पॉलिनेशियन | Polynesian People | Polynesian Culture

पॉलिनेशियन | Polynesian People | Polynesian Culture

प्रशांत सागर में फैले हजारों द्वीपों में ऐसे लोग रहते हैं, जिनको देखने एवं जिनका अध्ययन करने पर पता चलता है कि कुछ शताब्दी पूर्व बहुत ही सभ्य रहे होंगे । ये लोग बोलचाल के लिए अपनी भाषा का प्रयोग करते हैं और खेती बाड़ी के जरिए ये कुछ ऐसे पौधे भी उगाते हैं, जो प्राकृतिक तौर पर इन द्वीपों में नहीं उगते । कौन हैं ये जिन्हें पोलीनेशियन्स के नाम से जाना जाता है ? आखिर कहां से आकर ये यहां बसे थे ? यह एक पहेली है ।

एक दिन एक युवा नार्वेजियन वैज्ञानिक थोर हैरदाल को अनायास ही इस पहेली को सुलझाने का सिरा मिल गया । फतुहिवा नामक पोलीनेशियन द्वीप पर जानवरों का अध्ययन करते हुए, एक दिन उसने एक बहुत बूढ़े व्यक्ति को यह कहते सुना, “वह टिकी था, जो सागर परे से मेरे आदमियों को यहां इन द्वीपों में लाया था । टिकी मुखिया एवं भगवान, दोनों था ।”

बूढ़े के इस कथन पर हैरदाल को अनायास ही टिकी की उस मूर्ति का स्मरण हो आया, जो उसने द्वीप के जंगल में देखी थी और फिर अगले ही पल उसके दिमाग में एक विचार कौंध गया । टिकी की वह मूर्तियां दक्षिणी अमेरिका की लुप्त हो चुकी सभ्यताओं द्वारा छोड़ी गई शिल्पाकृतियों से बहुत मिलती थीं । हैरदाल ने अपने अनुमानों एवं खोजबीन के आधार पर मेहनत करते हुए पोलीनेशियन्स के बारे में एक खाका तैयार किया ।

किंवदंतियों के अनुसार दो हजार वर्ष से कुछ पहले दाढ़ी और सफेद चमड़ी वाली एक जाति अमेरिका तटों पर उतरी । इन लोगों ने वहां रहने वाले लोगों, जिन्हें हमें इंडियन्स पुकारना चाहिए, को साथ-साथ सभ्य समाज के रूप में सिखाया फिर दक्षिण और पश्चिम की ओर बढ़ते हुए इन मेहमानों ने मध्य अमेरिका में अपने निशान छोड़े । यहां से आगे के पेरू और फिर डूबते सूरज की दिशा में नौकायन करते हुए ये पोलीनेशिया के दक्षिणी सागर के द्वीपों में पहुंच गए । यही शायद वे लोग थे, जो कालांतर में पोलीनेशियन्स बन गए ।

परंतु हैरदाल का यह मत खारिज कर दिया गया । कोई भी उसकी इस अवधारणा को मानने के लिए तैयार न था कि हकीकत में ऐसा कुछ हुआ होगा । शुरुआती अमेरिकी सभ्यताओं ने अपनी आदिम नौकाओं के सहारे प्रशांत को पार किया होगा । इतना सब होने पर भी हैरदाल को पूर्ण विश्वास था कि उसकी अवधारणा सच थी और वह अपने काम में लग गया । उसने शुरुआती यूरोपियन खोजकर्ताओं के अनेक दस्तावेज प्राप्त किए । इन खोजकर्ताओं ने अपने दस्तावेजों में अनेक जगह बालसा लट्ठों से निर्मित ऐसे बेड़ों का जिक्र किया था, जिन्हें देखकर काफी आश्चर्य हुआ था और जिन्हें नाव-सी दक्षता के साथ चलाया जा सकता था और जिनमें दूर समुद्री यात्रा के लिए पाल भी लगे होते थे ।

हैरदाल को इन्हीं दस्तावेजों की बदौलत एक विलक्षण विचार सूझा । वह उन आदिम बेड़ों की भांति एक बेड़े का निर्माण करे और फिर उसकी सहायता से प्रशांत पार करता हुआ पेरू से पोलीनेशिया जा पहुंचे, तो शायद ऐसा कोई कारण शेष न रहता कि कोई उसकी अवधारणा पर शक करता ।

Polynesian%20culture

हैरदाल ने तय कर लिया कि अपनी अवधारणा को सच साबित कर दिखाने के लिए ऐसा ही करेगा । इस विचार के क्रियांवयन के लिए उसे हर जगह से सहायता और सहयोग प्राप्त होने लगा । हैरदाल ने अपने नोर्वेजियन साथियों को इकट्ठा करना शुरू कर दिया ।

