तेनाली राम की कहानी | लालची ब्राह्मण | Tenali Rama Story
विजयनगर के ब्राह्मण बड़े ही लालची हुआ करते थे । हमेशा किसी न किसी बहाने से वह अपने राजा कृष्णदेव राय से धन वसूल करते रहते थे । राजा की उदारता का अनुचित लाभ उठाना उनकी आदत हो चुकी थी ।
एक दिन राजा कृष्णदेव ने ब्राह्मणों से कहा, “मरते समय मेरी मां ने आम खाने की इच्छा व्यक्त की थी, जो उस समय पूरी नहीं की जा सकती थी । क्या अब ऐसा कुछ हो सकता है, जिससे उनकी आत्मा को शांति मिले।”
ब्राह्मणों ने एक स्वर में कहा – “महाराज, यदि आप एक सौ आठ ब्राह्मणों को सोने का एक-एक आम भेंट कर दें तो आपकी मां की आत्मा को अवश्य शांति मिल जाएगी । ब्राह्मणों को दिया दान मृतात्मा तक अपने आप पहुंच जाता है महाराज।”
राजा कृष्णदेव राय ने सोने के एक सौ आठ आम तुरंत ही दान कर दिए । उन आमों को पाकर ब्राह्मणों की तो मानो मौज ही हो गई हो । तेनाली राम को ब्राह्मणों की इस लालच पर बहुत क्रोध आया । वह उन्हें सबक सिखाने की ताक में रहने लगे ।
जब तेनाली राम की मां की मृत्यु हुई, तो एक महीने के बाद उसने ब्राह्मणों को अपने घर आने का न्यौता दिया कि वह भी अपनी मां की आत्मा की शान्ति के लिए कुछ करना चाहता है ।
खाने-पीने और बढ़िया माल पाने के लोभ में एक सौ आठ ब्राह्मण तेनाली राम के घर पर जमा हो गए । जब सब आसनों पर बैठ गए तो तेनाली राम ने दरवाजे बंद कर दिए और अपने नौकरों से कहा, “जाओ, लोहे की गरम-गरम सलाखें लेकर आओ और इन ब्राह्मणों के शरीर पर दागो ।”
ब्राह्मणों ने जब ये सुना तो उनमें चीख-पुकार मच गई । सब उठकर दरवाजों की ओर भागे । नौकरों ने उन्हें पकड़ लिया और एक-एक बार सभी को गरम सलाखें दागी गई । यह बात राजा तक पहुंची । वह स्वयं आए और ब्राह्मणों को बचाया ।
क्रोध में राजा ने पूछा, “यह क्या हरकत है, तेनाली राम ?”
तेनाली ने उत्तर दिया, “महाराज मेरी मां को जोड़ों के दर्द की बीमारी थी । मरते समय भी उनको बहुत तेज दर्द था ।
उन्होंने अंतिम समय में यह इच्छा प्रकट की थी कि दर्द के स्थान पर लोहे की गरम सलाखें दागी जाएं ताकि वह दर्द से मुक्ति पाकर चैन से प्राण त्याग सकें । उस समय उनकी यह इच्छा पूरी नहीं की जा सकी । इसी लिए ब्राह्मणों को सलाखे दागनी पड़ रही है ।”
राजा हंस पड़े तथा ब्राह्मणों के सिर शर्म से झुक गए । आगे से वह राजा को ठगने का साहस कभी न कर सके ।