श्यामजी कृष्ण वर्मा की जीवनी | Shyamji Krishna Varma

श्यामजी कृष्ण वर्मा की जीवनी | Shyamji Krishna Varma

जो लोग अपने लिए कुछ भी इच्छा न करके दूसरों के लिए प्राण देते हैं, उन्हें सारे संसार में ख्याति मिलती है। श्यामजी कृष्ण वर्मा ऐसे ही नर-रत्न थे, जिन्होंने अपने देशवासियों की स्वतंत्रता के लिए सर्वस्व न्योछावर कर दिया था।

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अनुक्रम (Index)[छुपाएँ]

श्यामजी कृष्ण वर्मा का जीवन परिचय

श्यामजी कृष्ण वर्मा का जन्म

श्यामजी कृष्ण वर्मा हरिकुंवरबा से बड़े प्रभावित हुए

श्यामजी कृष्ण वर्मा की शिक्षा

रॉयल एशियाटिक सोसाइटी के सदस्य

श्यामजी कृष्ण वर्मा का इंग्लैंड दौरा

इंडिया हाउस की स्थापना

श्यामजी कृष्ण वर्मा का इंग्लैंड छोड़ना

श्यामजी कृष्ण वर्मा द्वारा बम बनाने की विधि प्रकाशित करना

श्यामजी कृष्ण वर्मा को राजद्रोही घोषित करना

श्यामजी कृष्ण वर्मा की मृत्यु

FAQ`s

श्यामजी कृष्ण वर्मा का जन्म


१८५७ में देश को गुलामी के पंजे से छुड़ाने के लिए देश भर में विद्रोह की ज्वाला भड़क रही थी। ठीक उन्हीं दिनों गुजरात के कच्छ जिले के मांडवी नामक गांव में करसन (कृष्ण) जी भंसाली के यहां ४ अक्तूबर को एक बालक का जन्म हुआ जिसका नाम श्यामजी रखा गया। बड़े होकर श्यामजी अपने पिता के लिए रोटी ले जाते और मज़दूरी में पिता का हाथ भी बंटाते। बचपन में ही माता का देहांत हो जाने के कारण वह अपनी माता का वात्सल्य अधिक समय तक न पा सके, पर श्यामजी की नानी ने उन्हें बड़े प्रेम से पाला।

श्यामजी कृष्ण वर्मा हरिकुंवरबा से बड़े प्रभावित हुए


किसे पता था कि एक साधारण मजदूर के परिवार में जन्म लेने वाला बालक श्यामजी राष्ट्र को स्वतंत्रता का मार्ग दिखाने वाला महान क्रांतिकारी नेता बनेगा। जिन दिनों श्यामजी की आयु १२ वर्ष की थी, उन दिनों एक विदुषी संन्यासिनी माता हरिकुंवरबा, देश भर के तीर्थ स्थानों का भ्रमण करती हुई द्वारिका से नारायण सरोवर जाते हुए मांडवी पहुंची। बालक श्यामजी हरिकुंवरबा से बड़े प्रभावित हुए और उनकी सेवा करने लगे। कच्छ की यात्रा में श्यामजी उनके साथ हो गए। यात्रा के दिनों में माता हरिकुंवरबा ने उन्हें संस्कृत का कुछ अभ्यास कराया, संस्कृत की पुस्तकें भेट की और आशीर्वाद देकर घर लौटा दिया।

श्यामजी कृष्ण वर्मा की शिक्षा


घर लौटने पर श्यामजी को संस्कृत का अभ्यास करने की धुन सवार हो गई। संस्कृत सीखने के लिए वे पंडितों के घर जाने लगे। कुछ समय में वह संस्कृत में अच्छा बोलने लगे। उनकी मधुर संस्कृत सुनकर कच्छ-निवासी बंबई के सेठ मथुरादास भाटिया बहुत प्रभावित हुए और उन्हें बंबई ले गए। बंबई में उन्हें विल्सन हाई स्कूल में दाखिल करा दिया। साथ ही संस्कृत का विशेष अभ्यास कराने के लिए बंबई के प्रसिद्ध पंडित विश्वनाथजी शास्त्री द्वारा संचालित संस्कृत पाठशाला में भेजने की व्यवस्था करा दी।

