चांद बीबी | चांद बीबी का इतिहास | chand bibi kaun hai | chand bibi kaun thi | chand bibi ka itihas | chand bibi ka jeevan parichay

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चांद बीबी | Chand
Bibi


चांद बीबी इतनी चतुर, साहसी और बहादुर थी, कि यदि उसे चांद बीबी ना कहकर चांद सुल्ताना
कहा जाए तो कोई
भी कोई बड़ी बात ना होगी । उसने
जिस वीरता के साथ अकबर की विशाल सेना का सामना किया
, उसकी मिसाल
दुनिया में बहुत कम मिलती हैं ।

सम्राट अकबर ने १५९१ में सारे दक्खन को विजय करने की योजना
बनाई । उस समय दक्खन में चार बड़े राज्य थे –  अहमदनगर
, खानदेश, बीजापुर और गोलकुंडा । इन चारो राज्यो के दरबार
में अकबर ने अपने दूत भेजे । इन दूतो ने कहा कि आप अकबर की अधीनता मान लीजिए ।

अहमदनगर, गोलकुंडा और बीजापुर के सुल्तान इससे बहुत
नाराज़ हुए और उन्होंने अकबर कि सत्ता स्वीकार करने से इंकार कर दिया
, लेकिन खानदेश का
शासक बहुत कमजोर था। इतनी बड़ी मुगल सेना के सामने वह खड़ा नहीं रह सकता था । उसने
तुरंत ही अकबर के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।

जब अकबर ने सुना कि दक्खन के तीन राज्यो ने उसकी सत्ता
स्वीकार करने से इंकार कर दिया है
, तो उसने अपनें
बेटे मुराद को उन्हें विजय करने के लिए भेजा
, मुराद की फ़ौजो
ने १५९५ में अहमदनगर को चारो तरफ से घेर लिया ।

अहमदनगर पर एक तरह से चांद बीबी का ही शासन चलता था । उस समय
तक वही देश की उत्तराधिकारीणी रह गई थी ।

वह हुसैन निजामशाह की कन्या और अली आदिल शाह की पत्नी थी ।
वह बहुत उच्च वंश की सदाचारिणी नारी तो थी ही साथ ही उसमें बुद्धि
, रण कौशल और
राजनीतिज्ञता की भी कमी नहीं थी । इसीलिए वह “नादीरत-उल-ज़मानी” (संसार
में अपने समय की अनुपम) कहलाती थी । जब चांद बीबी ने देखा कि देश हाथ से निकल रहा
है
, तो उसका रक्त खौलने लगा
। उसने बुरखा पहना और तलवार हाथो में संभलकर युद्ध भूमि में कूद पड़ी।

दुर्भाग्य से उस समय अहमदनगर की जनता में फूट पड़ी हुई थी ।
वहां दो दल बने हुए थे – एक शियाओ का
,  दूसरा सुन्नियों
का । देशद्रोहियों ने मुराद के पास खबर भेजी कि हम तुम्हारी सहायता करेंगे । इससे
स्थिति और विकट हो गई
, लेकिन चांद बीबी ने हिम्मत नहीं हारी । उसने अपने सभी
अमीरों को एक जगह बुलाया और उन्हें बड़ी चतुराई से समझा बुझाकर शांत कर दिया । अब
उनकी आंखे खुली और उनकी दृष्टि अकबर की विशाल सेना की ओर गई । उन्होंने मुराद को
सहायता का जो वचन दिया था उससे उन्हें बहुत पछतावा हुआ। लोगों ने मिलकर यही फैसला लिया
की चांद बीबी राज्य की उत्तराधिकारिणी बनकर किले में बैठे और वे सब कमर कसकर मैदान
में उतरे और जैसे भी हो अहमदनगर की रक्षा करे ।