हैरदाल ने अपने साथ हरबन वारजिंगर, एरिक हेसलवर्ग, नट हॉगलैंड हॉगलैंड हरदाल का युद्धकालीन मित्र था, जिसने जर्मनी के भारी पानी संयंत्र को उड़ाने में भूमिका निभाई थी और टोर्सटीन राबी भी युद्धकालीन साथी था, जिसने युद्धकाल में शत्रु को विजित कर लिया । नोर्वे से वायरलैस संदेश भेजे थे और इन्हीं संदेशों की बदौलत आर.ए.एफ. (रॉयल एयर फोर्स) ने बमबारी कर जर्मन सैन्य बेड़े टिर्पिट्ज को डुबाया था । इन सबको लेकर एक टीम का गठन किया ।

हैरदाल अपनी टीम लेकर जंगल में पहुंच गया । ऐंडेस के जंगलों में टीम ने बालसा पेड़ों को काटना शुरू कर दिया । उनका उद्देश्य बालसा की हलकी लकड़ियों के लट्ठों से एक बेड़े का निर्माण था । वे अपने बेड़े को ठीक उसी प्रकार से बनाना चाहते थे, जैसा कि पुरातन शास्त्रों में वर्णित था । बालसा के इन लट्ठों को बेंउट डेनियल्सन द्वारा जोड़ा गया ।

आखिरकार उनका बेड़ा तैयार हो गया । चौकोर आकार के इस बेड़े की यह खासियत थी कि इसके निर्माण में कील, बोल्ट, स्क्रू अथवा अन्य किसी भी प्रकार से लोहे का कोई प्रयोग नहीं किया गया था । नौ भीमकाय लट्ठों से निर्मित इस बेड़े को बांधने के लिए फाइबर रस्सी ही काम में ली गई थी । बेड़े के मध्य तल में लगने वाला मुख्य लट्ठा एवं बेड़े को दिशा देने के लिए काम आने वाला मुख्य फट्टा लोहे के समान मजबूती वाली मेंगरूव (उष्णकटिबंधीय वृक्ष) लकड़ी से निर्मित किए गए । उन्होंने पुरातन शास्त्रों में वर्णित तरीकों को अपनाकर ठीक वैसा ही बेड़ा तैयार तो कर लिया, पर सच्चाई यह भी थी कि उनमें से कोई भी यह नहीं जानता था कि बेड़े का निर्माण उसी प्रकार से होना क्यों वर्णित था । हर विशेषज्ञ के अनुसार उनका बेड़ा सुरक्षा के लिहाज से ठीक नहीं था । उस बेड़े में यात्रा करना और अपने लिए मुसीबतें बुलाना एक ही बात थी, परंतु हैरदाल को इस बात का पूर्ण विश्वास था कि प्राचीन पोलीनेशिवन्स ने अपनी समुद्री यात्राओं के दौरान ऐसे ही बेड़ों का प्रयोग किया था । अंततः लट्ठों से निर्मित उस बेड़े और उसके छः सदस्य वाले दल को विशाल प्रशांत में ले जाकर छोड़ दिया गया । इस दल के साथ एक छोटा साथी और भी था । यह एक तोता था ।

विशाल प्रशांत महासागर में छोड़े जाने के कुछ ही समय बाद बेड़े के लिए करो या मरो वाली स्थिति आ गई । बेड़ा पश्चिम से भूमध्य रेखा की तरफ अनवरत बहती रहने वाली तेज हवाओं की चपेट में आ गया । इन तेज हवाओं के साथ अपने बेड़े को खेना वाकई कठिन कार्य साबित हुआ । ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि उनको यह बताने वाला कोई था ही नहीं कि इस तरह के बेड़े किस तरह से संभाले जाएंगे । वे खतरनाक हम बोल्ट धारा में फंस गए थे । यह धारा अंटार्टिका से आने वाली तेज धारा थी, जो अपने साथ ठंडा एवं हरा पानी लिए थी । रात के वक्त इस धारा ने अपने पूरे वेग और शक्ति के साथ धावा बोल दिया । पानी अपनी पूरी शक्ति के साथ फुंकारता हुआ उछल रहा था । बल खाती लहरें घोर अंधकार से प्रकट होकर बेड़े पर बुरी तरह से झपटने लगती थीं । हर लहर के साथ पड़ने वाली चोट से ऐसा लगता था, मानो बेड़ा अब डूबा, तब डूबा, परंतु आश्चर्य, बेड़ा हर लहर का सामना करता हुआ, हर बार थोड़ा ऊंचा उठकर मलाई की मानिंद फिसलता लहर के ऊपर आ जाता था । हर विशाल एवं भीषण लहर सकुशल पार करने पर दल के सदस्यों को आश्चर्य मिश्रित राहत का अनुभव होता ।

