पंचतंत्र की कहानी – जैसे को तैसा | Panchatantra Story in Hindi
बहुत समय पहले नादुक नाम का एक धनी व्यापारी रहता था । कुछ समय बाद उसे व्यापार में घाटा पड़ गया और वह कर्ज में डूब गया ।
नादुक के दुख के दिन थे । हाथ पर हाथ रखकर बैठने से कोई लाभ नहीं, यह सोचकर उसने विदेश जाकर धन कमाने का निश्चय किया। अपना सब कुछ बेचकर नादुक ने सारा कर्ज चुका दिया। सब कुछ बेचने के बाद उसके पास एक लोहे की भारी छड़ रह गई ।
यात्रा पर जाने से पहले नादुक अपने मित्र लक्ष्मण के घर गया। नादुक की कहानी सुनकर “मित्र लक्ष्मण को बहुत दुख हुआ। उसने कहा, मेरे योग्य कोई सेवा हो तो बताओ ।”
नादुक ने कहा, “दोस्त मेरे पास लोहे की एक भारी छड़ है। अगर तुम्हें कोई मुश्किल न हो तो, मेरे वापस आने तक उसे अपने पास रख लो ।”
“बस, इतनी सी बात ? भला इसमें क्या है ? तुम अपनी चीज नि:संकोच मेरे पास रख सकते हो। तुम जब भी उसे वापस मांगोगे मिल जायेगी।”
नादूक ने अपने मित्र को धन्यवाद दिया और उसका आभार मानते हुए अपने घर चला गया।
लोहे की छड़ को लक्ष्मण के घर छोड़कर नादूक विदेश-यात्रा पर चला गया।
कई वर्षों तक नादुक ने देश-विदेश की यात्रा की और जगह-जगह जाकर व्यापार किया। उसका भाग्य अच्छा था। व्यापार चल निकला और कुछ ही समय में वह फिर धनवान हो गया। धनवान होने के बाद, अपनी सारी दौलत लेकर वह घर वापस लौट आया । उसने एक नया मकान खरीदा और एक बार फिर ठाठबाठ से अपना कारोबार चलाने लगा ।
कुछ समय बाद वह अपने मित्र लक्ष्मण से मिलने गया । नादुक को देखकर लक्ष्मण बहुत प्रसन्न हुआ और उसे प्रेमपूर्वक बैठाया । नादुक ने उसे अपनी यात्रा और व्यापार के हालचाल सुनाये । चलते समय उसने लक्ष्मण से कहा, “दोस्त, अब मैं यहां आ ही गया हूं तो सोचता हूं, कि अपनी लोहे की छड़ भी लेता जाऊं।”
नादुक की बात सुनकर लक्ष्मण ने अपना सिर खुजलाया और ऐसी सूरत बना ली जैसे कि बड़ा ही चिन्तित हो । असल में वह नादुक को लोहे की छड़ नहीं लौटाना चाहता था। उसके मन में बेईमानी आ गई थी । वह जानता था कि छड़ को बेचकर अच्छा पैसा मिल सकता है।
उसने नादुक से कहा, “भाई क्या कहूं, कुछ समझ में नहीं आता। खबर कुछ बुरी है । तुमसे कहूं तो कैसे कहूं ? मैंने तुम्हारी लोहे की छड़ गोदाम में रख दी थी। अब क्या कहूं जब मैं गोदाम में देखने गया, तो दुष्ट चूहों ने सारी छड़ कुतर कर खा डाली। दुर्भाग्य से छड़ बाज़ार में भी मिलनी मुश्किल है वरना मैं खरीद कर तुम्हें वापस दे देता।”
“अरे इसमें इतना दुखी होने की क्या जरूरत है ?” नादुक ने कहा।”अगर लोहे की छड़ को चूहे खा गये तो तुम्हारा क्या दोष।
