बौद्ध भिक्षु की कहानी | Boudh Bhikshu | Boudh Bhikshu Buddhism
किसी व्यक्ति द्वारा अपना तापमान बढ़ाने की बात रहस्यमय तो लगती है, किन्तु यह सत्य एवं संभव है । तिब्बत के बौद्ध भिक्षु अपनी ध्यान मुद्रा के दौरान अपना तापमान इतना बढ़ा लेते हैं कि उससे वे चादरें भी सूख जाती हैं, जो बर्फीले पानी से भीगी रहती हैं, तथा जिन्हें वे पहने रहते हैं ।
इस तरह के चमत्कार को हाल ही में हार्वड मेडिकल स्कूल के शोधकर्ताओं ने देखा । इस चमत्कारिक यौगिक क्रिया को ताप योग के नाम से जाना जाता है । ‘नेचर’ में प्रकाशित अपनी रिपोर्ट में इन वैज्ञानिकों ने इस बात की पुष्टि की है कि बौद्ध भिक्षु अपनी त्वचा का तापमान 15 डिग्री फॉरेनहाइट तक बढ़ा सकते हैं ।
वैज्ञानिक हरबर्ट बेंसन तथा उनके साथी दलाई लामा के आमंत्रण पर भारत आए । तीन बौद्ध भिक्षुओं के शरीर में उन्होंने ताप मापक यंत्र लगाए । परीक्षण के बाद इन वैज्ञानिकों ने पाया कि ये सभी भिक्षु अपनी त्वचा का तापमान बढ़ाने में समर्थ हैं । इस दौरान सबसे अधिक ताप-वृद्धि अंगुलियों तथा पैर के अंगूठों में हुई । इनके तापमान 5 डिग्री से लेकर 15 डिग्री फॉरेनहाइट तक बढ़े ।
नाभि, स्तनाग्र और पीठ के निचले भाग के तापमान में अधिक-से-अधिक 4 डिग्री फॉरनहाइट तक वृद्धि हुई । भीतरी शरीर के तापमान में कोई परिवर्तन नहीं हुआ । बौद्ध भिक्षुओं के अनुसार, त्वचा के तापमान में होने वाली वृद्धि उनकी धार्मिक क्रियाओं के प्रतिफल हैं । बेंसन के अनुसार, इन्हीं धार्मिक क्रियाओं में भिक्षुओं के भीतर ऐसा आंतरिक ताप प्रज्वलित होता है, जो विचारों की कलुषता को जला देता है । बेंसन इसका सारा श्रेय भिक्षुओं की अपनी स्वतंत्र तांत्रिक व्यवस्था पर नियंत्रण करने की सामर्थ्यता को देते हैं ।
यह सामर्थ्यता भिक्षुओं को अपनी त्वचा में रक्तवाहिनी नलिकाओं के यथेष्ट रूप को विस्तृत करने की क्षमता प्रदान करता है । इस प्रकार वे रक्त के प्रवाह और तापमान को बढ़ा लेते हैं।
पश्चिमी देशों के लोगों ने सम्मोहन तकनीक अपना कर स्वतंत्र तंत्रिका प्रणाली पर नियंत्रण की क्रिया सीखने का प्रयास किया, किन्तु इसमें उन्हें आंशिक सफलता ही मिली । वे केवल अंगुलियों का ही तापमान बढ़ा सके और वह भी नाम मात्र ।
वेंसन के अनुसार बौद्ध भिक्षुओं की यह सफलता विलक्षण और उल्लेखनीय है, क्योंकि वे शीत जलवायु में रहते हैं । ठंडे स्थानों में तापमान इतना कम रहता है कि त्वचा में छोटी नसें संकुचित हो जाती हैं और रक्त का प्रवाह भी बहुत कम हो जाता है । ऐसी स्थिति में बौद्ध भिक्षुओं का अपना तापमान अत्यधिक सीमा तक बढ़ा लेना आश्चर्यजनक तथा असाधारण ही है ।