तीव्र-बुद्धि बालक श्यामजी की प्रतिभा निखरने लगी। परीक्षाओं और भाषाणों में वह प्रथम नंबर लेने लगे। विल्सन हाई स्कूल के बाद श्यामजी “एल्फिंस्टन हाई स्कूल” में दाखिल हो गए। वहां बंबई के सेठ छबीलदास के पुत्र उनके सहपाठी थे। सेठ छबीलदास श्यामजी की प्रतिभा से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अपनी १३ वर्षीय पुत्री भानुमती का विवाह उनसे कर दिया।

उन्हीं दिनों आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद के धारा-प्रवाह संस्कृत भाषणों ने बंबई में हलचल मचा रखी थी, एक दिन श्यामजी महर्षि दयानंद का व्याख्यान सुनने गए। महर्षि दयानंद के व्यक्तित्व का श्यामजी पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। वह उनके शिष्य बन गए और आर्य समाज में प्रविष्ट हो गए। वेदों के अभ्यास में उनकी रुचि पैदा हुई। साल-दो साल श्यामजी आर्य समाज के प्रचारक के रूप में कार्य किया।

एक बार इंग्लैंड की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के संस्कृत के विद्वान मोनियर विलियम्स भारत आए थे। पूना की एक सभा में मोनियर विलियम्स श्यामजी के उत्कृष्ट धारा-प्रवाह संस्कृत भाषण से बहुत प्रभावित हुए और उन्हें ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में सहायक संस्कृत प्रोफेसर के पद पर नियुक्त करा दिया। वहां अध्यापन करने के साथ-साथ उन्होंने अपना अध्ययन भी जारी रखा और एम.ए. करके बेरिस्टरी भी पास कर ली। श्यामजी प्रथम भारतीय थे जिन्होंने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से एम.ए. और बेरिस्टरी पास की थी।

रॉयल एशियाटिक सोसाइटी के सदस्य


१९१८ में बर्लिन और इंग्लैड में “प्राच्य विद्या” के जो सम्मेलन हुए, उनमें भारत के प्रतिनिधि के रूप में श्यामजी कृष्ण वर्मा को भेजा गया। वह “रॉयल एशियाटिक सोसाइटी” के सदस्य भी बनाए गए। इंग्लैंड के “एंपायर क्लब” के जिसमें सिर्फ उच्च परिवार के लोग ही सदस्य बन सकते थे, श्यामजी कृष्ण वर्मा प्रथम भारतीय सदस्य बनाए गए।

बेरिस्टर बनने के पश्चात् श्यामजी कृष्ण वर्मा स्वदेश लौट आए, परंतु कुछ समय भारत में रहकर पुनः इंग्लैंड चले गए। जनवरी १८८८ में फिर भारत लौटने पर, उन्होंने रतलाम राज्य के दीवान पद पर कार्य किया। वहां दो वर्ष कार्य करके वह स्वेच्छा से नौकरी छोड़कर अजमेर चले गए। वहां उन्होंने वकालत शुरू की। वकालत करते हुए उन्होंने कपास की तीन मिलें और एक प्रेस भी खोला | उन्होंने लाखों रुपये प्राप्त किए। वह अजमेर नगरपालिका के सदस्य भी चुने गए थे। अजमेर में रहते हुए महर्षि दयानंद ने वर्माजी को “स्वराज्य” और “स्वधर्म” के लिए ठोस कार्य करने की प्रेरणा दी और उनको अपनी “परोपकारिणी सभा” का आजीवन सदस्य बना लिया।

श्यामजी कृष्ण वर्मा का इंग्लैंड दौरा


जिनसे श्यामजी कृष्ण वर्मा को बड़ौदा राज्य के दीवान का पद मिल रहा था, परंतु वह उसे त्याग, राष्ट्र के लिए ठोस कार्य शुरू करने के उद्देश्य से इंग्लैंड चले गए। अपने देश को गुलामी से मुक्ति दिलाने के लिए उन्होंने इंग्लैंड को अधिक उपयोगी समझा। इंग्लैंड पहुंचने पर उन्होंने एक मकान खरीद कर वहां से कार्य शुरू किया। भारत में होने वाले अंग्रेजी सरकार के अत्याचारों का विरोध करने तथा भारत की वास्तविक स्थिति संसार के सामने रखने के लिए श्यामजी कृष्ण वर्मा ने १९०५ के जनवरी मास में “इंडियन सोशियोलाजिस्ट” मासिक पत्रिका शुरू की और अपने निवास स्थान पर “इंडियन होम रूल सोसाइटी” की स्थापना की। इस सोसाइटी के प्रथम अध्यक्ष श्यामजी कृष्ण वर्मा ही बनाए गए।

