सम्पूर्ण पंचतंत्र हिन्दी कहानियाँ – सांप की पत्नी | Panchtantra Ki Kahani in Hindi
एक छोटे से गांव में एक ब्राह्मण और उसकी पत्नी रहते थे । उन दोनों के कोई सन्तान नहीं थी, इस कारण वे बहुत दुखी रहते थे। वे हर रोज बच्चे के लिए भगवान से प्रार्थना करते, पूजा-अर्चना करते और मनौतियां मनाते रहते । कुछ समय बाद उनकी मनोकामना पूरी हो गई। एक दिन उनके घर में एक बच्चे ने जन्म लिया । पर वह बच्चा, एक सांप था। इस विचित्र घटना की बात सुनकर पास-पड़ोसी भौचक रह गये ।
ब्राह्मण के मित्र और रिश्तेदारों ने उसे सलाह दी, कि जितनी जल्दी हो सके, उस सांप से छुटकारा पा लेना चाहिए। मगर ब्राह्मण की पत्नी ने उनकी एक न मानी। सांप हुआ तो क्या हुआ ? बच्चा तो उसका ही है । वह उस सांप से उतना ही प्रेम करती, जितना कोई भी मां अपने बच्चे से करती है । वह उसे किसी भी तरह की कोई हानि पहुंचाना सहन नहीं कर सकती थी।
वह बड़े ही प्यार से उसका पालन-पोषण करने लगी । प्रतिदिन उसे नहलाती, अच्छे से अच्छा खाना खिलाती और एक सुन्दर बक्से में गुदगुदा बिस्तर बिछा कर उसे सुला देती थी। धीरे-धीरे सांप बड़ा होने लगा । ज्यों-ज्यों वह बड़ा होता गया त्यों-त्यों उसकी मां का प्यार भी बढ़ता गया । पड़ोस के घरों में जब लोग अपने बच्चों का ब्याह रचाते तो उसके मन में भी अपने बेटे का ब्याह करने की इच्छा होने लगती थी । मगर एक सांप के लिए दुलहन कहां से आती ? फिर भी वह बराबर सोचती रहती कि कहीं एक लड़की मिले तो अपने बेटे का ब्याह करू ।
एक दिन जब ब्राह्मण घर आया तो उसने देखा कि उसकी पत्नी बैठी-बैठी रो रही है। “क्यों क्या हुआ ?” ब्राह्मण ने पूछा, “तुम रो क्यों रही हो ?”
लेकिन उसकी पत्नी ने उत्तर देने के स्थान पर और ज़ोर से रोना शुरू कर दिया। इस पर ब्राह्मण ने पूछा, “आखिर यह तो बताओ कि तुम्हें कष्ट क्या है ?” मगर वह रोती ही रही । अब ब्राह्मण करे तो क्या करे ? बेचारा लाचार और परेशान सा खड़ा रहा ।
उसकी पत्नी अन्त में बोली, “मैं जानती हूं, तुम न तो मुझे चाहते हो न मेरे बच्चे को । तुम उसकी ओर बिलकुल ध्यान नहीं देते हो । अब वह बड़ा हो गया है । तुम्हें इतना सोचने की भी फुरसत नहीं कि उसके लिए एक दुलहन की जरूरत है ।”
“क्या ?” ब्राह्मण ने चौंक कर कहा, “लड़के के लिए दुलहन ? तुम पागल तो नहीं हो गई हो ? ऐसा कौन होगा जो अपनी लड़की सांप से ब्याहेगा ?”
