ताल बेताल विक्रमादित्य – रूप सुंदरी | Vikramaditya And Betal
बेताल अपनी कहानी कहता जा रहा था –
‘राजा विक्रम ! अंगज देश में संत व बसंत दो भाई थे । बसंत बड़ा था और संत छोटा । दोनों बहुत सुन्दर नवयुवक थे । दोनों में आपस में बड़ा प्यार भी था । दोनों का हमेशा साथ रहता था । दोनों का भ्रातृप्रेम लोगों के लिए प्रसन्नता और कौतूहल का विषय था । दोनों भाई प्राय: साथ-साथ घूमने भी जाया करते थे ।
एक बार उद्यान में घूमते हुए बसंत की नजर एक सुंदरी पर पड़ी । वह अपने होशो-हवास खो बैठा । “क्या देख रहे हो भैया ? ‘ संत ने अपने बड़े भाई से पूछा ।
‘क…कुछ नहीं… ।”
पर अब संत की भी निगाहें उस पर पड़ गईं ।
“क…कौन है, यह परम सुन्दरी ।”
सुनो राजा विक्रम । दोनों ही भाई उस पर मोहित हो गए । सुंदरी के हाव-भावों से दोनों को ही लगा कि वह उन पर मोहित है । वह चली गई ।
दोनों इधर-उधर चक्कर काटकर यह पता करने की कोशिश करने लगे कि वह सुन्दरी कौन थी ?
कुछ देर बाद एक अधेड़ महिला दिखी । उन्होंने उससे सुंदरी के बारे में पूछा ।
वह महिला उन दोनों का आशय समझकर मुस्कराती हुई बोली-“कल उद्यान में इसी समय आना । यहीं पर मिलेगी।”
सुंदरी से दोनों भाई मिलना चाहते थे । लेकिन बसंत ने अपने बड़े होने का फायदा उठाया । उसने छोटे भाई को विवश कर दिया ।
संत मन मसोसकर रह गया ।
हे राजा विक्रम ! इस प्रकार एक सुन्दर युवती के कारण दोनों भाइयों में मनमुटाव हो गया । एक दीवार खड़ी हो गई । दोनों के मन में एक-दूसरे के प्रति द्वेष जन्म लेने लगा ।
उधर बसंत उसी उद्यान की ओर बढ़ गया । सुन्दरी उपस्थित थी । बसंत उसके पास आकर खड़ा हो गया । बड़े प्यार से पूछा – “सुन्दरी! तुम कौन हो ?”
“मैं माया हूं।”
“माया !”
“हां मेरा नाम माया है।” वह गजब की मोहक मुस्कान के साथ बोली ।
“तुम्हारा परिचय पाकर प्रसन्नता हुई।” बसंत बोला । क्या तुमको मेरा प्रणय स्वीकार है ।
“प्रणय।” वह खिलखिलाकर हंस पड़ी – “क्या तुम मुझसे विवाह करना चाहते हो।”
“हां।”
“पर मेरा यह रूप बनावटी है, देखो।”
और सुनो राजा विक्रम ! परम सुन्दरी एक साधारण रूपरंग की युवती बन गई । बोली– “एक विशेष लेप लगाने के कारण मैं परम सुन्दरी हो जाया करती हूं । यह लेप एक ऋषि ने मुझे दिया है । जब तक कोई मुझे स्पर्श न करेगा । मेरा रूप बना रहेगा, पर स्पर्श करते ही मेरा वास्तविक रूप सामने आ जाएगा । तब क्या तुम मेरे साथ रमण कर सकोगे ?”
बसंत देखता रह गया । उसका बदला रूप देखकर बसंत का मन टूट गया, उसका सारा स्नेह और प्यार हवा हो गया ।
वह चुपचाप वापस लौट आया ।
संत बड़ी बेकरारी से उसका इन्तजार कर रहा था । बसंत को एकदम निराशा में देखकर वह दौड़ा हुआ पास आया ।
“क्या हो गया है भैया ?”
बसंत ने एक ठंडी सांस ली और बोला -“‘कल तुम हो आना।”
संत का मन उत्साह से भर गया । विश्वास हो गया कि उसने बसंत को जवाब दे दिया है । वह रात भर करवटे बदलता रहा । सवेरा हुआ । ठीक समय पर वह उसी बगीचे में आया । परम सुन्दरी वहां पर उपस्थित थी । संत उसके पास गया ।
“तुम कौन हो सुन्दरी ?”