इंडिया हाउस की स्थापना


इंग्लैंड पढ़ने के लिए जाने वाले हिंदुस्तानी विद्यार्थियों को वहां रहने की बड़ी कठिनाई होती थी। श्यामजी कृष्ण वर्मा ने उनके रहने की सुविधा के लिए एक विशाल भवन खरीद कर “इंडिया हाउस” की स्थापना की। “इंडिया हाउस” हिंदुस्तानी छात्रों का गढ़ बन गया। वर्माजी ने हिंदुस्तान के तेजस्वी छात्रों को महर्षि दयानंद, छत्रपति शिवाजी तथा राणा प्रताप आदि छात्रवृत्तियां देने की घोषणा की और वीर सावरकर को छात्रवृत्ति देकर इंग्लैंड बुलाया। सावरकर तथा मदनलाल ढींगरा आदि नौजवान इंडिया हाउस में रहकर श्यामजी कृष्ण वर्मा से देशभक्ति की दीक्षा लेने लगे। सावरकर ने उनके मार्गदर्शन में एक पुस्तक लिखी | जिसमें सिद्ध किया गया था कि १८५७ की क्रांति स्वार्थी राजाओं द्वारा चलाया गया विद्रोह नहीं था, अपितु राष्ट्र की स्वाधीनता का आंदोलन था।

श्यामजी कृष्ण वर्मा का इंग्लैंड छोड़ना


श्यामजी कृष्ण वर्मा तथा उनके द्वारा स्थापित “इंडिया हाउस” में रहने वाले भारतीय जवानों की गतिविधियां जोर पकड़ने लगी, यहां तक कि इंग्लैंड की संसद में वर्माजी के लेखों तथा व्याख्यानों की चर्चा होने लगी। स्थिति इतनी गंभीर बन गई कि श्यामजी कृष्ण वर्मा का इंग्लैंड में रहना कठिन हो गया। मौका पाकर वह इंग्लैंड से पेरिस चले गए। वहां भी उन्होंने इंडिया हाउस की स्थापना की और मादाम कामा तथा अन्य मित्रों के पेरिस पहुंचते ही ब्रिटिश सरकार विरोधी कार्य शुरू कर दिया |

श्यामजी कृष्ण वर्मा द्वारा बम बनाने की विधि प्रकाशित करना


पेरिस में वर्माजी ने “बम बनाने की विधि” नामक पुस्तक लिखकर छपवाई और भारतीय क्रांतिकारियों तक पहुंचाई। इस पुस्तक के भारत पहुंचने पर स्थान-स्थान पर क्रांतिकारियों ने बम बनाने शुरू किए। खुदीराम को मुजफ्फरपुर में कलेक्टर पर बम फेंकने के अपराध में फांसी मिली। वर्माजी के शिष्य मदनलाल ढीगरा ने, जो इंडिया हाउस में रहते थे, अनेक भारतीयों के हत्यारे सर कर्जन वायली की हत्या कर दी। श्यामजी कृष्ण वर्मा ने ढींगरा के शहीद हो जाने पर उनके नाम से भी छात्रवृत्ति देने की घोषणा की।

श्यामजी कृष्ण वर्मा को राजद्रोही घोषित करना


१९१२ के अंतिम दिनों में दिल्ली में लार्ड हार्डिंग पर बम फेंका गया जिसके परिणामस्वरूप अंगरक्षक की मृत्यु हुई। इंग्लैंड के पत्रों ने इस कांड से श्यामजी कृष्ण वर्मा का संबंध बताया। १९१४ में जब यूरोप में महायुद्ध शुरू हुआ तो वर्मा जी ने जर्मनी के पक्ष में जोर शोर से प्रचार किया। शर्त यह थी कि सफलता मिलने पर हिंदुस्तान को पूर्ण आजादी दिलाने में जर्मन सरकार मदद करेगी। इसी बीच इंग्लैंड के राजा जार्ज पेरिस गए। फ्रांसीसी सरकार ने अंग्रेजों के इशारे पर वर्मा जी को “राजद्रोही” घोषित किया। जब उनका फ्रांस में रहना कठिन हो गया।

