नागार्जुन का जीवन परिचय | नागार्जुन का व्यक्तित्व एवं कृतित्व | Nagarjun Ka Jeevan Parichay in Hindi

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नागार्जुन – Nagarjun

पुराने ज़माने में कई ऐसे
बड़े लोग हो गए है जिनके बारे में सिवा उनके नाम के हमें कुछ विशेष पता नहीं है |
नागार्जुन भी एक ऐसे ही व्यक्ति थे | वह बुद्धमत के बड़े चिन्तक थे, वैसे नागार्जुन
नाम के दो-तीन और भी लोग हुए है |

पर जिन नागार्जुन की चर्चा
हम यहाँ पर कर रहे है, वह उच्च कोटी के बौद्ध दार्शनिक और असाधारण प्रतिभा के
व्यक्ति थे | उन्होने बौद्ध दर्शन के इतिहास में एक नई युग की शुरूआत की थी और उसे
एक नई दिशा दी थी | उन्होंने बौद्ध दर्शन के माध्यमिक मत का प्रतिपादन किया था,
जिसे शून्यवाद भी कहते है | बौद्ध धर्म के महायान शाखा की दो उपशाखाए हो गयी थी –
माध्यमिक और योगाचार | कहते है की महायान के माध्यमिक शाखा की नीव नागार्जुन ने
डाली थी |

कुछ लोग कहते है की प्राचीन
के प्रसिद्द वैज्ञानिक नागार्जुन भी यही थे | तिब्बत में तो यह देवता की तरह पूजे
जाते है | कुछ लोग कहते है की यह बड़े चित्रकार थे, और कुछ लोग कहते है की वह
प्रसिद्द लेखक थे |

“कीमिया” नाम को आपने सुना
होगा ? यानी ताम्बे को सोना बना देना | ऐसा कहा जाता है की इस जादू को हासिल करने
के लिए दुनिया के लाखो लोग बरसो तक कोशिश करते रहे | यह रसायनिक विद्धया नागार्जुन
को मालूम थी | श्री प्रफुल्लचन्द्र राय के “भारतीय रसाय शास्त्र का इतिहास” में
नागार्जुन का
नाम इसी प्रसंग में आता है |

डा. राधाकृष्णन ने अपनी
पुस्तक में उनके बारे में यु लिखा है की – नागार्जुन दक्षिण भारत के एक ब्राम्हण
थे | कुमारजीव ने उनकी जीवनी ४०५ ईसवी में चीनी भाषा में लिखी थी |

उनके कहने के हिसाब से
नागर्जुन इसी की दुसरी सदी में दक्षिण कोसल या बरार में पैदा हुए थे | लोग उन्हें
और भी पुराना मानते है |

शरतचन्द्र दास मानते है की
तिब्बत के दलाई लामा के पास भारत के प्राचीन इतिहास की जो कहानी है, उसके हिसाब से
नागर्जुन इससे भी पहले ईसापूर्व ५६ में यानी दो हजार वर्ष पहले हुए |

चीनी यात्री युआन च्वांग
लिखते है की नागार्जुन बुद्ध के मरने के चार सौ साल बाद दक्षिण कोसल (बरार) में
रहते थे और वह “बोधिसत्व” यानी पहुचे हुए ज्ञानी हो गए थे |
डा॰ विदयाभूषन उन्हे
३०० ईसवी के मानते है
| कुछ भी हो आज से १५०० वर्ष पहले तो वो जरूर
होगे
, क्योकी उसकी बात की पुस्तकों मे तो नागार्जुन ने जो मत
चलाया
, उसकी चर्चा है | उनके मत को
माध्यमिक कहते है अर्थात बीच का रास्ता
| सारनाथ मे अपने
प्रथम उपदेश मे बुद्ध ने भी “मध्यम मार्ग” यानी बीच का रास्ता अपनाने की बात कही
थी
| उन्होने कहा था की जीवन मे एक रास्ता अत्यंत विलाप का
है और दूसरा रास्ता अत्यंत तप का है
| और तीसरा भी है जो न
अत्यंत विलाप का है और न अत्यंत ताप का है
, बल्कि दोनों के
बीच का है
| लेकिन माध्यमिक मत के मानने वालो ने जो बीच का
रास्ता बताया वह बुद्ध के मध्यम मार्ग से भिन्न है
| माध्यमिक
मत के अनुसार बीच के रास्ते का अर्थ है की न तो यही कहा जा सकता है की कोई वस्तु
है और न यही कहा जा सकता है की वह नही है
, न तो किसी वस्तु
का उत्पाद(उत्पन्न होना) सिद्ध किया जा सकता है और न उसका उच्छेद(नष्ट होना) ही
सिद्ध किया जा सकता है
| संक्षेप मे माध्यमिक मत न तो संसार
की सत्यता को मानता है और न संसार की असत्यता को
| जहा बुद्ध
ने मध्यम मार्ग का उपदेश देते हुए नैतिक पक्ष पर ज़ोर दिया था
, वहा माध्यामिक मत आध्यात्मिक पक्ष पर ज़ोर देता है |

