लॉर्ड रदरफोर्ड | रदरफोर्ड की खोज | रदरफोर्ड का सिद्धांत | रदरफोर्ड का जीवन परिचय | Ernest Rutherford History | Lord Rutherford Discovery

लॉर्ड रदरफोर्ड

लॉर्ड रदरफोर्ड | रदरफोर्ड की खोज | रदरफोर्ड का सिद्धांत | रदरफोर्ड का जीवन परिचय | Ernest Rutherford History | Lord Rutherford Discovery

प्रत्येक पदार्थ अत्यंत सूक्ष्म कणों से मिलकर बना है, जिन्हें परमाणु कहते हैं । १९वीं शताब्दी में परमाणु की आंतरिक रचना वैज्ञानिकों के लिए एक जटिल पहेली थी और इस पहेली को सुलझाने में महान योगदान दिया लॉर्ड रदरफोर्ड ने ।

वे पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने प्रयोगों के आधार पर यह सिद्ध करके दिखाया कि प्रत्येक परमाणु के अंदर एक अत्यंत सूक्ष्म भाग होता है, जिसे उस कण का नाभिक (Nucleus) कहते हैं ।

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रदरफोर्ड का सिद्धांत


उन्होंने यह भी सिद्ध करके दिखाया कि नाभिक पर धनात्मक आवेश (Positive Charge) होता है । सन् १९०९-१९१४ के बीच उन्होंने नाभिक का एक मॉडल भी प्रस्तुत किया ।

लॉर्ड रदरफोर्ड का जन्म


लॉर्ड रदरफोर्ड का जन्म ३० अगस्त, १८७१ को न्यूजीलैण्ड में स्प्रिंग ग्रोव (Spring Grove) नामक स्थान पर हुआ था । ये अपने मां-बाप के चौथे पुत्र थे । बचपन से ही वे बहुत प्रतिभाशाली व होनहार थे । इनकी गणित, भौतिकी और रसायन शास्त्र में गहरी रुचि थी । वे दिन-रात पढ़ने-लिखने में मग्न रहते थे ।

लॉर्ड रदरफोर्ड की शिक्षा


१७ वर्ष की उम्र में लॉर्ड रदरफोर्ड को विश्वविद्यालय की जूनियर छात्रवृत्ति मिली और वह क्राइस्ट चर्च नामक एक बड़े शहर में चले गये । चार साल में वहां से उन्होंने बी.ए. पास किया ।

१९वीं सदी का अंतिम दशक शरू हो चुका था । मानवता के इतिहास में इसे महान आविष्कारों के दशक के रूप में जाना जाता है । उन्हीं दिनों जर्मनी के हीनरिक हर्टज विद्युत-चुम्बकीय तरंगों पर काम कर रहे थे । लॉर्ड रदरफोर्ड का ध्यान इन तरंगों की ओर गया और अपने विश्वविद्यालय के ठंडे तहखाने में उन्होंने विद्युत चुम्बकीय तरंगे (Electro-Magnetic Waves) पैदा करने वाला एक यंत्र बना डाला । इस विषय पर उन्होंने वैज्ञानिक विवरण प्रकाशित कराए और इस २४ वर्षीय न्यूजीलैण्डवासी की ओर विश्व के अनेक भौतिकविदों का ध्यान आकर्षित हो गया ।

उसी वर्ष उन्हें कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय, इंग्लैण्ड में एक छात्रवृत्ति प्राप्त हो गई और वे सन् १८९५ में कैविडिश (Cavendish) प्रयोगशाला में चले गए, जहां प्रसिद्ध वैज्ञानिक और इलेक्ट्रॉन के आविष्कारक जे.जे. थाम्पसन (J.J. Thompson) ने इनका स्वागत किया ।

लॉर्ड रदरफोर्ड के कार्य


कैम्ब्रिज की कैविडिश प्रयोगशाला में उन्होंने रेडियोधर्मिता (Radio-activity) पर काम करना आरम्भ किया । उन्होंने देखा कि विभिन्न रेडियोधर्मी पदार्थों से विभिन्न प्रकार की किरणें निकलती हैं । उन्होंने इन किरणों का नाम एल्फा (Alpha) तथा बीटा (Beta) किरणे रखा जो आज भी इसी नाम से जानी जाती हैं । एक्स किरणों की सहायता से उन्होंने परमाणु के अंदर विद्यमान नाभिक का पता लगाया और यह सिद्ध करके दिखाया कि परमाणु का समस्त भार नाभिक में ही निहित होता है ।