“मेरा नाम माया है…।”
संत ने अपना परिचय दिया। फिर बोला-“क्या तुम्हें मेरा प्रणय स्वीकार है ?”
“हां, क्या विवाह करोगे ?”
“अवश्य । “
“पर मुझे देखो।”
यकायक उसका वैसा ही रूप हो गया, जैसा बसंत के सामने हुआ था । बोली-“लेप के कारण मैं परम सुन्दरी हूं पर स्पर्श करते ही मेरा वास्तविक रूप सामने आ जाता है।”
संत मुस्करा उठा–“तो क्या हुआ ? मुझे तो प्यार हो गया है । रूपवान नहीं हो तो गुणवान होगी।”
“मुझे सब आता है । पति को परम संतुष्ट रखने के उपायों के साथ-साथ मैं कुशलतम गृहिणी भी हूं ।
“मैं तुमसे विवाह करूंगा।” संत ने अपना विचार न बदला ।
वह युवती तब संत को अपने घर ले गई । अपने माता-पिता से संत का परिचय बताया । माता-पिता मान गए । संत प्रसन्न होकर वापस आया ।
उसने बसंत से कहा—“मैं उससे विवाह कर रहा हूं।”
बसंत को आश्चर्य लगा । पूछा-“सब समझ लिया है न ।”
“हां !”
“वह साधारण औरत है। लेप लगाकर रूपवती बन जाती है।”
“मालूम है।”
बसंत को आश्चर्य लगा, पर हे राजा विक्रम ! संत विवाह कर उस रूपवती को ले आया । माता-पिता बड़े ही प्रसन्न हुए । बसंत का मन फीका पड़ गया । संत विवाह के उपरान्त रमण से पूर्व उसका स्थायी रूप देखकर चकित रह गया ।
“तुम तो बदलती नहीं हो।”
“नहीं मेरा वास्तविक रूप यही है । मैं तो परीक्षा के लिए ऐसा करती थी । देखना था कौन शरीर से नहीं, गुण से प्यार करता है।”
संत परम प्रसन्न हो गया । जब यह बात बसंत को मालूम पड़ी तो हे राजा विक्रम ! बसंत के कलेजे पर सांप लोटने लगा । वह व्याकुल हो गया । अपनी मूर्खता पर पश्चाताप करने लगा ।
राजा विक्रम ! देखो एक सुन्दरी ने दोनों भाइयों को दुश्मन बना दिया । और एक दिन तो काम के वशीभूत हो, बसंत ने रूपवती को बलपूर्वक पकड़ लिया । रूपवती शोर करने लगी । तभी संत आ गया ।
उसने अपने बड़े भाई की यह हरकत देखी, तो उसके क्रोध का पारावार न रहा, उसने तुरन्त तलवार निकाल कर बसंत का सिर काट डाला ।
हाहाकार मच गया ।
सब संत को धिक्कारने लगे । बड़े भाई का सिर काट डाला । लोग आश्चर्यचकित थे । दोनों भाइयों में कितना प्यार था ।
विक्रम बेताल के सवाल जवाब
बेताल के सवाल :
राजा को खबर लगी । संत को सिपाही पकड़कर ले गए । राजा ने सब हाल सुना और अपना निर्णय सुना दिया । तुम तो बड़े न्यायप्रिय हो राजा विक्रम ! बताओ राजा ने क्या निर्णय दिया होगा।”
विक्रम कुछ न बोला ।
राजा विक्रमादित्य के जवाब :
“कहो न राजा विक्रम!”
विक्रम बोला–“सुनो बेताल ! बाह्य सौन्दर्य अस्थायी होता है । गुण ही स्थायी सौन्दर्य और सुखी दाम्पत्य जीवन के आधार हैं । संत का निर्णय उचित था । अतएव संत को मैं निर्दोष मानता हूं । मेरा यही निर्णय होता।”
“धन्यवाद राजा विक्रम।” विक्रम की बात पर बेताल खिलखिलाकर हंस पड़ा । उसकी यह हंसी बड़ी ही भयानक थी ।
इससे पहले कि राजा विक्रम अपने को संभाल सके, तभी बेताल भाग निकला । विक्रम दौड़ा, पर बेताल फिर उसी डाल पर जाकर उल्टा लटक गया । विक्रम क्रोध से भर गया । वह बेताल को पकड़ने फिर लपक गया । इस बार उसके क्रोध की सीमा न थी ।