योग के आधारभूत तत्व | पारंपरिक योग सम्प्रदाय | Yog Ke Tatva in Hindi
योग व्यक्ति के शरीर, मन, भावना एवं ऊर्जा के स्तर पर कार्य करता है । इसे व्यापक रूप से पाँच वर्गों में विभाजित किया गया है :
कर्मयोग में हम शरीर का प्रयोग करते हैं;
ज्ञानयोग, में हम मन का प्रयोग करते हैं,
भक्तियोग, में हम भावना का प्रयोग करते हैं और
क्रियायोग में हम ऊर्जा का प्रयोग करते हैं।
योग की जिस भी प्रणाली का हम अभ्यास करते हैं, वह एक दूसरे से आपस में अधिक मीली हुई होती है ।
प्रत्येक व्यक्ति इन चारों योग कारकों का एक अद्वितीय संयोग है । केवल एक समर्थ गुरु को अध्यापक ही योग्या साधक को उसके आवस्यकता अनुसार आधारभूत योग सिद्धान्तों का सही संयोजन करा सकता है । योग की सभी प्राचीन व्याख्याओं में इस विषय पर अधिक बल दिया गया है कि समर्थ गुरु के मार्गदर्शन में अभ्यास करना अति आवश्यक है।
पारंपरिक योग सम्प्रदाय
योग के अलग-अलग सम्प्रदायों, परंपराओं, दर्शनों धर्मो एवं गुरु-शिष्य, परंपराओं के चलते भिन्न-भिन्न पारंपरिक पाठशालाओं का मार्ग प्रवृत्त हुआ । इनमें ज्ञानयोग, भक्तियोग, कर्मयोग, पातंजलयोग, कुंडलिनीयोग, हठयोग, ध्यानयोग, मंत्रयोग, लययोग, राजयोग, जैनयोग, बौद्धयोग आदि सम्मिलित है । प्रत्येक सम्प्रदायों के अपने अलग दृष्टिकोण और अभ्यास क्रम है जिसके प्रत्येक योग सम्प्रदायों ने योग के उद्देश्य और लक्ष्य तक पहुंचने में सफलता प्राप्त की है ।
स्वास्थ्य और कल्याण के लिए यौगिक अभ्यास
योग साधनाओं में यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि, बंध एवं मुद्रा, षट्कर्म, युक्ताहार, मंत्र जप युक्तकर्म आदि साधनाओं का अभ्यास सबसे अधिक किया जाता है ।
यम प्रतिरोधक एवं नियम अनुपालनीय हैं । इन्हें योग अभ्यासों के लिए पूर्व अपेक्षित एवं अनिवार्य माना गया है । आसन का अभ्यास शरीर एवं मन में स्थायित्व लाने में सक्षम हैं, “कुर्यातदासनम् स्यथईर्यमारोग्यचांगलाघवम्” अर्थात् आसन का अभ्यास महत्त्वपूर्ण समय सीमा तक मनोदैहिक विधि पूर्वक अलग-अलग करने से स्वयं के अस्तित्व के प्रति दैहिक स्थिति एवं स्थिर जागरूकता बनाए रखने की योग्यता प्रदान करता है ।
प्राणायाम
प्राणायाम श्वास प्रश्वास प्रक्रिया का सुव्यवस्ति एवं नियमित अभ्यास है । यह श्वसन प्रक्रिया के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने एवं उसके पश्चात् मन के प्रति सजगकता उत्पन्न करने तथा मन पर नियंत्रण स्थापित करने में सहायता करता है । अभ्यास की प्रारम्भिक अवस्था में श्वास प्रश्वास प्रक्रिया को सजगकता के साथ किया जाता है। बाद में, यह घटना नियमित, नियंत्रित एवं निर्देशित प्रक्रिया के माध्यम से नियमित हो जाती है । प्राणायाम का अभ्यास नासिका, मुख एवं शरीर के अन्य छिद्रों तथा शरीर के आंतरिक एवं बाहरी मार्गों तक जागरूकता बढ़ाता है । प्राणायाम का अभ्यास नियमित, नियंत्रित और निरीक्षित प्रक्रिया द्वारा श्वास को शरीर के अन्दर लेना पूरक कहा जाता है, नियमित, नियंत्रित और निरीक्षित प्रक्रिया द्वारा श्वास को शरीर के अन्दर रोकने की अवस्था कुंभक तथा नियमित, नियंत्रित और निरीक्षित प्रक्रिया द्वारा श्वास को शरीर के बाहर छोडना रेचक कहा गया जाता है ।
प्रत्याहार
प्रत्याहार के अभ्यास से व्यक्ति स्वयं की इंद्रियों के माध्यम से सांसारिक विषय का त्याग कर अपने मन तथा चैतन्य केन्द्र के एकीकरण का प्रयास करता है, धारणा का अभ्यास मनोयोग के व्यापक आधार क्षेत्र के एकीकरण का प्रयास करता है, यह एकीकरण बाद में ध्यान में परिवर्तित हो जाता है । इसी ध्यान में चिंतन (शरीर एवं मन के भीतर केंद्रित ध्यान) एवं एकीकरण रहने पर कुछ समय पश्चात् समाधि की अवस्था में परिवर्तित हो जाता है।
बंध एवं मुद्रा
बंध एवं मुद्रा ऐसे योग अभ्यास हैं, जो प्राणायाम से सम्बन्धित हैं । ये उच्च यौगिक अभ्यास के रूप प्रसिद्ध माने जाते है, जो मुख्य रूप से नियंत्रित श्वसन के साथ विशेष शारीरिक बंधों एवं विभिन्न मुद्राओं के द्वारा किए जाते हैं। यही अभ्यास आगे चलकर मन पर नियंत्रण स्थापित करता है और उच्चतर यौगिक सिद्धियों के लिए मार्ग प्रशस्त करता है। हालांकि, ध्यान का अभ्यास, जो व्यक्ति को आत्मबोध एवं श्रेष्ठता की ओर ले जाता है, योग साधना पद्धति का सार माना गया है।
षट्कर्म
षट्कर्म शरीर एवं मन शोधन का सुव्यवस्ति एवं नियमित अभ्यास है । जो शरीर में एकत्रित हुए विष को हटाने में सहायता प्रदान करता है । युक्ताहार स्वस्थ जीवन के लिए पर्याप्त सुव्यवस्ति एवं नियमित भोजन का समर्थन करता है ।