राजा विक्रमादित्य की कथा | खून का रंग | Raja Vikramaditya And Betal Story

राजा विक्रमादित्य की कथा | खून का रंग | Raja Vikramaditya And Betal Story

एक बार फिर राजा विक्रम ने बेताल को दबोच लिया और उसे कंधे पर लादकर चल दिया । तब बेताल अचानक ठहाका मारकर हंस पड़ा ।

विक्रम बड़े गुस्से में था । उसने अपनी पकड़ और अधिक सख्त कर दी । बेताल का इस प्रकार बिना कारण हंसना राजा विक्रम को बड़ा ही नागवार गुजरा था ।

” क्या बात है बेताल ? क्यों हंस पड़े ? ” झुंझलाकर उसने पूछा ।

बेताल और जोर से हंसा । एक तो वैसे ही भयानक जंगल और ऊपर से मुर्दे का अट्टहास । वातावरण और थर्रा गया । यह माहौल बड़े-से बड़े बहादुर का खून जमा देने के लिए काफी था ।

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बेताल बोला—”एक बात का खयाल आ गया, राजा विक्रम ! उसी कारण हंसी आ गई ।”

‘कौन-सी बात ?”

“एक कहानी याद आ गई। सुनो, सुनाता हूं।”

“नहीं…।” विक्रम गुर्राया—“मुझे कोई कहानी नहीं सुननी है, तुम चुपचाप चलो।”

“क्यों नाराज होते हो विक्रम।”

“तुम धोखेबाज हो।”

बेताल फिर हंसा, फिर बोला-“समय काटने का कहानी से अच्छा और कोई साधन नहीं है विक्रम। सफर लम्बा है और मंजिल दूर है, तुम थक जाओगे । मगर मेरी कहानी तुम्हें थकने नहीं देगी, और बेताल कहने लगा –

“सुनो, राजा विक्रम !”

अधक देश का राजा बड़ा ही प्रतापी और दयालु था । उसका राज्य दूर-दूर तक फैला था । राजा स्वयं अपनी प्रजा के दुख सुना करता था और यथासंभव सहायता दिया करता था । एक दिन राजा के दरबार में एक वैश्य आया । उसके साथ तीन लड़के भी थे, पर सबके सब अंधे थे । वह राजा को प्रणाम कर एक ओर चुपचाप खड़े हो गए थे ।

“राजन, मैं इस समय बहुत संकट में हूं । आप कृपया मुझे हजार स्वर्ण मुद्राएं ऋण दें । मैं छह माह बाद वापस कर दूंगा।” वैश्य ने कहा ।

“ऐसी क्या आवश्यकता आ गई, सेठ ?”

“राजन मैं व्यापार के लिए विदेश जाऊंगा।”

राजा चुप रह गया।

वैश्य बोला–“राजन ! स्वर्ण मुद्राओं के बदले मैं अपने तीनों बेटों को आपके पास गिरवी रखे जा रहा हूं ।”

“पर वह तो अंधे हैं। उनका क्या उपयोग है ?”

“ऐसा न कहें राजन ! मेरे तीनों बेटे बड़े गुणी हैं । पहला लड़का घोड़ों की पहचान में अद्वितीय है ।

दूसरा लड़का आभूषणों का अद्भुत पारखी है । तीसरा लड़का शस्त्रों का पारखी है।”

“पर अंधे होकर… ?” राजा को आश्चर्य हुआ ।

“राजन ! यह लोग स्पर्श और गंध के आधार पर कार्य करते हैं । अगर इनकी एक भी बात गलत निकले तो आप इनकी गरदनें उड़ा देना । मेरे आने पर मुझे भी दंड देना । आपके राजकाज में मेरे तीनों बेटे आपकी सेवा करेंगे ।”

“ठीक है।” राजा मान गया।

उसने वैश्य की मांग पूरी कर दी । राजा ने तीनों लड़कों के खान-पान तथा रहने की उचित व्यवस्था कर दी ।

राजा विक्रम ! इस प्रकार कुछ समय बीत गया, तो घोड़ों का एक व्यापारी आया । उसने एक बड़ा सुन्दर घोड़ा राजा को दिखलाया । वह घोड़ा देखकर राजा का मन ललचा गया और वह उसे खरीदने को तैयार हो गए ।

“एकदम काबुली घोड़ा है, अन्नदाता !” सौदागर बोला—”बड़ी मेहनत से आपके पास लाया |

सौदागर ने बड़ा ऊंचा दाम बतलाया, पर राजा खरीदने के लिए तैयार हो गया । फिर यकायक राजा ने हुक्म दिया–“वैश्य के बड़े पुत्र को बुलाकर लाओ।”

तुरन्त वैश्यपुत्र को पेश किया गया ।

“आज्ञा, राजन !”

यह घोड़ा देखकर बतलाओ—”कैसा है ?”