वह स्विटजरलैंड चले गए। जेनेवा में रहते हुए वर्माजी ने अमेरिका, जर्मनी, रूस, जापान, मिस्र आदि देशों के प्रसिद्ध राजनीतिक पुरुषों से पत्र-व्यवहार द्वारा संपर्क बनाए रखा। वर्माजी ने यहां से लाला हरदयाल, चंपकरामन पिल्लै तथा चट्टोपाध्याय को आर्थिक मदद देकर जर्मनी से भारत जाने वाले स्टीमरों से भारत के क्रांतिकारियों को काफी हथियार भिजवाए।

श्यामजी कृष्ण वर्मा की मृत्यु


युद्ध की समाप्ति पर “सोशियोलाजिस्ट” पत्र जेनेवा में पुनः शुरू किया गया, किंतु वृद्धावस्था तथा आंखों की कमजोरी के कारण वर्मा जी को “इंडियन सोशियोलाजिस्ट” बंद करना पड़ा। कुछ मित्रों के विश्वासघात तथा स्वार्थी स्वभाव के कारण वर्मा जी बड़े हताश हो गए। अपने जीवन के अंतिम सात वर्ष उन्होंने जेनेवा में निराशाजनक स्थिति में बिताए। ३० मार्च १९३० को सांयकाल भारत माता के इस सपूत ने जेनेवा के अस्पताल में सदा के लिए इस दुनिया से विदा ले ली। पति के वियोग में भानुमती भी अधिक समय इस संसार में न रह सकीं। एक सुखी परिवार की पुत्री होते हुए भी उन्होंने अपने पति के साथ कंधे से कंधा मिलाकर, दुख-सुख में साथ रहकर, नारी-कर्तव्य का पालन किया।

FAQ`s


Questation : श्यामजी कृष्ण वर्मा कौन थे ?

Answer : जो लोग अपने लिए कुछ भी इच्छा न करके दूसरों के लिए प्राण देते हैं, उन्हें सारे संसार में ख्याति मिलती है। श्यामजी कृष्ण वर्मा ऐसे ही नर-रत्न थे, जिन्होंने अपने देशवासियों की स्वतंत्रता के लिए सर्वस्व न्योछावर कर दिया था।

Questation : श्यामजी कृष्ण वर्मा इंग्लैंड कब गए ?

Answer : श्यामजी कृष्ण वर्मा को बड़ौदा राज्य के दीवान का पद मिल रहा था, परंतु वह उसे त्याग, राष्ट्र के लिए ठोस कार्य शुरू करने के उद्देश्य से इंग्लैंड चले गए। अपने देश को गुलामी से मुक्ति दिलाने के लिए उन्होंने इंग्लैंड को अधिक उपयोगी समझा। इंग्लैंड पहुंचने पर उन्होंने एक मकान खरीद कर वहां से कार्य शुरू किया। भारत में होने वाले अंग्रेजी सरकार के अत्याचारों का विरोध करने तथा भारत की वास्तविक स्थिति संसार के सामने रखने के लिए श्यामजी कृष्ण वर्मा ने १९०५ के जनवरी मास में “इंडियन सोशियोलाजिस्ट” मासिक पत्रिका शुरू की और अपने निवास स्थान पर “इंडियन होम रूल सोसाइटी” की स्थापना की।

Questation : श्यामजी कृष्ण वर्मा की मृत्यु कब हुई ?

Answer : कुछ मित्रों के विश्वासघात तथा स्वार्थी स्वभाव के कारण वर्मा जी बड़े हताश हो गए। अपने जीवन के अंतिम सात वर्ष उन्होंने जेनेवा में निराशाजनक स्थिति में बिताए। ३० मार्च १९३० को सांयकाल भारत माता के इस सपूत ने जेनेवा के अस्पताल में सदा के लिए इस दुनिया से विदा ले ली।

Questation : इंडिया हाउस की स्थापना कब और किसने की ?

Answer : इंग्लैंड पढ़ने के लिए जाने वाले हिंदुस्तानी विद्यार्थियों को वहां रहने की बड़ी कठिनाई होती थी। श्यामजी कृष्ण वर्मा ने उनके रहने की सुविधा के लिए एक विशाल भवन खरीद कर 1905 मे “इंडिया हाउस” की स्थापना की। “इंडिया हाउस” हिंदुस्तानी छात्रों का गढ़ बन गया।

Questation : इंडिया हाउस के संस्थापक कौन थे ?

Answer : श्यामजी कृष्ण वर्मा जी इंडिया हाउस के संस्थापक थे |

Questation : श्यामजी कृष्ण वर्मा की शिक्षा कितनी और कहाँ हुई ?

Answer : श्यामजी कृष्ण वर्मा संस्कृत का विशेष अभ्यास कराने के लिए बंबई के प्रसिद्ध पंडित विश्वनाथजी शास्त्री द्वारा संचालित संस्कृत पाठशाला भेजे गए उसके बाद विल्सन हाई स्कूल के बाद श्यामजी “एल्फिंस्टन हाई स्कूल” में दाखिल हो गए | एम.ए. करके बेरिस्टरी भी पास कर ली। श्यामजी प्रथम भारतीय थे जिन्होंने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से एम.ए. और बेरिस्टरी पास की थी।

Questation : श्यामजी कृष्ण वर्मा का जन्म कब और कहाँ हुआ ?

Answer : श्यामजी कृष्ण वर्मा का जन्म गुजरात के कच्छ जिले के मांडवी नामक गांव में करसन (कृष्ण) जी भंसाली के यहां ४ अक्तूबर १८५७ को हुआ |

Questation : श्यामजी कृष्ण वर्मा को इंग्लैंड को छोड़ना पड़ा ?

Answer : श्यामजी कृष्ण वर्मा तथा उनके द्वारा स्थापित “इंडिया हाउस” में रहने वाले भारतीय जवानों की स्वतन्त्रता की गतिविधियां जोर पकड़ने लगी, यहां तक कि इंग्लैंड की संसद में वर्माजी के लेखों तथा व्याख्यानों की चर्चा होने लगी। स्थिति इतनी गंभीर बन गई कि श्यामजी कृष्ण वर्मा का इंग्लैंड में रहना कठिन हो गया। मौका पाकर वह इंग्लैंड से पेरिस चले गए।

Questation : श्यामजी कृष्ण वर्मा का देहांत कब हुआ ?

Answer : श्यामजी कृष्ण वर्मा का देहांत ३० मार्च १९३० को सांयकाल जेनेवा मे हुआ |

Questation : श्यामजी कृष्ण वर्मा किससे प्रभावित हुए ?

Answer : श्यामजी कृष्ण वर्मा एक विदुषी संन्यासिनी माता हरिकुंवरबा, देश भर के तीर्थ स्थानों का भ्रमण करती हुई द्वारिका से नारायण सरोवर जाते हुए मांडवी पहुंची। बालक श्यामजी हरिकुंवरबा से बड़े प्रभावित हुए और उनकी सेवा करने लगे। कच्छ की यात्रा में श्यामजी उनके साथ हो गए। यात्रा के दिनों में माता हरिकुंवरबा ने उन्हें संस्कृत का कुछ अभ्यास कराया, संस्कृत की पुस्तकें भेट की और आशीर्वाद देकर घर लौटा दिया।
इसके बाद महर्षि दयानंद के व्यक्तित्व का श्यामजी पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। वह उनके शिष्य बन गए और आर्य समाज में प्रविष्ट हो गए। वेदों के अभ्यास में उनकी रुचि पैदा हुई। साल-दो साल श्यामजी आर्य समाज के प्रचारक के रूप में कार्य किया।

Questation : इंग्लैंड मे श्यामजी कृष्ण वर्मा ने किस प्रकार की गतिविधिया की ?

Answer : श्यामजी कृष्ण वर्मा को बड़ौदा राज्य के दीवान का पद मिल रहा था, परंतु वह उसे त्याग, राष्ट्र के लिए ठोस कार्य शुरू करने के उद्देश्य से इंग्लैंड चले गए। अपने देश को गुलामी से मुक्ति दिलाने के लिए उन्होंने इंग्लैंड को अधिक उपयोगी समझा। इंग्लैंड पहुंचने पर उन्होंने एक मकान खरीद कर वहां से कार्य शुरू किया। भारत में होने वाले अंग्रेजी सरकार के अत्याचारों का विरोध करने तथा भारत की वास्तविक स्थिति संसार के सामने रखने के लिए श्यामजी कृष्ण वर्मा ने १९०५ के जनवरी मास में “इंडियन सोशियोलाजिस्ट” मासिक पत्रिका शुरू की और अपने निवास स्थान पर “इंडियन होम रूल सोसाइटी” की स्थापना की। इस सोसाइटी के प्रथम अध्यक्ष श्यामजी कृष्ण वर्मा ही बनाए गए।

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