अली बंधु | मौलाना शौकत अली | मौलाना मोहम्मद अली | Ali Bandhu | Muhammad Ali Jauhar | Maulana Mohammad Ali

अली बंधु | मौलाना शौकत अली | मौलाना मोहम्मद अली

Ali Bandhu | Muhammad Ali Jauhar | Maulana Mohammad Ali

रामपुर के एक प्रसिद्ध घराने में अली बंधु पैदा हुए। यों तो ये तीन भाई थे, परंतु सबसे बड़ा अधिक विख्यात नहीं हुआ। दूसरे और तीसरे मौलाना शौकत अली और मौलाना मोहम्मद अली भारत के राजनीतिक क्षेत्र में अधिक प्रसिद्ध हुए। इनके पिता अब्दुल अली खां रामपुर राज्य में एक उच्च स्थान पर आसीन थे और इनके पितामह मुंशी अली बख्श उस राज्य के प्रसिद्ध कर्ता-धर्ताओं में थे जिन्हें “गदर” में अंग्रेजों की सहायता करने पर “खानबहादुर” की उपाधि भी मिली थी। कौन जानता था कि इनके पोतों को भारत सरकार से विद्रोह करने पर कारागार में डाला जाएगा।

Ali Bandhu

संक्षिप्त विवरण(Summary)[छुपाएँ]
मौलाना मोहम्मद अली का जीवन परिचय
पूरा नाम मौलाना मोहम्मद अली जौहर
जन्म तारीख १० दिसंबर १८७८
जन्म स्थान रामपुर
धर्म मुस्लिम
पिता का नाम अब्दुल अली खां
माता का नाम बी अम्मां
पिता का कार्य रामपुर राज्य में एक
उच्च स्थान पर आसीन
शिक्षा बी०ए॰ मोहम्मडन ऐंग्लो
ओरियंटल कालेज(अलीगढ़),
उच्चतम डिग्री(आक्सफोर्ड)
कार्य शिक्षा विभाग के अफसर,
साप्ताहिक अंग्रेजी पत्र कामरेड
के संपादक, उर्दू दैनिक पत्र हमदर्द
के संपादक, मुस्लिम लीग के सदस्य,
रेड क्रास मिशन की स्थापना,
कविता लेखन “कलामे जौहर”
खिलाफत कमेटी के सदस्य,
“ला मेंबर”, होमरूल लीग
के सदस्य,“सह-इ-अदब”
की स्थापना
मृत्यु तारीख ४ जनवरी १९३१
मृत्यु स्थान लंदन
मृत्यु की वजह अस्वस्थ व दिमाग की नस फटना
उम्र ५३ वर्ष
भाषा हिन्दी, अँग्रेजी, उर्दू

मौलाना मोहम्मद अली ने १० दिसंबर १८७८ में जन्म लिया। अभी ये दो ही वर्ष के थे कि इनके पिता का साया इनके सिर से उठ गया । मौलाना शौकत अली की शिक्षा उस समय आरंभ हो चुकी थी। इनकी माता ने जो बाद में “बी अम्मां” के नाम से प्रसिद्ध हुई इनकी अच्छी देखरेख की और इनकी पढ़ाई पर बहुत ध्यान दिया। मौलाना शौकत अली ने “मोहम्मडन ऐंग्लो ओरियंटल कालेज” अलीगढ़ से बी० ए पास किया और सरकारी नौकरी की। मौलाना मोहम्मद अली बी० ए० करके १८९८ में इंगलिस्तान चले गए और १९०२ में “आक्सफोर्ड” से अंग्रेजी की उच्चतम डिग्री लेकर भारत वापस आए।