“जो आज्ञा सरकार।”

वह टटोलकर घोड़े के पास गया । एक अंधे को घोड़ा परखते देखकर सौदागर मुस्करा पड़ा और लोग भी मंद-मंद मुस्करा रहे थे । भला अंधा, घोड़े की क्या पहचान कर सकता है । वह लड़का घोड़े को सूंघने लगा, तो सौदागर बोला–“बस करो भाई । कहीं घोड़ा भी सूंघकर परखा जाता है ।”

“कैसा घोड़ा है?” पूछा राजा ने।

“राजन! यह घोड़ा भूलकर भी न खरीदें।”

‘क्या बात है?”

“हाथ कंगन को आरसी क्या। किसी को बैठाकर परख लें।”

राजा ने एक सैनिक को आदेश दिया । वह घोड़े पर बैठा । कुछ दूर जाकर घोड़े ने उसे पटक दिया फिर बुरी तरह हिनहिनाने लगा।

सौदागर आश्चर्यचकित रह गया, बोला- “राजन! यह घोड़ा मेरे साथ ऐसा नहीं करता।”

तभी अंधा बोल उठा – “तुम्हारे साथ क्या, हर ग्वाले के साथ ऐसा नहीं करेगा । तुम ग्वाले हो गाय-भैंस का रोजगार छोड़कर घोड़ों का व्यापार कर रहे हो।”

“मैं ग्वाला हूं। तुमको कैसे पता ?”

‘यह घोड़ा तुम्हारे घर ही जन्मा है । इसके मां-बाप भी तुम्हारे पास थे । तुमने इस घोड़े को भैंस का दूध पिलाया है । इसकी महक से मैं समझ गया।”

सौदागर चकित रह गया । बनिए का अंधा लड़का एकदम सच कह रहा था ।

“तुमने कैसे जाना ?”

“सूंघकर।”

सौदागर हाथ जोड़कर चला गया । राजा वैश्य के उस अंधे लड़के पर प्रसन्न हो गया । राजा ने आदेश दिया–“इसकी खुराक दुगुनी कर दी जाए।”

राजा ने वैश्य की बात सच पाई । इस प्रकार हे राजा विक्रम ! वह तीनों लड़के आनन्दपूर्वक राजा के घर रह रहे थे कि एक दिन एक जौहरी आया । उसने नाना प्रकार के हीरे-जवाहरात राजा को दिखलाना शुरू कर दिए । राजा ने कुछ जवाहरात पसन्द किए । फिर हुक्म दिया—“वैश्य के दूसरे लड़के को बुलाकर लाओ।”

वैश्य का दूसरा अंधा लड़का आया । राजा ने उसे अपनी पसन्द के जवाहरात परखने को कहा । वह लड़का टटोलकर परखने लगा । सुन्दर जवाहरात उसने अलग कर दिए ।

‘इनको आप न लें।”

‘क्या बात है ?”

‘अशुभ हैं ये सब । कम से कम लाल महा अशुभ हैं, जिसके पास आता है, उसके परिवार के एक सदस्य की मृत्यु हो जाती है । जौहरी इस बात को जानता है।”

उस अंधे लड़के की बात सुनकर जौहरी बेतरह घबरा गया ।

राजा ने पूछा-“सच बोलना जौहरी ! क्या यह सच्ची बात है।”

जौहरी हाथ जोड़कर बोला-“हां महाराज, मुझे क्षमा करें।’

राजा ने जौहरी को क्षमा कर दिया । वह चला गया । राजा वैश्य के इस दूसरे बेटे पर खुश हो गया ।

“इसकी खुराक भी दुगुनी कर दो।”

राजा विक्रम ! इसी प्रकार एक शस्त्र विक्रेता आया, वैश्य का तीसरा लड़का भी परीक्षा में सफल रहा । राजा ने खुश होकर हुक्म दिया । “इसकी खुराक भी दुगुनी कर दो।”

कुछ समय बाद वैश्य वापस आ गया । उसने राजा का ऋण वापस कर दिया ।

अपने लड़कों को वापस ले जाने लगा । तब राजा बोला—“तुम इन लड़कों के बाप हो । तुम्हारा क्या गुण है ?”

“मैं आदमी की पहचान कर सकता हूं।”

“हमारी पहचान क्या है ? बोलो।”

‘आप नानबाई की औलाद हैं।” बनिया बोला—“मेरे लड़कों को कोई पुरस्कार न देकर आपने हर बार उनकी खुराक ही बढ़ाई है ।”

विक्रम बेताल के सवाल जवाब

बेताल के सवाल :

सुनते ही राजा आग-बबूला हो गया । उसने बनिए और उसके बेटों को मरवा डाला । अब बोलो राजा विक्रम! क्या राजा पाप का भागी बना या नहीं?”

विक्रम कुछ न बोला ।

‘जवाब दो राजा।” बेताल बोला।

राजा विक्रमादित्य के जवाब :

‘इसमें राजा पाप का भागी नहीं बना।” विक्रम बोला–“खून का असर भला कभी जा सकता है।

बनिए को समझदारी से काम लेना था । अपने कारण वह बेटों समेत मौत की गोद में समा गया।”

बेताल ठठाकर हंस पड़ा। वह बोला-“तुम ठीक कहते हो, राजा विक्रम !”

वह कंधे पर से उछलकर भागा । विक्रम तेजी से उसके ही पीछे दौड़ा । बेताल भागा जा रहा था । विक्रम पीछा कर रहा था ।

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