विक्रमादित्य और बेताल | कुलटा | Vikramaditya Aur Betal

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विक्रमादित्य और बेताल | कुलटा | Vikramaditya Aur Betal

विक्रम ने पूरी ताकत से बेताल की टांग पकड़कर खींची और गुस्से से चीखा – “शैतान ! तू मानता नहीं है।”

“तुम तो व्यर्थ ही क्रोध में आ जाते हो राजा विक्रम ! आखिर तुम समझते क्यों नहीं कि मैं जो कुछ भी कर रहा हूं तुम्हारी भलाई के लिए ही कर रहा हूं।”

“कैसी भलाई ?” झुंझला उठा राजा विक्रम ।

यह तुम समय आने पर समझोगे।”

“तुम बहुत चालाक हो । कहते हुए उसने उसे कंधे पर लादा और चल दिया । बेताल हंसने लगा ।

फिर कुछ देर बाद बेताल बोला – “सुनो राजा विक्रम ! मैं तुमको स्वर्ण देश की एक सच्ची कहानी सुनाता हूं । स्वर्ण देश का नगर सेठ बडा धार्मिक था । वह गरीबों की बड़ी सहायता करता था । उसका सभी लोग गुणगान करते थे । राजा भी उसका बड़ा प्रशंसक था ।

उसका एक बेटा था । अकेली संतान होने के कारण उसका लालन-पालन बड़े प्यार से हुआ था । कुछ साल बाद लड़का जवान हो गया । बहुत खूबसूरत था वह । उसके पड़ोस में एक विवाहित स्त्री रहती थी । वह सेठ पुत्र पर मुग्ध हो गई थी । दोनों के मकान पास-पास लगे थे । सरलता से एक-दूसरे के घर में आना-जाना हो सकता था, पर विवाहिता विरहाग्नि में बेतरह सुलग रही थी । उसका पति परदेश गया था । रात में उसे नींद न आ रही थी । वह व्याकुल हो रात के सन्नाटे में नगर सेठ के भवन में आ गई । उसको पता था कि नगर सेठ के पुत्र का शयनकक्ष कौन-सा है ? वह उसी कक्ष की ओर बढ़ गई ।

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नगर सेठ का पुत्र उस समय जाग रहा था । बाहर घना अंधकार न था । अतएव वह एक युवती को अपने कक्ष के द्वार पर देखकर चौंक गया ।

‘कौन हो तुम ?”

युवती कोई जवाब न दे, उसके एकदम समीप आ गई । बोली-“मैं तुम्हारी प्रियतमा हूं।”

वह उसके पास लेट गई । नगर सेठ का पुत्र घबरा गया । विरहाग्नि से पीड़ित युवती रमण की याचना करने लगी । युवक उसको प्रेतनी समझकर भयभीत हो गया । वह बेहोश हो गया । वह युवती घबराकर चली गई ।

संयोग देखो राजा विक्रम, इसी समय कुछ चोर नगर सेठ के भवन में प्रवेश कर गए थे । उन चोरों में उस स्त्री का पति भी था, जो परदेस का बहाना बनाकर चोरियां किया करता था और चोरी के माल को अपना व्यापारिक लाभ बताकर अपनी पत्नी और पड़ोसियों को धोखा दिया करता था ।

वह युवती चोरों को देखकर छिप गई । छिपकर उसने सब कुछ देखा । उसका पति अपने गिरोह के साथ चोरी कर चलता बना । युवती चुपचाप घर लौट आई ।

हे राजा विक्रम ! सवेरे हल्ला मच गया । पुत्र ने सारा हाल बतलाया । युवती के आने की भी बात कही । इस घटना पर सब हैरान थे ।

नगर सेठ के पुत्र की दृष्टि पड़ोस की युवती पर गई । उसने उसे पहचान लिया और अपने पिता को सब बतला दिया । नगर सेठ ने राजा को खबर दी ।सिपाही उस युवती को पकड़कर ले गए । युवती ने अपराध से इन्कार किया । वह साफ मुकर गई ।

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द्वेषवश नगर सेठ के पुत्र ने उस पर झूठा इल्जाम लगाया है । अभी वह इस बात को कह ही रही थी कि हे राजा विक्रम ! दैवयोग से उसके पति को चोरी के माल सहित राजा के सिपाही पकड़कर ले आए । जब उस युवती ने अपने पति को देखा तो वह बहुत घबरा गई ।

राजा ने सारा हाल सुनकर चोर पति को तो मृत्यु दण्ड दिया जबकि उसकी पत्नी को राज्य से निकाल दिया।

विक्रम बेताल के सवाल जवाब

बेताल के सवाल :

अपनी बात पूरी कर बेताल ने पूछा-“बोलो राजा विक्रम ! क्या यह न्याय ठीक था ?”

राजा विक्रमादित्य के जवाब :

विक्रम कुछ न बोला । बेताल ने फिर पूछा, तो विक्रम ने मौन भंग किया—“राजा का न्याय गलत मानता हूं मैं।”

“वह कैसे?” पूछा बेताल ने।

“पति को मृत्यु दंड देना तो ठीक था, पर युवती को राज्य निकाला गलत था।”

“क्यों ?”

उस युवती ने सब कुछ जानते हुए भी बात छिपाई । इस प्रकार उसने अपने को बचाने का ही प्रयास किया । यह तो उसका धर्म था।

‘यह तो त्रिया चरित्र है।” बेताल हंसने लगा – “ऐसी स्त्री का भी कोई धर्म होता है, भला राजा विक्रम ।”

विक्रम ने गंभीरतापूर्वक कहा – “सुनो बेताल ! पतित से भी पतित आदमी में कुछ न कुछ ईमान-धर्म अवश्य रहता है । कामेच्छावश वह बहक गई थी, पर फिर भी उसके मन में पति के प्रति प्यार था । इस कारण उसे दंडित नहीं करना था । आदमी को हर समय गिरा हुआ मानना उचित नहीं है।”

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“तुम ठीक कहते हो, राजा विक्रम!” कहते हुए बेताल जैसे ही ठठाकर हंसा कि विक्रम ने उसे कसकर पकड़ लिया ।

इस पर बेताल बोला—”इस बार मैं नहीं भागूंगा राजा विक्रम। तुम चिन्ता न करो।”

विक्रम को बेताल की बात पर विश्वास न आया । वह उसको कसकर पकड़े रहा । बेताल चुपचाप लटका रहा ।

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