नागार्जुन ने इस माध्यमिक मत को शून्यवाद भी कहते है क्योकि
नागार्जुन यह मानते थे की संसार और शून्यता मे कोई अंतर नही है
|

नागार्जुन के जीवन की बहुत कम बांते हमे मिलती है | राजा
यज्ञश्री गौंतम पुत्र (१६६-१९६ ई) उनके मित्र थे
| कहते है
की नागार्जुन की तुलना का शास्त्रार्थी उस जमाने मे और कोई दूसरा नही था
|

नागार्जुन बचपन मे ऐसे तेज विद्ध्यर्थी थे की पूरा त्रिपिटक, जो कई
हजार पन्नो का ग्रंथ है
, उन्हे कुल ९० दिनो मे याद कर लिया
था
| और इतना पढ़ कर भी उनका मन नही भरा | वह हिमालय मे रहने वाले एक बूढ़े भिक्षु के पास गए |
उनसे “महायान सत्र” उन्हे मिला
| फिर दक्षिण भारत मे “श्री
शैलम” मे उन्होने अपना शेष जीवन व्यतीत किया
| वहा उन्होने
बौद्धमत का विधयालय बनाया
| तिब्बत की कुछ किताबों मे लिखा
है की नागार्जुन नालंदा मे भी कुछ साल रहे
| चीनी यात्री
युआन च्वांग ने लिखा है – दुनिया को चमकाने वाले चार सूरज हुए है
, उनमे से एक नागार्जुन है | बाकी तीन अश्वघोष, कुमारलब्ध और आर्यदेव है |

नागार्जुन की कई पुस्तक का चीनी भाषा मे अनुवाद हुआ | वे
बीस के करीब है
| विचित्र बात यह है की भारत मे उनकी कोई
पुस्तक नही मिलती
| मगर ये पुस्तक चीनी भाषा मे पाई जाती है | नागार्जुन ने अपने दोस्त राजा यज्ञश्री को कुछ चिटठिया लिखी थी | वे “सुहल्लेख” नाम से प्रसिद्ध है | पुराने चीनी
यात्री ई-त्सीग ने लिखा है की भारत के बच्चे इस पुस्तक को जबानी याद रखते है
| इसमे नीति के उपदेश थे |

चीनी और जापान मे नागार्जुन के विचार पहुचे | वहा
ये “साल-लून” या “सान रेन” कहलाते है
| इंका मतलब है तीन
पुस्तके
| इन पुस्तकों मे पहली नागार्जुन की है | इसका अनुवाद कुमारजीव ने ४०९ ईसवी मे चीनी भाषा मे किया था | इस पुस्तक मे ४०० श्लोक है | दूसरी पुस्तक का नाम
“बारह रास्ते” है
| यह भी नागार्जुन की लिखी है | मूल संस्कृत नही मिलती पर इसका चीनी अनुवाद मिलता है | तीसरा नाम है “शत-शास्त्र” है | यह नागार्जुन के
शिष्य आर्यदेव की लिखी हुई है
| “शिरा” शाखा ले लोग
नागार्जुन की एक चौथी पुस्तक “शिह-लुन” भी मानते है
| जब
नागार्जुन की पुस्तक चीन पहुची
, तब कई बड़े व्यक्ति उनके
उपदेशो को मानने वाले हुए
, जैसे ताओशेंग, तान-ची, सेंग-लांग | ईसा की
सातवी सदी मे चित्सांग के कोरिया के विद्ध्यर्थी एक-बान(लुई-कुआन) इसी मत को जापान
ले गए
| ६२५ ईसवी मे नारा के ग्वांगौजी मठ मे यह मत पढ़ाया | इसे चीनी मे “कु” “गं”(शून्यता) मत कहते है |

नागार्जुन का नाम आज सब लोग जानते है, यह
उनकी एक बड़ी पुस्तक के वजह से
| उसे “मूल माध्यमकारिका” कहते
है
| इस पुस्तक पर उन्होने अकुटोभया टीका खुद ही लिखी | उनके मत को “शून्यवाद” भी कहते है शायद यही कारण है की उन्होने अपने पहले
के चिंतको की सब बात काट दी
| उन्होने कहा की जिसको हम दुख
कहते है वह झूठ है
| हर चीज बदलती रहती है | इसलिए न तो यह कहा जा सकता है की वस्तु है और न यही की वह नही है | इस तरह हर चीज को नागार्जुन ने शून्य बना दिया | नागार्जुन
ने कहा की संसार गंधर्वनगर
, मरीचिका,
माया अथवा स्वप्न की तरह है
, जिनके बारे मे न तो यही कहा जा
सकता है की वे है और न यही कहा जा सकता है की वह नही है
|

हम थोड़े मे कहे तो
नागार्जुन एक ऐसे चिंतक और बड़े दार्शनिक थे की उनका नाम भारत के बाहर दूर-दूर तक पहुंचा
 
| हिंदुस्तान और चीन की जनता के संबंध को
जिन लोगो मे बढ़ाया
, उनमे नागार्जुन का नाम उल्लेखनीय है |

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