लेकिन चांद बीबी चुपचाप बैठने वाली नहीं थी । वह किसी ना
किसी तरह शत्रु को परास्त करना चाहती थी । उसने चारो तरफ घूम-घूम कर अनाज और युद्ध
की सामग्री इकट्ठी करनी शुरू की । उसने अपनी चतुराई और राजनीति से दरबार के सभी
अमीरों को खुश और संतुष्ट कर दिया । उसने खुद ही इतनी अच्छी मोर्चेबंदी की कि
अहमदनगर का मोर्चा पुरी तरह दृढ़ बन गया ।

इसके बाद उसने इब्राहिम शाह के लड़के बहादुर शाह को
नाममात्र का सुल्तान बनाकर सिंहासन पर बिठा दिया और बीजापुर के इब्राहिम आदिलशाह
से संधि कर ली । इस तरह उसकी सारी तैयारियां पूरी हो गई ।

उस समय जो भी अहमदनगर की सेनाओं को देखता था, उसे उसके पीछे
चांद बीबी की देशभक्ति की ही छाप दिखाई देती थी। उसने एक बहादुर सेनापति की तरह
कवच पहना और तलवार तथा ढाल लेकर शत्रुओं से जूझ पड़ी। उसकी वीरता को देख कर बड़े-बड़े
सैनिक दंग रह गए । उसने खुद सैनिकों के आगे रहकर उनका नेतृत्व किया । उसने
युद्धभूमि में सैनिकों के सामने ऐसे जोशीले भाषण दिए की कायर से कायर व्यक्ति भी
पीछे रहने का साहस नहीं कर सका ।

चांद बीबी ने राजपुतानियो की बहुत सी गाथाएं सुन रखी थी। उसने
सुना था कि युद्ध के समय रानिया सैनिकों के सामने जोशीले भाषण देती हैं और उनमें
प्रेरणा भरकर कहती हैं कि “जाओ देश के लिए बहादुरी से युद्ध करो।“ लेकिन चांद बीबी
उनसे भी एक कदम आगे बढ़ गई । उसने सैनिकों को इकट्ठा करके कहा – “यह हम सबके मान
अपमान और आजादी गुलामी का प्रश्न है । मेरे साथ आओ और देश के लिए बहादुरी से युद्ध
करो ।“

फूल सी चांद बीबी अपनी फ़ौज को लेकर आगे बढ़ी और बाज की तरह
मुराद की सेनाओं पर टूट पड़ी । जब शत्रुओं ने देखा एक साहसी और निडर स्त्री हाथो
में शस्त्र लिए उनके सामने ही ज़मीन पर खड़ी बड़ी वीरता से उनका मुकाबला कर रही है
तो वे अवाक रह गए । ऐसा रण कौशल
, ऐसा साहस
उन्होंने पहले कभी नहीं देखा था और वह भी एक ऐसी स्त्री के द्वारा जो हमेशा ही
महलों कि दीवारों के भीतर रहकर फूलों की तरह पली हो ।

यह युद्ध कई दिनों तक चलता रहा । एक दिन मुराद के सैनिकों
ने सुरंग लगाकर चांद बीबी के किले की एक दीवार उड़ा दी। किले में भगदड़ मच गई । सभी
लोग भागने की योजना बनाने लगे । लेकिन धन्य था चांद बीबी का साहस ! शेरनी सा हृदय
रखने वाली उस स्त्री ने बुरका उतार फेका और चमचमाती हुई तलवार हाथो में लेकर किले
के बुर्ज पर जा खड़ी हुई । वह पहले से ही जानती थी की एक दिन ऐसा जरूर आएगा
, इसीलिए उसने
कड़ियां
, तख्ते, बांस आदि सारी
आवश्यक चीज़े पहले ही जमा कर ली थी । वह किले की गिरी हुई दीवार पर स्वयं आकर खड़ी
हो गई । उसने लोगो को धन का लालच देकर और डरा धमकाकर इतनी चतुराई से काम लिया कि
स्त्रियां और पुरुष सभी मिलकर काम में जुट गए। कुछ ही देर में किले की दीवार फिर
से खड़ी कर दी गई तथा उस पर तोपे चढ़ा दी गई ।