अब तो उसकी पत्नी और अधिक रोने लगी और इतना रोई कि ब्राह्मण ने तंग आकर अपने लड़के के लिए बहू खोजने का निश्चय कर लिया ।
बहू की खोज में उसने दूर-दूर के गांवो की यात्रा की, पर भाग्य ने उसका साथ न दिया। उसे कहीं भी ऐसी लड़की न मिली, जिसकी शादी सांप से की जा सके। अन्त में वह एक नगर में पहुंचा । उस नगर में ब्राह्मण का एक दोस्त रहता था । दोनों में अच्छी दोस्ती थी । ब्राह्मण ने बहुत दिनों से अपने दोस्त को नहीं देखा था । इसलिए उसने सोचा अपने पुराने दोस्त से मिल लेना चाहिए।
ब्राह्मण को देखकर उसका मित्र बहुत प्रसन्न हुआ। दोनों गले मिले, फिर देर तक बातें करते रहे। अन्त में ब्राह्मण के वहां से विदा होने का समय आया, तो उसके मित्र उससे वहाँ आने का कारण पूछा ।
“मैं अपने लड़के के लिए बहू की खोज में हूं,” ब्राह्मण ने कहा ।
उसके दोस्त ने कहा, “तुमने मुझसे पहले क्यों नहीं बताया ? अब तुम्हे कहीं और जाने की जरूरत नहीं। तुम्हारे लड़के के साथ मैं अपनी बेटी की शादी करूंगा। वह सुन्दर है और तुम्हारी बहू बनने योग्य भी है ।”
सहसा यह बात सुनकर ब्राह्मण असमंजस में पड़ गया। उसने कहा, “मित्र, अच्छा होता कि तुम अपनी बेटी की शादी करने से पहले एक बार मेरे लड़के को देख लेते ।”
“अरे नहीं,” उसके दोस्त ने कहा, “इसकी कोई जरूरत नहीं । मैं तुम्हें और तुम्हारी पत्नी को जानता ही हूं। मेरे लिए इतना ही काफी है। अब समय बरबाद करने की कोई आवश्यकता नहीं। मैं अपनी लड़की को तुम्हारे हाथ सौंप रहा हूं, तुम उसे ले जाओ और अपने लड़के के साथ उसकी शादी कर दो ।”
दोस्त की बात से ब्राह्मण चिन्तित तो हुआ, पर साथ ही उसे इस बात की प्रसन्नता भी थी कि आखिरकार उसे अपने लड़के के लिए बहु तो मिल ही गई ।
जब वह लड़की को लेकर घर पहुंचा तो उसकी पत्नी खुशी से फूली न समाई । उसने तुरन्त ब्याह की तैयारियां शुरू कर दीं। जब इस ब्याह की खबर गांववालों तक पहुंची तो वे लड़की के पास गए और समझाने लगे कि उसे सांप के साथ शादी नहीं करनी चाहिए । इस पर लड़की ने कहा, “मेरे पिताजी ने लड़के के पिता को वचन दिया है कि मैं उनके लड़के से ही विवाह करूंगी। मैं अपने पिता की इच्छा के विरुद्ध कोई काम नहीं करूंगी । अगर ब्राह्मण का लड़का सांप है तो मेरी शादी सांप से ही होगी ।”
दूसरे दिन सांप के साथ लड़की की शादी हो गई । शादी के बाद लड़की सांप के साथ एक ही कमरे में रहने लगी । वह अपने पति को बहुत चाहती थी और एक अच्छी पत्नी की तरह हर प्रकार से उसकी सेवा करती थी। सांप पहले की ही तरह अपने बक्से में सोता था।
एक रात, जब वह लड़की अपने बिस्तर पर सोने जा रही थी, तो उसने देखा कि कमरे में एक सुन्दर नौजवान बैठा है । लड़की ने उसे पहले कभी नहीं देखा था । रात के समय एक अजनबी को अपने कमरे में बैठा देख कर वह घबरा गई और भागने की सोच ही रही थी कि युवक ने कहा, “भागो नहीं, क्या तुम मुझे नहीं पहचानती, मैं तुम्हारा पति हु ।” पर लड़की को उसकी बात का विश्वास नहीं हुआ।
इस पर अपनी बात सिद्ध करने के लिए वह युवक एक बार फिर सांप के शरीर में गया और दुबारा मनुष्य बन कर बाहर निकल आया । यह देखकर लड़की को उसकी बात पर विश्वास हो गया और वह उसके चरणों में गिर पड़ी ।
इसके बाद हर रात को, जब घर के सब लोग सो जाते वह नौजवान सांप के शरीर से बाहर निकलता और सुबह होने तक लड़की के साथ रहता । सुबह होते ही वह फिर सांप का रूप धारण कर बक्से में सो जाता। यह सिलसिला कई दिन तक जारी रहा ।
एक रात ब्राह्मण ने अपने लड़के के कमरे से बातचीत करने की आवाज़ सुनी । वह चुपचाप उठा और छिप कर देखने लगा । उसने देखा कि सांप के शरीर से एक सुन्दर नवयुवक निकल आया। उसी समय ब्राह्मण लपक कर कमरे में पहुंचा और सांप के निर्जीव शरीर को उठाकर आग में फेंक दिया । क्षण भर में वह जल कर राख हो गया ।
नवयुवक ने अपने पिता से कहा, “आपका बहुत-बहुत धन्यवाद पिताजी। एक श्राप के कारण मुझे सांप का रूप धारण करना पड़ा था । मैं तब तक सांप ही बना रहता जब तक कि कोई आदमी, मुझसे पूछे बगैर, सांप के शरीर को नष्ट न कर देता । आपने इसको नष्ट कर मुझे श्राप से मुक्त कर दिया है ।”
तब से वह हमेशा मनुष्य ही बना रहा । अब ब्राह्मण का सारा परिवार सुखपूर्वक दिन बिताने लगा ।