कुछ दिनों रामपुर रियासत में शिक्षा विभाग के अफसर के रूप में काम करते रहे और फिर रियासत बड़ौदा की सिविल सर्विस में सम्मिलित हो गए | जहां महाराजा बड़ौदा इनके काम से बहुत प्रसन्न थे परंतु मौलाना मोहम्मद अली एक देशी राज्य में बंधकर नहीं रहना चाहते थे, उन्होंने दो वर्ष की छुट्टी ली और कलकत्ता जाकर वहां से एक साप्ताहिक अंग्रेजी पत्र “कामरेड” (कामरेड समाचार पत्र) निकाला। कई वर्षों तक यह परचा कलकत्ता से निकलता रहा फिर मौलाना मोहम्मद अली १९१२ में दिल्ली चले आए। कारण यह था कि १९११ में जब किंग जार्ज पंचम ने अपनी घोषणा से कलकत्ता की जगह दिल्ली को राजधानी बना लिया तो १९१२ में भारतीय शासन के सरकारी दफ्तर दिल्ली आ गए, मौलाना मोहम्मद अली ने भी यह समझा कि जैसे अब तक भारत की राजधानी कलकत्ता से यह पत्र निकला है वैसे ही अब भारत की नई राजधानी दिल्ली से इस पत्र को निकाला जाए सन १९१३ में मौलाना ने उर्दू दैनिक पत्र “हमदर्द” भी जारी कर दिया। इन दोनों पत्रों में मौलाना जहां एक ओर मुसलमानों के अधिकारों की हिमायत करते थे, वहां दूसरी ओर हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रचार भी करते थे।

अनुक्रम (Index)[छुपाएँ]

अली बंधु | मौलाना शौकत अली | मौलाना मोहम्मद अली

संक्षिप्त विवरण(Summary)

मौलाना मोहम्मद अली का जन्म व शिक्षा

कामरेड समाचार पत्र का सम्पादन

मुस्लिम लीग की स्थापना

अली बंधु का नजरबंद होना

खिलाफत कमेटी और अली बंधु

गांधी जी और अली बंधु

अली बंधु और गांधीजी मे मतभेद

मौलाना मोहम्मद अली की मृत्यु

मोहम्मद अली का विवाह

मोहम्मद अली की मृत्यु

सन १९०६ में जब “मुस्लिम लीग” की बुनियाद डाली गई तो मौलाना मोहम्मद अली भी उसके सदस्यों में थे और उन्हीं के प्रयत्न से १९१३ में मुस्लिम लीग ने एक प्रस्ताव स्वीकृत किया कि मुसलमान भी अपने देश को स्वराज्य दिलाने के दिए दूसरे संप्रदायों की भांति तत्पर हों | मौलाना मोहम्मद अली की भाषा अंग्रेजी में इतनी ओजस्वी होती थी कि उनके विरोधी अंग्रेज भी इस पत्र को बड़े चाव से पढ़ा करते थे, इसी प्रकार उर्दू में भी “हमदर्द” की भाषा बड़ी टकसाली होती थी और सच तो यह है कि मौलाना अबुल कलाम आजाद के पत्र “अलहिलाल” के बाद सबसे अधिक प्रसिद्ध उर्दू साप्ताहिक पत्र “हमदर्द” ही समझा जाता था क्योंकि १९१२ में मौलाना सज्जाद हुसैन के मर जाने के बाद “अवध पंच” की पहले जैसी प्रतिष्ठा न रही। इसी बीच तुर्की और वालकन देशों में लड़ाई छिड़ गई। डाक्टर मुख्तार अहमद अंसारी और मौलाना मोहम्मद अली ने मिल कर एक “रेड क्रास मिशन” स्थापित किया जो अपनी सेवाएं पेश करने तुर्की गया। मौलाना मोहम्मद अली की कविता भी कभी-कभी उनके पत्र में निकलती थी वह मुशायरों के शायर न थे परंतु उनकी कविता में बहुत ओज और बड़ा लालित्य होता था। कहीं राजनीतिक इशारे भी होते थे। कविता में उनका उपनाम “जौहर” था। “कलामे जौहर” के नाम से उनकी कविता का संग्रह उनके जीवन में ही प्रकाशित हो चुका था।

सन १९१४ में पहला महायुद्ध आरंभ हुआ। संसार की लड़ने वाली शक्तियां दो दलों में बंट गई। अंग्रेज और तुर्क विरोधी दलों में थे यों तो अंग्रेज तुर्की साथ देते रहते थे, परंतु उस समय तुर्कों पर कुछ ऐसा प्रभाव पड़ा कि वह अंग्रेजों के हो गए। भारत में मुसलमान बड़े असमंजस में थे एक ओर वे तुर्की को मुस्लिम देश के नाते उसके साथ सहानुभूति रखते थे और दूसरी ओर वे एक ऐसे देश भारत में रहते थे जिस पर अंग्रेजों का अधिकार था | मौलाना मोहम्मद अली ने १६ सितंबर १९१४ को कामरेड समाचार पत्र में एक लेख लिखा, जिससे अंग्रेज सरकार घबरा उठी और उसको इस लेख में विद्रोह के अंकुर दिखे, इसलिए “हमदर्द” और “कामरेड” दोनों पत्रों की जमानत जब्त कर ली गई।