सन् १९०७ में लॉर्ड रदरफोर्ड मैनचेस्टर (Manchester) विश्वविद्यालय में चले गए । ये उनके जीवन के सबसे अधिक सुख के दिन थे । सन् १९०८ में उन्हें उनके रेडियोधर्मिता संबंधी कार्यों के लिए रसायन शास्त्र का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया । अपने अनेक प्रयोगों के आधार पर उन्होंने यह सिद्ध करके दिखाया कि एल्फा किरणें एक प्रकार के कण होते हैं जो हीलियम नाभिक के समतुल्य होते हैं ।

सोने की एक पतली पत्ती पर एल्फा किरणों की बौछार करके सन् १९११ में जब इन्होंने परमाणु में नाभिक के अस्तित्व का क्रांतिकारी विचार प्रस्तुत किया तो सारी दुनिया में तहलका मच गया । यद्यपि आज यह जाना-माना तथ्य है कि परमाणु में नाभिक होता है लेकिन सन् १९११ में यह एकदम नवीन विचार था ।

सन् १९१२ में नील्स बोहर (Neils Bohr) नामक विश्वविख्यात वैज्ञानिक भी लॉर्ड रदरफोर्ड के साथ काम करने आ गए और दोनों ने मिलकर परमाणु संबंधी खोजों को नये आयाम दिए ।

सन् १९१४ में प्रथम विश्वयुद्ध आरम्भ हो गया । इस प्रयोगशाला से वैज्ञानिक जहां-तहां चले गए । लॉर्ड रदरफोर्ड भी वापिस कैविडिश प्रयोगशाला में आ गए । सन् १८१७ में लॉर्ड रदरफोर्ड ने विश्व को फिर एक नया वैज्ञानिक उपहार दिया । उन्होंने सर्वप्रथम एक तत्व को दूसरे तत्व में बदल कर दिखाया । उन्होंने एल्फा कणों की बौछार करके नाइट्रोजन परमाणुओ को आक्सीजन परमाणुओं में बदल कर दिखाया । इस प्रकार वैज्ञानिकों को एक तत्व को दुसरे तत्व में बदलने का रास्ता रदरफोर्ड ने ही प्रशस्त किया ।

सन् १९१९ में रदरफोर्ड कविडिश प्रयोगशाला के अध्यक्ष बन गए । सन् १९२० में रदरफोर्ड ने हाइड्रोजन के नाभिक का नाम प्रोटोन (Proton) रखा ।

उनकी देख-रेख में कैविडश प्रयोगशाला खूब फलती-फलती रही । रदरफोर्ड अत्यंत लगन से काम करने वाले और एक कभी न थकने वाले वैज्ञानिक थे । अपने वैज्ञानिक योगदानों के कारण व सन् १९२५ से १९३० तक रॉयल सोसायटी (Royal Society) के अध्यक्ष रहे । सन् १९३१ में उन्हें “बैरन रुदरफोर्ड ऑफ नैल्सन” (Baron Rutherford of Nelson) का सम्मान दिया गया। उनकी ख्याति सारे विश्व में फैल चुकी थी ।

लॉर्ड रदरफोर्ड का निधन


कुछ दिनों की बीमारी के बाद १९ अक्तूबर, १९३७ में इस महान वैज्ञानिक का देहांत हो गया । इन्हें आदर के साथ वैस्टमिनिस्टर ऐबे (Westminister Abbey) में दफनाया गया।

परमाणु संख्या वाले एक तत्व का नाम इनको आदर देने के लिए “रदरफोर्डियम” (Rutherfordium) प्रस्तावित किया गया । इस तत्व के एक समस्थानिक (Isotope) का नाम कुर्चाटोवियम (Kurchatovium) है । इस महान वैज्ञानिक के योगदानों को हम कभी भी न भुला सकेंगे ।

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