विक्रम बेताल की कहानी भाग 5 – अधिकार | Vikram Betal Episode 5
“विक्रम ! मैं समय काटने के लिए तुम्हें एक कहानी सुनाता हूं, सुनो।”
कुछ समय बाद विक्रम से बेताल ने कहा – “कहानी सुनकर तुम्हें अपना निर्णय देना है, याद रखना विक्रम, यदि जानते-बूझते तुमने उत्तर न दिया तो तुम्हारा सिर टुकड़े-टुकड़े होकर बिखर जाएगा।” विक्रम खामोशी से अपना रास्ता तय करता रहा ।
वह जानता था कि इधर उसने जुबान खोली और उधर बेताल रफूचक्कर हुआ । मगर बेताल भी अपनी किस्म का एक ही था । विक्रम के किसी उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना उसने कहानी सुनानी आरम्भ कर दी –
मगध देश की राजकुमारी अद्वितीय सुन्दरी थी । जैसी वह रूपवती थी, वैसी ही गुणवती भी थी । उसके युवा होने भर की देर थी कि एक से एक गुणी राजकुमार के रिश्ते उसके लिए आने लगे । मगर उनमें से किसी भी रिश्ते को राजकुमारी ने स्वीकार नहीं किया ।
धीरे-धीरे समय गुजरने लगा । राजकुमारी की मां को चिंता सताने लगी कि बेटी हर रिश्ते को ठुकरा देती है आखिर इसके मन में है क्या ? आखिर यह चाहती क्या है ?
एक दिन उसने राजकुमारी से पूछ ही लिया – “बेटी! तू हर रिश्ते को ठुकरा रही है, क्या कारण है । क्या तुझे उनमें से कोई भी राजकुमार पसंद नहीं ?”
“नहीं मां। इनमें कोई मेरे योग्य नहीं।”
“मगर बेटी ! तुम्हारी नजर में योग्यता का मानदण्ड क्या है ?”
“जो राजकुमार शक्तिशाली और अपनी पत्नी की रक्षा करने में समर्थ होगा, मैं उससे विवाह करूंगी ? ” राजकुमारी ने कहा – ” और इनमें से मुझे कोई भी ऐसा नहीं लगा।”
“मगर बेटी ! ये सब एक से बढ़कर एक राजकुमार हैं।”
“ये सब बेकार हैं मां।”
“तुम इनकी परीक्षा क्यों नहीं लेतीं ?” उसकी मां ने कहा-“बिना परीक्षा लिए ऐसा निर्णय करना तो उचित नहीं है। पहले परीक्षा लो, फिर निर्णय लेना।”
“ठीक है।” राजकुमारी चन्द्रलेखा ने अपनी सहमति दे दी – “अब यदि कोई रिश्ता आएगा तो मैं ऐसा ही करूंगी।”
कुछ समय बाद एक राजकुमार प्रस्ताव लेकर हाजिर हुआ । “तुममें क्या विशेष गुण हैं, जो मुझसे विवाह करना चाहते हो ?” राजकुमारी ने पूछा ।
राजकुमार ने बताया—‘‘मैं त्रिकालदर्शी हूं । किसी का भी भूत, भविष्य और वर्तमान बिल्कुल जाने ठीक-ठीक बता सकता हूं ।”
“ठीक है। आप अतिथिग्रह में ठहरें।” राजकुमारी ने कहा – “हम सोचकर जवाब देंगे।”
उसके बाद एक राजकुमार और हाजिर हुआ । राजकुमारी चन्द्रलेखा ने उससे भी वही सवाल पूछा । उसने बताया—”मेरे पास स्वनिर्मित एक ऐसा रथ है जो धरती, आकाश, पहाड़ और समुद्र कहीं भी आसानी से चल सकता है और उसकी गति का मुकाबला कोई नहीं कर सकता।”
राजकुमारी की आज्ञा से उसे भी अतिथिगृह में ठहरा दिया गया । इसके दो दिन बाद एक राजकुमार और आया ।
उसने बताया—“मैं तलवार का धनी हूं । मेरा वार कभी खाली नहीं जाता।”
राजकुमारी ने उसे भी अतिथिगृह में ठहरा दिया और अपना निर्णय देने के लिए एक दिन का समय लिया । राजकुमारी इसी बीच तीनों के विषय में गम्भीरता से सोचती रही ।
शीघ्र ही निर्णय का दिन आ गया ।
निश्चित तिथि पर तीनों राजकुमार बन ठनकर राजदरबार में उपस्थित हुए । सभी सभासद भी आ चुके थे । किन्तु राजकुमारी अभी तक नहीं आई थी ।
यहां तक कि राजमाता ने भी अपना आसन ग्रहण कर लिया, मगर राजकुमारी नहीं आई । तभी कुछ सेविकाओं ने आकर बताया कि राजकुमारी अपने कक्ष में नहीं हैं । यह सुनते ही पूरे दरबार में खलबली मच गई । राजमाता के आदेश पर महल का चप्पा-चप्पा छाना गया, मगर राजकुमारी का कहीं पता न चला ।
पूरे राज्य में यह खबर फैल गई और पूरे राज्य में शोक छा गया । राजकुमारी आखिर गई तो कहां गई ?