सन १९१५ में मौलाना शौकत अली और मौलाना मोहम्मद अली नजरबंद कर दिए गए और उनको छिंदवाड़ा में रखा गया। मौलाना शौकत अली सरकारी नौकरी में थे, परंतु वह भी अपने भाई के साथ सहमत थे और दोनों की विचारधारा एक-सी ही थी। जब तक प्रथम महायुद्ध चलता रहा दोनों भाई नजरबंद रहे। जब १९१८ में यह युद्ध समाप्त हुआ तो १९१९ में दोनों भाइयों को छोड़ दिया गया।

सन १९१९ भारत के स्वतंत्रता के इतिहास में एक विशेष महत्व रखता है, क्योंकि इसी साल महात्मा गांधी ने सत्याग्रह आंदोलन चलाया था। उसी वर्ष रोलेट बिल पास हुआ था। दिल्ली में ३० मार्च, १९१९ को स्वामी श्रद्धानंद के नेतृत्व में जो जुलूस निकला उस पर गोली चली और बहुत से लोग हताहत हुए। शीघ्र ही १३ अप्रैल १९१९ को “जलियांवाला बाग” में हत्याकांड हुआ, जो भारत के इस शताब्दी के इतिहास में प्रसिद्ध है। यह कांड चूंकि अमृतसर में हुआ था इसलिए कांग्रेस ने अमृतसर में ही अपना वार्षिक अधिवेशन रखा जिसकी अध्यक्षता पंडित मोतीलाल नेहरू ने की और स्वागताध्यक्ष स्वामी श्रद्धानंदजी थे | अली बंधु रिहाई के बाद सीधे अमृतसर पहुंचे और कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में सम्मिलित हुए, जहां उनका अपूर्व स्वागत किया गया | मौलाना मोहम्मद अली ने सर माईकल ओ डायर, गवर्नर पंजाब को वापसी का प्रस्ताव पेश किया। सर माईकल ओ डायर ही के इशारों पर पंजाब में यह हत्याकांड हुआ था और उसके बाद महात्मा गांधी और हिंदुस्तानी स्त्री-पुरुषों की बेइज्जती की गई। आखिर बहुत वर्षों बाद सर माईकल ओ डायर रिटायर हो गए। इंगलिस्तान में एक हिंदुस्तानी ने उन्हें मार डाला। अलीबंधु अमृतसर में मुस्लिम लीग के अधिवेशन में भी सम्मिलित हुए क्योंकि १९२० तक कांग्रेस और मुस्लिम लीग के अधिवेशन साथ ही साथ हुआ करते थे और बहुत से मुसलमान दोनों ही संस्थाओं के सदस्य थे | जब कांग्रेस ने “असहयोग आंदोलन” को अपनाया तब से मुस्लिम लीग के अधिवेशन कांग्रेस से अलग दूसरी जगहों पर होने लगे थे।

इन्हीं दिनों एक “खिलाफत कमेटी” भी बनी थी उसका उद्देश्य यह था कि तुर्की के खलीफा के मामले में अंग्रेज हस्ताक्षेप न करें। बरतानिया के प्रधानमंत्री लायड जार्ज ने इस संबंध में जो वक्तव्य निकाला, उससे मुसलमानों में बहुत खलबली मच गई। महात्मा गांधी भी खिलाफत आंदोलन में सम्मिलित हो गए। उस समय भारत की राजनीति में महात्मा गांधी, मौलाना शौकत अली और मौलाना मोहम्मद अली को त्रिमूर्ति समझा जाता था जैसे पहले बाल-पाल-लाल अर्थात बाल गंगाधर तिलक, विपिनचंद्र पाल और लाला लाजपतराय को त्रिमूर्ति माना करते थे। अखिल भारतीय खिलाफत कमेटी का एक डेलीगेशन मार्च १९२० में इंगलिस्तान गया, उसमें अली बन्धु भी थे यह डेलीगेशन वहां से असफल ही वापस आया, क्योंकि अंग्रेजी सरकार अपनी नीति तुर्की के बारे में तय कर चुकी थी और उसमें कोई परिवर्तन करने को तैयार न थी। अली बंधुओं के वापस आने पर महात्मा गांधी से उनकी बातचीत हुई और पहले खिलाफत कमेटी को और उसके बाद कांग्रेस ने असहयोग आंदोलन को अपनाया जिसमें सरकारी नौकरी, सरकारी ओहदे, सरकारी स्कूल और कालेजों और सरकारी कचहरियों के बहिष्कार के लिए कहा गया था, साथ ही हिंदू-मुस्लिम एकता, अस्पृश्यता निवारण और नशाबंदी उसके रचनात्मक अंग थे। यह प्रस्ताव कलकत्ते के अधिवेशन में लाला लाजपतराय की प्रधानता में पास हुआ। महात्मा गांधी ने प्रस्ताव पेश किया था और मौलाना मोहम्मद अली ने उसका समर्थन किया। उस समय तक मिस्टर जिन्ना कांग्रेस में थे, परंतु उन्होंने इस प्रस्ताव का विरोध किया था।