परंतु जब दो-दो विशाल लहरें एक साथ आतीं और पानी खतरनाक बौछार के रूप में दिशा नियंत्रक पतवार वाले हिस्से से टकराता, तो वहां मौजूद दोनों व्यक्तियों को अपने बचाव के लिए दौड़कर केबिन के मध्य वाले मुख्य मस्तूल को पकड़ना पड़ता था । आखिरकार एक भयंकर लहर की जोरदार टक्कर से बेड़े पर मौजूद छोटे से केबिन की धज्जियां उड़ गई । अभियान दल के सदस्यों को यह अच्छी तरह से समझ आ गया कि क्यों कोन टिकी ने किसी नाव की अपेक्षा लट्ठों से निर्मित बेड़े में अपना सफर तय किया था । नाव जहां बार-बार पानी से टकराती एवं उसमें पानी भरता, वहीं दूसरी ओर लट्ठों से निर्मित बेड़े में यह समस्या न थी । लहरें चाहे जितनी भी तेज होतीं, हर बार उसका पानी लट्ठों के बीच की जगह से निकल जाता और बेड़ा लहरों के ऊपर तैरता रहता ।

पर सवाल केवल एक ही था, क्या वह बेड़ा किसी हलके कॉर्न की भांति उसी प्रकार तैरता रहेगा ? हैरदाल ने लट्ठे से लकड़ी का एक छोटा-सा टुकड़ा काट कर पानी में फेंका, पानी में भीगा वह टुकड़ा किसी भारी पत्थर की भाँति डूब गया । उसने अपने साथियों को भी यही करते हुए देखा । हर कोई लकड़ी के टुकड़ों को पानी में डूबते हुए, देख रहा था, परंतु जब उनमें से किसी एक ने धारदार चाकू के फल को एक लट्ठे में घुसेड़ा, तो पाया कि पानी लट्ठे में केवल एक इंच तक ही समा पाया था । गीली लकड़ी के उन लट्ठों में मौजूद वृक्ष रस की वजह से पानी और गहराई तक प्रवेश नहीं कर पाया था । यदि कहीं उन्होंने सूखे लट्ठों का इस्तेमाल किया, होता तो अब तक तो वे डूब ही गए होते ।

इस सफर के दौरान नाश्ता उनके लिए कोई समस्या न थी । उनके चारों तरफ पानी में मछलियों की भरमार थी । उन मछलियों को पकड़ने तक की आवश्यकता न थी । उड़न मछलियां हवा में तैरती हुई उनके बेड़े पर आ गिरतीं । कभी-कभी कोई मछली उड़ती हुई दल के किसी सदस्य के मुंह से टकराती ।

एक दिन उनके बेड़े के पास एक व्हेल समुद्र की सबसे विशाल मछली आ गई । यह हालांकि आकार में बहुत बड़ी थी, पर इससे उन्हें कोई खतरा नहीं था, क्योंकि यह केवल छोटी मछलियों एवं झींगों को ही आहार के रूप में खाती थी । बेड़े के आसपास अनेक बार बोल मछलियों को विचरण करते हुए देखा जाता ।

अनेक बार बेड़े के इर्द-गिर्द शार्क मछलियों को भी देखा गया । दल के सदस्यों ने इन शार्क मछलियों में से कुछ को खींच कर अपने बेड़े पर उतारा था । इस खिलवाड़ के दौरान उनका साथी तोता यहां-वहां उड़ता हुआ चीखता रहता था । ऐसा लगता था, मानों उस नजारे को देखकर उसे भी विस्मय होता था, परंतु एक दुखद दिन उनका यह नन्हा साथी, वह तोता एक विशाल लहर की चपेट में आ गया और फिर उसके बाद उसे किसी ने भी दुबारा नहीं देखा । इस हादसे के बाद दल के सदस्य और अधिक सावधान हो गए, क्योंकि इस तरह से किसी सदस्य को खोना वाकई दुखदाई अंजाम होता ।