प्रत्येक राज्यवासी अपनी राजकुमारी के लिए चिंतित हो उठा । लोग राजकुमारी के इस प्रकार गायब होने को लेकर तरह-तरह की अटकलें लगाने लगे । तभी राजमाता को उस राजकुमार का ध्यान आया जिसने अपने आपको त्रिकालदर्शी बताया था ।
राजमाता ने उससे कहा – “राजकुमार ! क्या तुम अपनी विद्या के द्वारा पता करके बता सकते हो कि राजकुमारी इस समय कहां है।”
अवश्य बता सकता हूं राजमाता।” त्रिकालदर्शी राजकुमार, जिसका नाम वीरेन्द्र था, ने हिसाब-किताब लगाकर बताया— “एक राक्षस राजकुमारी की सुंदरता पर मोहित होकर उसे उठाकर अपने महल में ले गया हैं । उसका महल अरावली पहाड़ियों के बीच बड़े ही दुर्गम स्थल में बना हुआ है।” कहते हुए उसने वहां तक के मार्ग और महल का नक्शा भी बनाकर दे दिया ।
रथी ने अपना रथ निकाल लिया । तलवारधारी ने अपनी तलवार निकाल ली । फिर राजमाता की आज्ञा लेकर तीनों राजकुमार राक्षस के महल की ओर चल दिए ।
कुछ ही समय बाद वह महल के सामने खड़े थे । तब त्रिकालदर्शी राजकुमार वीरेन्द्र सिंह ने बताया कि राक्षस राजकुमारी को एक कक्ष में यातनाएं दे रहा है । उसने यह भी बताया कि यह राजकुमार धनंजय द्वारा मारा जाएगा । फिर वे तीनों राक्षस पर हमला करके राजकुमारी को मुक्त कराने के लिए चल दिए । इस समय कोई दैवी शक्ति ही उनकी मदद कर रही थी ।
राजकुमार धनंजय की तलवार के सामने राक्षस एक पल भी न ठहर सका । राक्षस की मृत्य के साथ ही उसका मायाजाल समाप्त हो गया । वह महल आदि सब गायब हो गए । अब वे तीनों दुर्गम पहाड़ियों के बीच एक जंगल में खड़े थे ।
तत्पश्चात् तीनों राजकुमार राजकुमारी को लेकर वापस आ गए । राजकुमारी के वापस आते ही महल में खुशियां छा गईं । सभी नगरवासी भी बेहद प्रसन्न हुए और तीनों राजकुमारों की प्रशंसा होने लगी । राजा-रानी ने भी तीनों राजकुमारों को धन्यवाद दिया और एक बार फिर सभा बैठी ।
सभा में तीनों राजकुमार राजकुमारी चंद्रलेखा पर अपना-अपना हक जताने लगे । तीनों के अलग-अलग तर्क थे ।
त्रिकालदर्शी राजकुमार वीरेन्द्र का कहना था-“यदि मैं अपना गणित लगाकर यह न बताता कि राजकुमारी इस समय कहां है तो धनंजय और उदयवीर सिंह लाख सिर पटकने के बाद भी राजकुमारी तक नहीं पहुंच सकते थे । इसलिए राजकुमारी पर सिर्फ और सिर्फ मेरा हक है।”
उदयवीर का दावा था—“अगर मेरे पास ऐसा करामाती रथ न होता, तो वीरेन्द्र और धनंजय किसी भी सूरत में राक्षस तक नहीं पहुंच सकते थे।”
