखाना खोला । इन वस्तुओं की स्थानीय खपत कम थी इसीलिए उन्होंने यह काम भी बन्द कर दिया । चूंकि इनका स्वास्थ्य बहुत खराब रहता था, इसलिए इन्होंने अपने एक मित्र के पास जाने का निश्चय कर लिया, जो त्रिनिदाद में रहता था । वहां के लोगों को बेचने के लिए वे अनेक वस्तुएं भी अपने साथ ले गए थे । इस यात्रा के दौरान बेयर्ड के कुछ क्षण बड़े आनंद से गुजरे । हुआ यह कि वह एक रेडियो केबिन में घुस गए और वहां के आपरेटर से गप्पें मारने लगे । आपसी बातचीत में इन दोनों ने बिजली द्वारा हवा से तस्वीरें भेजने की समस्या पर विचार किया ।

सन् १९२२ में जब वे वापस लन्दन पहुंचे तो उनकी उम्र ३४ वर्ष की हो चुकी थी । उनके पास इस समय कोई रोजगार नहीं था और पैसा भी बहुत कम था । इन्हीं दिनों इनके मन में टेलीविजन के आविष्कार करने का विचार आया । इस समय तक विश्व में और भी लोग इस क्षेत्र में काफी कार्य कर चुके थे ।

जॉन लॉगी बेयर्ड ने अपने उपकरण की रूपरेखा बनाई । उन्होंने चाय का एक पुराना डिब्बा तथा टोप रखने का गत्ते का डिब्बा खरीदा । जिसमें से एक वृत्ताकार चकती (Disk) काटी । बिजली वाले कबाड़िये से एक पुरानी मोटर ली, जिसमें अनेक छेदों वाली यह चकती लगा दी । जब यह चकती घूमती थी तो प्रकाशित किए जाने वाले समूचे दृश्य को अपने छेदों द्वारा तीव्र और मन्द बिन्दुओं में खंडित कर देती थी। बिस्कुट के खाली डिब्बे में प्रोजैक्शन लैम्प लगा था। सिलेनियम सैल, निऑन लैम्प रेडियो वाल्व आदि टूटे-फूटे उपकरणों की सहायता से उन्होंने अपना प्रयोग आरम्भ किया ।

जॉन लॉगी बेयर्ड कभी अपने उपकरण में कुछ लगाते, कभी कुछ खोलते तो कभी कुछ सुधार करते । महीनों तक मेहनत करने के बाद उनका प्रथम टेलीविजन ट्रांसमीटर और रिसीवर बना जो अभी बहुत ही प्रारम्भिक अवस्था में था । काफी समय परीक्षण करने के बाद सन् १९२४ के बसन्त में वे एक माल्टिस क्रोस की छाया को तीन गज की दूरी तक प्रसारित करने में सफल हो गया ।

बेयर्ड के पास धन नहीं था इसलिए अखबारों में इन्होंने विज्ञापन छपवाए । इन विज्ञापनों के फलस्वरूप उन्हें कुछ धनराशि प्राप्त हुई । सन् १९२५ में, एक बहुत बड़े दुकानदार के मालिक का लड़का गोर्डन सैलफ्रिज उनसे मिलने आया । उसने भी इस कार्य के लिए उन्हें धन का प्रलोभन दिया । जॉन लॉगी बेयर्ड ने उसकी दुकान में अपने कार्य का एक छोटा सा प्रदर्शन किया । यह भी एक प्राथमिक कोटि का ही प्रदर्शन था, जिसमें धुंधली आकृतियां ही प्रेषित हो पाती थी ।

२ अक्तूबर, १९२५ को जॉन लॉगी बेयर्ड के जीवन की सबसे रोमांचकारी घटना घटी । उन्होंने अपने उपकरण में प्रकाश को विद्युत किरणों में बदलने के लिए एक नई चीज लगाई । उन्होंने अपने उपकरण का स्विच दबाया तो उन्हे सहसा अपनी आखों पर विश्वास न रहा । वे देखते क्या हैं कि उनके उपकरण में दृश्य का पूरा चेहरा उभर आया है । इसे देखकर बेयर्ड उछल पड़े। इस प्रकार सन् १९२५ में उन्होंने मानव के चेहरे का प्रसारण करने में सफलता प्राप्त की । सन् १९२६ में लन्दन के रॉयल इन्स्टीट्यूशन में उन्होंने चलते-फिरते टेलीविजन चित्रों के प्रेषण’का प्रदर्शन किया । सन् १९२६ में जर्मन पोस्ट आफिस में टेलीविजन सेवा विकसित करने के लिए उन्हें सुविधाएं प्रदान की । इससे पहले सन् १९२८ में उन्होंने रंगीन टेलीविजन के प्रेषण पर भी प्रयोग करने आरम्भ कर दिए थे ।

सन् १९३६ में बी.बी.सी. ने टेलीविजन सेवा बेयर्ड द्वारा विकसित उपकरण से आरम्भ कर दी थी । उन्हीं दिनों मारकोनी का तरीका भी विकसित हो चला था । मारकोनी के तरीके ने बेयर्ड की विधि को हमेशा-हमेशा के लिए पराजित कर दिया ।

जॉन लॉगी बेयर्ड जीवनभर टेलीविजन से सम्बन्धित अनुसंधान करते रहे । पैसे के अभाव और खराब स्वास्थ्य होने पर भी जीवन के अंतिम वर्षों में सन १९४५ तक वे रंगीन टेलीविजन के क्षेत्र में काफी कार्य करते रहे ।

ठंड लग जाने के कारण तीन महीने बाद १४ जून १९४६ में उनका देहान्त हो गया । उनके मरने के बाद उनकी याद में स्मृति स्तंभ बनाए गए और अनेकानेक तरीकों से श्रद्धांजलियां समर्पित की गईं लेकिन यह अभागा व्यक्ति जीवनभर संघर्ष ही करता रहा और अपने जीवनकाल में कोई सम्मान प्राप्त न कर पाया ।

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