ऐसा नहीं था कि दल के सदस्य किसी संभावित खतरे के प्रति लापरवाह थे । अपने प्रिय तोते को खो देने से पहले अनेक बार उनके मन में यह विचार आया था कि क्या हो यदि उनमें से कोई बेड़े से गिर जाए, खासकर उस वक्त, जब बेड़ा हवा के साथ तैर रहा हो ? दल के दो सदस्य, जो अकसर मौसम साफ होने पर बेड़े के आस-पास पानी में तैरने का आनंद लेते थे, ने अनेक बार यह महसूस किया कि हवा के साथ बहते बेड़े की रफ्तार काफी तेज होती थी और उस तक तैरते हुए पहुंचने में उन्हें खासी मशक्कत करनी पड़ती थी । बेड़े के पाल को नीचे गिरा देने की दशा में ही वे तैर कर उस तक पहुंच पाते थे ।

समुद्री तूफानों के दौरान भयंकर लहरें उठती थीं । ये लहरें तूफानी हवाओं के जोर से तेज बौछारों की शक्ल में उनसे आ टकराती थीं । पानी का जबरदस्त फैलाव बेड़े को अपने आगोश में ले लेता था, परंतु फिर अगले ही पल किसी चमत्कार की तरह पानी लट्ठों के बीच की जगह से बहता हुआ निकल जाता और डूबता-सा महसूस होने वाला बेड़ा बड़े ही प्यार से एक बार फिर लहरों पर सवार हो जाता, फिर भी सुरक्षा के लिहाज से दल हर सदस्य को अपने बचाव के लिए सुरक्षा प्रबंध तो करना ही पड़ता ।

एक दिन तेज हवा की वजह से राबी का हरा स्लीपिंग बैंग बेड़े से उड़कर पानी में जा गिरा । उसे पकड़ने की चेष्टा में हरमन पीछे की तरफ उछलता हुआ पानी में जा गिरा । हवा और पानी की तेज आवाज के बावजूद दल ने हरमन की पुकार को सुन लिया । राबी ने फुर्ती से हरमन तक पहुंचने की चेष्टा की । उसने हरमन की तरफ एक रस्से को उछाल दिया । हरमन जोर लगा कर तैर रहा था, पर पानी की शक्ति के आगे उसकी शक्ति क्षीण पड़ती जा रही थी । नट एवं एरिक ने उसकी तरफ एक लाइफ बेल्ट उछालने की चेष्टा भी की, पर तेज हवाओं की वजह से वह लाइफ बेल्ट वापस उनसे आ टकराई ।

अगले ही पल नट ने लाइफ बेल्ट पकड़ कर उन भीषण लहरों के मध्य पानी में छलांग लगा दी । धीरे-धीरे वह और हरमन एक-दूसरे के करीब आने लगे । अंततः अपनी पूरी शक्ति का प्रयोग करते हुए हरमन ने लाइफ बेल्ट को पकड़ ही लिया । बेड़े पर मौजूद बाकी सब सांस रोककर उस दृश्य को देख रहे थे । बेड़े पर मौजूद दल के सदस्यों ने लाइफ बेल्ट से बंधी रस्सी को खींचना शुरू कर दिया । उन दोनों को धीरे-धीरे खींचा जा रहा था कि तभी उनके पीछे पानी को काटती आ रही एक तिकोनी आकृति को देखकर दल के सदस्य सकते में आ गए । जब पानी में मौजूद वे दोनों बेड़े के एकदम करीब आ के अन्य सदस्यों ने देखा कि जिस तिकोनी आकृति को वे शार्क समझ रहे वास्तव में वह स्लीपिंग बैग का कोना था, जो हवा भरी होने के कारण पानी में तैर रहा था । दल अभी अपनी इस नासमझी पर हंस ही रहा था कि तभी पानी में से कोई भीमकाय चीज प्रकट हुई और उस स्लीपिंग बैग को खींचती हुई पानी में ले गई ।

अगले तूफान ने बेड़े को बुरी तरह से झकझोर के रख दिया । रस्सों से बंधे लट्ठे चरमराने लगे, परंतु इतना सब होने के उपरांत बेड़े के अधिकांश रस्से मजबूती से अपनी पकड़ बनाए रहे । कोन टिकी के लोगों को अच्छी तरह से पता था कि वे क्या कर रहे थे, खासतौर से जब उन्होंने उन बेड़ों का निर्माण किया होगा । इस अभियान दल के सदस्य इस बात के लिए खुश थे कि उन्होंने बेड़े के निर्माण हेतु उन प्राचीन तरीकों का पूर्ण पालन किया था । यदि कहीं उन्होंने लट्ठों को बांधने के लिए रस्सों की अपेक्षा तारों से काम लिया होता, तो अब तक सभी लट्ठे टूट-फट गए होते ।