“ये दोनों ही तर्क गलत हैं।” राजकुमार धनंजय ने कहा-“किसी न किसी तरह राजकुमारी पता भी चल जाता और उस तक पहुंचना भी असम्भव नहीं था – असम्भव था राक्षस को मारकर राजकुमारी को सुरक्षित वापस लाना । जो कि तुम दोनों यह कार्य नहीं कर सकते थे । यह काम एक योद्धा का है और चूंकि यह कार्य मैंने किया है, इसलिए राजकुमारी पर सिर्फ और सिर्फ मेरा अधिकार है ।”
विक्रम बेताल के सवाल जवाब
बेताल के सवाल :
“राजा विक्रम !” इतनी कहानी सुनाकर बेताल ने विक्रम को सम्बोधित किया-“उन तीनों का तर्क अपने-अपने स्थान पर सही था । तीनों ने महत्वपूर्ण कार्य किए थे । राजकुमारी से जब इस विषय में पूछा गया तो उसका कहना था कि वह तीनों के एहसान तले दबी थी, अतः वे तीनों ही कोई निर्णय करें ।
तुम्हारा न्याय बड़ा प्रसिद्ध है विक्रम । अब तुम ये बताओ कि राजकुमारी पर न्यायोचित अधिकार किसका है ?”
विक्रम सोचने लगा ।
दोनों के बीच खामोशी छा गई । “बताओ विक्रम ! अगर तुम जान-बूझकर मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दोगे तो तुम्हारा सिर टुकड़े-टुकड़े हो जाएगा।” बेताल ने उसे चेताया ।
राजा विक्रमादित्य के जवाब :
अपने मन में अच्छी तरह सोच-विचार करने के बाद विक्रम ने एक गहरी सांस ली और बोला – “मेरे मत के अनुसार तो राजकुमारी पर राजकुमार धनंजय का अधिकार होना चाहिए।”
बेताल की आंखों में विक्रम के लिए प्रशंसा के भाव दिखाई देने लगे । सम्भवतः विक्रम का न्याय उचित था, मगर फिर भी बेताल ने पूछा -“कैसे.. धनंजय का अधिकार क्यों होना चाहिए? जरा खुलासा करके बताओ।”
“सुनो बेताल ! जो शक्तिशाली होता है, उसका ही अधिकार होता है । धनंजय ने ही राक्षस वध करके राजकुमारी को उसके चंगुल से मुक्त कराया । राजकुमारी का पता लगाना असम्भव नहीं था । दो-चार दिन बाद उसका पता लग ही जाना था और जब पता लग जाता तो किसी न किसी प्रकार उस तक पहुंचा भी जा सकता था । मगर बड़ी बात थी राक्षस को मारना, यह कार्य राजकुमार धनंजय ने किया, इसलिए राजकुमारी पर उसी का अधिकार है।”
‘“तुम ठीक कहते हो राजा विक्रम-तुम्हारा न्याय ठीक है।” कहकर बेताल हंसा । फिर एकाएक ही वह उसके कंधे से ऊपर उठा और हवा में तैरने लगा । तू फिर भागा । विक्रम ने चौंककर उस पर तलवार चलाई ।
मगर बेताल इतनी ऊंचाई पर था कि विक्रम की तलवार उसे छू भी नहीं सकी । “तू भूल जाता है विक्रम… तू भूल जाता है—मैंने तुझसे कहा था न कि यदि तू बोला तो मैं लौट जाऊंगा…। और देख, मैं चला। हा…हा…हा…’
हँसी लगाता हुआ बेताल तेजी से अपने ठिकाने की ओर उड़ने लगा । मगर विक्रम हार मानने वाला कहां था, वह अपनी तलवार संभाले तेजी से उसके पीछे झपटा ।