एक विशेष बात यह थी कि खिलाफत कमेटी के अधिवेशन में असहयोग आंदोलन को स्वीकृत करते हुए महात्मा गांधी को नेता माना गया था, उस समय देश के हिंदू-मुसलमानों में बड़ी एकता दिखाई देती थी। महात्मा गांधी की जय और मोहम्मद अली, शौकत अली की जय के नारे साथ-साथ लगते थे अली बंधुओं ने इस प्रस्ताव के स्वीकृत होने के बाद तमाम देश का भ्रमण किया। कभी-कभी गांधी जी भी इनके साथ होते थे और वह दृश्य देखने का होता था, जब ये दोनों भारी भरकम भाई बीच में गांधी जी को लिए हुए भीड़ से उन्हें बचाते हुए ले चलते थे | १९२१ में जब अहमदाबाद में हकीम अजमल खां की प्रधानता में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन हुआ तो असहयोग आंदोलन अपनी चरम सीमा पर था। वहां असहयोग के प्रस्ताव पर बोलते हुए मोहम्मद अली ने यह कहा था कि – “दिल्ली में सात सल्तनतों की कब्र बन चुकी है और अब आठवीं बनने वाली है।“ उनके ये शब्द पच्चीस वर्ष बाद सत्य साबित हुए।

मौलाना मोहम्मद अली विजगापटम में एक भाषण की बुनियाद पर गिरफ्तार कर लिए गए और कराची में देश के छ: नेताओं पर एक मुकदमा चला, जिनमें मोहम्मद अली भी थे। इस मुकदमे में पांच मुसलमान और छठे शारदा पीठ के जगद्गुरु शंकराचार्य जी थे, शंकराचार्य जी को तो छोड़ दिया गया और पांच को दो-दो वर्ष की सजा हो गई, जिसमें अली बंधु भी थे। इस मुकदमे में मौलाना मोहम्मद अली का लिखा हुआ जो बयान “अली बंधुओं” की ओर से पेश हुआ, उसकी मुख्य बात यह थी कि “मेरा इस्लाम धर्म मुझे स्वतंत्र रहना सिखलाता है। मैं अपने देश के लिए स्वतंत्रता चाहता हूं। ब्रिटिश सरकार इसका विरोध करती है। अब मेरे लिए यह प्रश्न है कि मैं किसका कानून मानूं? अल्लाह का या ब्रिटिश सरकार का? जब दोनों कानूनों में टकराव है तो मैं फिर अल्लाह का ही कानून मानूंगा”

१९२३ में जेल से रिहा होकर आए और उसी वर्ष मौलाना मोहम्मद अली को कांग्रेस का प्रधान बना दिया गया कोकानड में कांग्रेस का जो वार्षिक अधिवेशन हुआ उसकी प्रधानता मौलाना मोहम्मद अली ने ही की थी | उस समय कांग्रेस में फूट पड़ चुकी थी, क्योंकि मार्च १९२२ में गांधी जी गिरफ्तार हो चुके थे उसके बाद कुछ कांग्रेसी नेता इस पक्ष में थे कि सरकारी विधान सभा में जाना चाहिए और कुछ इसका विरोध कर रहे थे वे कहते थे कि गांधी जी ने जो असहयोग आंदोलन चलाया और जिसको हमने स्वीकार किया उसी पर दृण रहना चाहिए।