दुनिया में ऐसी कौन सी चीज़ है जो हमेशा बची रहती है। चलो छोड़ो जो गया सो गया ।’
इतना कहकर नादुक घर जाने के लिए मुड़ा पर फिर रुककर बोला, “अरे हां, मैं एक बात तो बताना भूल ही गया। मैंने अपनी यात्रा के दौरान तुम्हारे लिए एक उपहार खरीदा था । अपने लड़के रामू को मेरे साथ भेज दो मैं उसी के हाथ भिजवा दूँगा।”
लक्ष्मण अपनी चतुराई पर प्रसन्न था । साथ ही उसे लग रहा था, कि वह अपनी चोरी में केवल सफल ही नहीं हुआ, बल्कि उसने नादुक को झूठी बातों पर विश्वास भी करा दिया है। साथ ही साथ वह उपहार देखने को भी उत्सुक था । इसलिए उसने तुरन्त अपने बेटे रामू को बुलाया और उसे नादुक के साथ भेज दिया ।
नादुक रामू को लेकर घर पहुंचा और उसे फुसला कर तहखाने के अन्दर ले आया । फिर उसने तहखाने का दरवाजा बन्द कर बाहर से ताला लगा दिया और चुपचाप अपने काम-धन्धे में लग गया। शाम को जब रामू लौटकर नहीं आया, तो उसके पिता को चिन्ता होने लगी ।
वह नादुक के पास गया और पूछने लगा, “भाई, मेरा लड़का लौटकर घर नहीं आया ?” नादुक ने दुखी चेहरा बनाकर कहा, “क्या बताऊं दोस्त, जब हम दोनों इधर आ रहे थे, तो अचानक एक बाज नीचे झपटा और मेरे कुछ करने से पहले ही रामू को लेकर उड़ गया ।”
“झूठ,” लक्ष्मण ने चिल्ला कर कहा, “कहीं एक बाज पन्द्रह वर्ष के लड़के को लेकर उड़ सकता है ? ” फिर तो दोनों में ऐसी तू-तू मैं-मैं हुई कि चारों ओर से लोग दौड़े आये और उनके चारों ओर भीड़ जमा हो गई । इस लड़ाई का फैसला न हो सकने पर दोनों न्यायालय पहुंचे ।
न्यायाधीश के पास पहुंचते ही लक्ष्मण जोर से चिल्लाता हुआ बोला, “हुजूर ! इस आदमी ने मेरा बच्चा चुरा लिया है । कृपा कर मेरा बच्चा मुझे वापस दिलवा दीजिये।”
न्यायाधीश ने नादुक से पूछा, “क्या तुमने इसका बच्चा चुराया है ?”
नादुक ने जवाब दिया, “श्रीमान, यह मैं केसे कर सकता हूं। उसे तो मेरी आंखों के सामने से एक बाज उठा कर ले गया ।
न्यायाधीश ने क्रोध से कहा, “तुम झूठे हो, बाज एक लड़के को लेकर कैसे उड़ सकता है ?” नादुक ने कहा, “हुजूर, अगर लक्ष्मण के गोदाम में एक भारी-भरकम लोहे की छड़ को चूहे खा सकते हैं, तो एक बाज लड़के को क्यों नहीं उठा सकता ?”
यह सुनकर न्यायाधीश चकित तो हुआ ही साथ ही वह नादुक की पूरी कहानी जानने के लिए उत्सुक भी हो गया। नादुक ने लोहे की छड़ का सारा किस्सा सुनाया । उसकी कहानी सुन कर न्यायाधीश ने लक्ष्मण को आज्ञा दी कि वह तुरन्त नादुक को उसकी छड़ लौटा दे और नादुक से कहा कि वह लक्ष्मण को उसका बेटा वापस कर दे । इस फैसले से नादूक और लक्ष्मण दोनों प्रसन्न हुए और उन्होंने खुशी-खुशी न्यायाधीश की आज्ञा का पालन किया ।