मुराद की फ़ौजे जब इन काम करते हुए लोगों पर हमला करती तो
धुआधार गोले बरसा कर उन्हें पीछे हटा दिया जाता ।

शाम के समय जब मुराद के सैनिक अपने डेरो पर लौट आए तो चांद
बीबी हजारों कारीगरों और राज मजदूरों को लेकर दीवार के पास आ खड़ी हुई । दीवार को
पक्का बनाने का काम शुरू हो गया । चांद बीबी घोड़े पर सवार थी । चारो तरफ मशाले जल
रही थी और
निर्माण का काम जोरों से
चल रहा था ।

चांद बीबी मजदुरो को भर-भर कर रुपए और अशर्फियां देती जाती।
जब मजदूरों ने यह देखा तो उन्होंने पूरी लगन से काम करना शुरू किया ।

जब दूसरे दिन शत्रुओं कि सेना मोर्चे पर ई तो उनसे देखा ली तीन गज चौड़ी और पचास गज ऊची
किले की दीवार ज्यो की त्यों बनकर तैयार हो गई है । सभी सैनिक अवाक रह गए और मन ही
मन चांद बीबी की प्रशंशा करने लगे।

एक लड़ाई में एक बार चांद बीबी के पास गोला बारूद समाप्त हो
गया । रसद मिलने के सारे रास्ते बंद हो गए थे और कहीं से कोई सहायता नहीं मिल रही
थी । तब चांद बीबी ने चांदी और सोने के गोले ढलवाए और उन्हें मुराद की फ़ौजों पर
मारना शुरू किया ।

अंत में उसकी वीरता फल लाई और मुराद की फ़ौजों को पीछे हटा
दिया गया । अब अहमदनगर पूर्णतः सुरक्षित था ।

जब मुराद ने देखा कि वहां उसकी दाल नहीं गलेगी तो उसने चांद
बीबी से संधि कर ली । इस संधि के अनुसार चांद बीबी ने बरार का इलाका अकबर को देना
स्वीकार कर लिया ।

इसके बाद पांच वर्षों तक अकबर ने अहमदनगर पर हमला करने का
साहस नहीं किया । पांच वर्ष बाद बादशाह अकबर में सबसे छोटे पुत्र ने अहमदनगर को
जीत लिया। इस बार उसकी विजय इसीलिए हुई क्युकी अब चांद बीबी उसका सामना करने के
लिए वहां नहीं थी । इस हमले से पहले ही उसके अमीरों और सरदारों ने मिलकर उसकी
हत्या कर डाली थी या उसे विष खाने पर मजबुर किया गया था । इस तरह उस पवित्र
, सदाचारिणी और
वीर बेगम का अंत हुआ । जब तक चांद बीबी जीवित रही
, तब तक अपने देश
वासियों से दिलों में देशभक्ति की ज्वाला फूकती रही । उसने कायर से कायर पुरुष को
भी देशभक्त और वीर बना दिया । जिसने भी उसे शत्रुओं पर बाज़ की तरह झपटते देखा था
,  वह उसे कभी नहीं भूल सका
। उसने दूसरी वीरांगनाओ की तरह लड़ाई की योजनाएं ही नहीं बनाई
, वरन् उसे स्वयं
क्रियान्वित भी किया ।

चांद बीबी के शत्रु मन ही मन उससे डरा करते थे और उसका नाम
सुनकर भयभीत हो जाते थे । चांद बीबी वीरता और साहस की दौड़ में पुरुष के कंधे से
कंधा मिलाकर ही नहीं चली बल्कि उससे आगे भी निकल गई ।

अकबर भी मन ही मन उस पर श्रद्धा करने लगा था, इसीलिए अहमदनगर
पर विजय पा लेने के बाद उसने जो सबसे पहला काम किया वह था चांद बीबी के हत्यारों
की खोज । जब तक उसने चांद बीबी के एक एक हत्यारे को पकड़वाकर मार नहीं दिया तब तक
उसे चैन नहीं मिला ।

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