देशबंधु चित्तरंजनदास, पंडित मोतीलाल नेहरू, विट्ठलभाई पटेल चुनाव लड़ने के पक्ष में थे और श्री राजगोपालाचारी, पण्डित जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल और डाक्टर अंसारी इसके विरोधी थे, मौलाना मोहम्मद अली ने अपने प्रधान पद के भाषण में एक ऐसी राह बताई कि दोनों पक्ष कांग्रेस में रहते हुए अपने-अपने प्रोग्राम को चला सकें । गांधी जी १९२४ में जेल से छूट कर आए और दिसंबर १९२४ में बेलगाम में कांग्रेस का जो अधिवेशन हुआ, उसके प्रधान हुए। मौलाना मोहम्मद अली ने प्रधान पद का चार्ज गांधी जी को दिया|

इसी वर्ष सीमा प्रांत के कोहाट नगर में हिन्दू-मुस्लिम दंगा हो गया| मौलाना शौकत अली भी इसकी जांच में थे और महात्मा गांधी भी दुर्भाग्यवश दंगे के कारणों पर दोनों की रिपोर्ट अलग-अलग थी। अली बंधुओं और महात्मा गांधी में मतभेद रहने लगा धीरे-धीरे अली बंधुओं की दिलचस्पी कांग्रेस से कम होने लगी, परंतु जब १९२७ में साइमन कमीशन बनाया गया, तो मद्रास में कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में जो डाक्टर अंसारी की प्रधानता में हुआ, मौलाना मोहम्मद अली ने अन्य नेताओं की तरह इसका घोर विरोध किया और कहा कि हम भारतवासियों को अपने भाग-विधाता आप होना चाहिए। परंतु १९२८ में जब नेहरू कमेटी की रिपोर्ट निकली तो मौलाना शौकत अली ने जो भारत में थे और मौलाना मोहम्मद अली ने जो विदेश यात्रा पर गए थे, दोनों ने इसका विरोध किया और १९२९ में अली बंधु कांग्रेस से अलग हो गए|

सन १९३० में जब भारत के बड़े-बड़े नेता नमक सत्याग्रह आंदोलन के कारण जेल में थे, तो मि रेमजे मैकडानल्ड, प्रधानमंत्री ब्रिटिश राज्य ने, भारत की समस्याएं सुलझाने के लिए एक “गोलमेज कांफ्रेंस” को जिसमें मौलाना मोहम्मद अली रोग पीड़ित होते हुए भी सम्मिलित हुए। वहां उन्होंने कहा कि या तो मैं अपने देश के लिए स्वराज्य लेकर जाऊंगा या अपने प्राण देकर जाऊंगा। मैं ऐसा राज्य चाहता हूं, जिसमें मैं लार्ड रीडिंग को भी अपने देश में गिरफ्तार कर सकूं। मौलाना के ये अंतिम शब्द थे। इसी के बाद दूसरे दिन उनके दिमाग की नस फट गई और ४ जनवरी सन १९३१ को विलायत में ही उनका देहांत हो गया। उनका शव वहां से वायुयान द्वारा लाकर अरब में दफनाया गया।

मौलाना शौकत अली ने, जो मोहम्मद अली के बड़े भाई थे, मोहम्मद अली की अंग्रेज स्टेनो से विवाह कर लिया और वह मिस्टर जिन्ना के दल मुस्लिम लीग में सम्मिलित हो गए और कांग्रेस तथा कांग्रेसी नेताओं के विरुद्ध भाषण देने लगे। सन १९३७ में जब हाफिज मोहम्मद इब्राहीम कांग्रेस के टिकट पर बिजनौर के हलके से चुनाव लड़ने खड़े हुए तो मौलाना शौकत अली ने उनका भरपूर विरोध किया। उस समय मुस्लिम लीग का बहुत जोर बंध चुका था और लखनऊ के वार्षिक अधिवेशन में लीग ने कांग्रेस पर बहुत से आरोप लगाए थे और मुसलमानों को इससे अलग रहने और विरोध करने का सुझाव दिया था, परंतु हाफिज मोहम्मद इब्राहीम अपने हलके में इतने लोकप्रिय थे कि मुस्लिम लीग के उम्मीदवार को हराने में सफल हो गए।

इसके कुछ दिनों बाद दिल्ली में मौलाना शौकत अली का देहांत हो गया। चाहे अली बंधुओं ने कांग्रेस का साथ दिया था या उसका विरोध किया, परंतु भारत की स्वतंत्रता के लिए उन्होंने जो कठिनाइयां सहीं, उनके कारण उनका नाम भारत के इतिहास में अमर रहेगा, विशेषकर मौलाना मोहम्मद अली का जो प्रथम श्रेणी के पत्रकार, कवि, वक्ता और कर्मशील मनुष्यों मे से थे।

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