बेड़े का सफर अब शायद थोड़ा ही रह गया था । ऐसे समुद्री पक्षी, जो कभी भी किनारे से ज्यादा दूर नहीं रहते, झुंड-के-झुंड उनके बेड़े के ऊपर मंडराने लगे । ये पक्षी मंडराते हुए मछलियों के लिए पानी में गोता लगा रहे थे ।

फिर एक सुबह जब वे उठे, उनकी नजर एक टापू से जा टकराई । स्वच्छ पानी से घिरा यह टापू नारियल के पेड़ों से भरा था । ऐसा लगता था, मानो सूर्य की रोशनी में चमकता हुआ वह हरापन उनकी ओर देखकर मुस्करा रहा हो । परंतु बेड़ा बीती रात उस टापू से कुछ दूर हो गया था । लिहाजा दल के सदस्यों को हवा के रुख के अनुसार आगे बहते रहना पड़ा । यह हवा की मर्जी थी कि अब वो उन्हें जहां चाहती ले जाती ।

इसके बाद दल को एक और टापू नजर आया, परंतु दुर्भाग्य से इस टापू तक पहुंचने की राह में बड़ी-बड़ी चट्टानें रोड़ा अटकाए खड़ी थीं । दल के सामने अब यह समस्या थी कि किस तरह इन चट्टानों में से होकर उस टापू तक पहुंचा जाए । शीघ्र ही टापू पर रहने वाले स्थानीय लोगों ने दल के सदस्यों एवं उनके बेड़े को देख लिया और ये लोग अपनी छोटी-छोटी नौकाओं में उन तक जा पहुंचे, परंतु अपनी चार बड़ी नौकाओं एवं लाख कोशिशों के बाद भी ये लोग बेड़े को खींच कर चट्टानों के मध्य से अपने टापू तक न ला सके । आखिरकार दल के सदस्यों को पाल तान कर अगले टापू की दिशा में चलना पड़ा ।

दल के सदस्य पश्चिम की ओर बढ़ गए । शीघ्र ही उनकी राह का रोड़ा बनकर एक विशाल चट्टान शृंखला सामने उपस्थित हो गई । यह चट्टान श्रृंखला मीलों तक विस्तार लिए हुई थी । समुद्र की लहरें पल-पल उनको उन चट्टानों के करीब धकेल रहीं थीं । अब उनकी सुरक्षा केवल बेड़े के उछाल पर निर्भर थी । यदि बेड़े का संचालन होशियारी से किया जाता है, तो बहुत संभव था कि वह किसी लहर पर सवार हो उस रुकावट को पार कर जाता । कई बार दक्षता के साथ अपने बेड़े को उन चट्टानों तक खेते और फिर अंतिम क्षणों में पीछे भी हट जाते । ऐसा करते हुए हर बार उनकी नजर उस रुकावट पार हरे-भरे टापू पर पहुंच जाती और वे पुनः अपने प्रयास में लग जाते । अंत में वे इस लुका-छिपी को और बरदाश्त न कर सके और बेड़े के सुरक्षित समझे जाने वाले स्थान एवं हिस्सों को कसकर पकड़ कर वे एक संभावित प्रवेश द्वार की ओर बढ़ गए, परंतु अगले ही पल बेड़ा एक जोरदार धमाके के साथ चट्टान से जा टकराया । हर तरफ पानी-ही-पानी था । बेड़े ने एक धमाके के साथ अपनी यात्रा पूर्ण कर ली थी ।

शीघ्र ही नजदीकी टापुओं से स्थानीय पोलीनेशियन अपनी नौकाओं में वहां आ गए । बेड़े के दल के लोगों को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि कुछ स्थानीय लोगों ने उनके बेड़े को अपने पूर्वजों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले बेड़े के रूप में पहचान लिया था । कुछ स्थानीय निवासियों को तो टिकी की कहानी भी पता थी । उन लोगों ने दल के सदस्यों को अपने साथ नाचने गाने एवं खाने के लिए ले गए ।

कुछ समय बाद दल के सदस्य जहाज द्वारा अपने मातृ-स्थान के लिए रवाना हो गए । हर एक का दिल खुशनुमा यादों से भरा था ।

उन्होंने प्राचीन कथाओं को सच कर दिखाया था । कोन टिकी की ही तरह सफेद चमड़ी एवं सुंदर दाढ़ी वालों ने लट्ठों से निर्मित बेड़े की सहायता से ७२००० किलोमीटर का सफर पूर्ण कर दिखाया । सुनसान समुद्र की छाती चीर कर सफर पूर्ण करना वाकई एक रोमांचक एवं कभी न भुलाने वाला कारनामा था ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *