हरि नारायण आपटे | Hari Narayan Apte

हरि नारायण आपटे | Hari Narayan Apte

हिंदी उपन्यास के क्षेत्र में जो स्थान प्रेमचंदजी का है, वही स्थान मराठी उपन्यास के क्षेत्र में हरि नारायण आप्टे का है। प्रेमचंदजी की भांति हरि नारायण आपटे मराठी के पहले व सर्वश्रेष्ठ उपन्यासकार माने जाते हैं। उन्होंने अपने उपन्यासों द्वारा आधुनिक मराठी उपन्यास की नींव डाली। उनके बाद मराठी उपन्यासकार आज तक उनकी ऊंचाई तक नहीं पहुंच सके।

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हरि नारायण आपटे का जन्म


इस प्रतिभा-संपन्न व्यक्ति का जन्म महाराष्ट्र के खान देश प्रांत के पारोले जिले में ८ मार्च १८६४ में हुआ। इनकी मां का नाम लक्ष्मीबाई तथा पिता का नाम नारायण था। हरि अभी चार वर्ष के भी नहीं थे, कि वह अपनी मां की शीतल छाया खो बैठे। इसलिए हरि का पालन-पोषण उनके चाचा महादेव चिमणाजी आपटे ने पुत्र के समान किया।

हरि नारायण आपटे की शिक्षा


हरि की आरंभिक शिक्षा मुंबई में हुई। १८७८ में वह पुणे पढ़ने गए। वहां न्यू इंग्लिश स्कूल में वह विष्णु शास्त्री चिपलूणकर, तिलक तथा आगरकर जैसे महान शिक्षकों से पढ़े। कालिज में डा. भंडारकर जैसे प्रकांड विद्वानों से शिक्षा ग्रहण करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। परंतु गणित में कमजोर होने के कारण वह डिग्री प्राप्त न कर पाए।

हरि पर इन गुरुजनों की विद्वता और सामाजिक विचारों का जो प्रभाव पड़ा, वह सदा के लिए बना रहा। उनके व्यक्तित्व, सामाजिक कार्यों तथा साहित्यिक कृतियों, सभी पर इन गुरुजनों का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। उन्होंने स्पेन्सर, मिल जैसे पाश्चात्य विचारकों का भी गहन अध्ययन किया था। इस अध्ययन से उन्होंने समाज-सुधार के महत्व को समझा।

हरि नारायण आपटे का विवाह


रानाडे, आगरकर आदि नेताओं से उन्हें समाज-सुधार का प्रत्यक्ष पाठ सीखने को मिला। उस समय के रिवाज के अनुसार हरि का पहला विवाह उनके बचपन में १६ वर्ष की आयु में हो गया। उस समय स्त्री-शिक्षा का प्रचार नहीं हुआ था। इस कारण उनकी पत्नी के लिए काला अक्षर भैस बराबर था। तब परिवार व समाज का विरोध होते हुए भी उन्होंने अपनी पत्नी को घर पर ही शिक्षा देना शुरू किया। समाज में उनकी निंदा हुई, परिवार के अन्य सदस्यों ने उन्हें तंग भी किया, हरि अपने निश्चय पर अडिग रहे।

हरि नारायण आपटे का जीवन


हरि की यह बहुत इच्छा थी, कि उनकी पत्नी लिखना-पढ़ना सीखे। दुर्भाग्यवश उनकी यह इच्छा अपूर्ण ही रही। १८९१ में उनकी पत्नी की एक असाध्य रोग से मृत्यु हो गई। दुर्घटना के पश्चात हरि अपना शेष जीवन सामाजिक कार्यों में व्यतीत करना चाहते थे। दुसरे विवाह के वह पक्ष में नहीं थे। परंतु परिवार वालों के बार-बार जोर देने पर उन्हें दूसरा विवाह करना पड़ा। दूसरे विवाह से उन्हें एक लड़की हुई। हरि उसे बड़ा प्यार करते थे, वह बालिका उनकी आंखों की पुतली थी। किंतु बचपन से ही वह बीमार रहने लगी और १९१३ में उसका देहांत हो गया। इससे उन्हें भारी चोट पहुंची। इकलौती बेटी की मृत्यु के दो वर्ष बाद उनके पिता नानासाहेब की मृत्यु हो गई।

हरि नारायण आपटे की मृत्यु


अपने प्रिय व्यक्तियों की मृत्यु के कठोर आघात को वह सहन न कर सके। उनका हृदय का रोग बढ़ गया। मुंबई का दौड़-धूप का जीवन उनकी प्रकृति के प्रतिकूल सिद्ध हुआ। १९१८ से वह बीमार रहने लगे। मुंबई से उन्हें पुणे में “आनंदाश्रम” में लाया गया। ३ मार्च १९१९ को उनका देहावसान हो गया।

हरि नारायण आपटे का सामाजिक कार्य


हरि को जीवन-भर प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना पड़ा, किंतु फिर भी वह अपने ध्येय से तनिक भी विचलित नहीं हुए। सामाजिक क्षेत्र में क्रांति करना उनका ध्येय था। इस ध्येय की पूर्ति के लिए एक ओर तो वह स्वयं आगे आए और दूसरी ओर साहित्य के माध्यम से अपने विचारों को जनसमुदाय तक पहुंचाया। रानाडे, आगरकर और गोखले जैसे वरिष्ठ समाज-सेवकों में उनकी गिनती होती है।

स्त्री-शिक्षा, बाल-विवाह, विदेश गमन, विधवाओं के बाल मुंडाना, पतित स्त्रियों का उद्धार आदि अनेक समस्याएं उस समय विद्यमान थीं। उन्हें सुलझाने में उन्होंने शक्ति-भर योगदान दिया। उन्होंने स्वयं अपनी दोनों पत्नियों को शिक्षा देने का प्रयत्न किया। उन्होंने कई शिक्षण संस्थाओं की स्थापना में भी योगदान दिया। बहुत से विद्यार्थियों के लिए छात्रवृत्तियों की भी व्यवस्था की। शिक्षा-क्षेत्र के अतिरिक्त अनेक सामाजिक संस्थाओं की स्थापना में भी हरि का हाथ रहा है।

१८९७ में पुणे शहर को प्लेग व अकाल जैसी भयंकर आपत्तियों का सामना करना पडा। इन दोनों संकटों में हरिभाऊ स्वयंसेवक बने और पीड़ितों की बहुत सेवा की। उनके चाचा चिमणाजी आप्टे ने पुणे में आनंदाश्रम नामक एक संस्था की स्थापना की थी, जिसे चलाने का भार हरि नारायण आप्टे पर था। इसमें प्राचीन ग्रंथो का संरक्षण, संशोधन व प्रकाशन, विविध धार्मिक संस्कारों का पालन, शास्त्री-पंडितो को प्रोत्साहन, साधु-संतों का आतिध्य आदि अनेक धार्मिक कार्य किए जाते थे। यह सारा काम हरि बड़ी आस्था व प्रेम से करते थे। इसके अतिरिक्त, पुणे की लगभग २०-२५ संस्थाओं के साथ उनका संबंध था।

एक बार वह पुणे नगर निगम के अध्यक्ष भी रहे।

हरि नारायण आपटे का साहित्य मे योगदान


इन कार्यों में अत्यंत व्यस्त रहने के बाद भी हरि लिखने के लिए समय निकाल लेते थे। जिन प्रतिकूल परिस्थितियों में वह रहे, उसमें साहित्य सेवा करना कठिन काम था, किंतु हरि के पास सहानुभूतिपूर्ण और भावुक हृदय था, जिसके कारण वह निरंतर साहित्य-रचना में लगे रहे। उनकी साहित्यिक प्रतिभा उनके विद्यार्थी-जीवन में ही प्रकट हो गई थी। हरि ने विद्यार्थी-अवस्था में विष्णुशास्त्री चिपलूणकर का मृत्यु पर “शिष्यजन विलाप” नामक काव्य लिखा था। यह काव्य अत्यंत लोकप्रिय हुआ।

साम आफ लाइफ का अनुवाद


लांगफेलो के “साम आफ लाइफ” का अनुवाद और “मेडोज टेलर” के दो उपन्यासों के तारा और पांडुरंग हरि नामक रूपांतर भी हरि ने विद्यार्थी-अवस्था में किए थे।

वस्तुतः एक बार आगरकर ने “केसरी” में एक लेख लिखकर यह प्रतिपादित किया कि कालिदास से भवभूति श्रेष्ठ थे। इस लेख के प्रत्युत्तर में हरि ने अपने लेख में यह सिद्ध किया, कि भवभूति से कालिदास ही श्रेष्ठ थे। कुछ समय बाद आगरकर ने शेक्सपीयर के हैमलेट का अनुवाद “विकार विलसित” नाम से प्रकाशित किया। इस अनुवाद पर हरिभाऊ ने ७२ पृष्ठों की समालोचना लिखकर उसके दोष बताए।

आगरकर जैसे प्रसिद्ध लेखक से हरि ने विद्यार्थी-जीवन में ही दो बार लोहा लिया। इससे उनकी साहित्यिक प्रतिभा का परिचय मिलता है।

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