उज्जैन के राजा विक्रमादित्य की कहानी – परोपकार | Raja Vikramaditya Ka Samrajya
एक बार फिर बेताल विक्रम के कंधे पर मुर्दे के समान लटका था, फिर कुछ देर बाद उसने कहा –
‘राजा विक्रम ! तुम बड़ा परिश्रम कर रहे हो । हर बार मुझे कंधे पर लाद कर चलते हो । तुम्हारा मन लगा रहे । इस कारण मैं तुमको एक कहानी सुनाता हूं ।
हिमाचल प्रदेश में एक राजा जीमूतवाहन था । वह बड़ा प्रतापी और धार्मिक था । उसका यश दूर-दूर तक फैला था । राजा जीमूतवाहन प्रजा का पालक भी था, किन्तु उसका पुत्र अग्निवाहन महादुराचारी और कठोर था । उसने अपने पिता के जीते जी राजा बनने की इच्छा प्रकट की । इच्छा पूरी न होने पर उसने अपने पिता को बल प्रयोग की धमकी दी । जीमूतवाहन धर्म की रक्षा के लिए अग्निवाहन को अपना राजपाट सौंपकर जंगल में तपस्या करने चला गया । अग्निवाहन ने राजा बनकर प्रजा पर नाना प्रकार के अत्याचार शुरू कर दिए । प्रजा त्राहि-त्राहि करने लगी । उधर, जामूतवाहन घोर जंगल में रहकर तपस्या कर अपना जीवन व्यतीत कर रहा था ।
एक दिन जब वह भगवद् भजन कर रहा था, तो उसे एक बुढ़िया के रोने की आवाज आई । जीमूतवाहन तत्काल उस बुढ़िया के पास गया और उससे रोने का कारण पूछा ।
बुढ़िया बोली -“हे तपस्वी ! मेरा एक ही पुत्र है । यहां एक दानव रहता है । आज रात वह मेरे पुत्र को खा जाएगा।”
इस पर बुढ़िया से राजा जीमूतवाहन ने कहा – “हे माता ! तुम दुख न करो । अगर यह शरीर किसी के परोपकार में काम आ गया तो मुझे बड़ी खुशी होगी । मैं तुम्हारा पुत्र बनकर स्वयं उस दानव का भोजन बन जाऊंगा।”
बुढ़िया ने राजा की यह बात न मानी पर राजा जीमूतवाहन अपनी बात पर डटा रहा । अन्ततः बुढ़िया को उसकी बात स्वीकार करनी ही पड़ी ।
सायंकाल बुढ़िया का बेटा वापस आया । बुढ़िया ने उसको सब हाल बतलाया । इस पर पुत्र न माना । उसने राजा से वापस जाने को कहा । राजा अपनी बात पर अड़ा रहा । फिर बुढ़िया ने बेटे को समझाकर राजी कर लिया ।
विक्रम बेताल के सवाल जवाब
बेताल के सवाल :
इस प्रकार हे राजा विक्रम ! जीमूतवाहन उस दानव का भोजन बन गया । बुढ़िया का बेटा बच गया । अब कहो कि जीमूतवाहन का यह परोपकार कैसा था ? तुम्हारा न्याय क्या कहता है ?”
राजा विक्रमादित्य के जवाब :
बेताल के इस प्रश्न पर विक्रम कुछ देर खामोश रहा । फिर बोला—”इसमें कोई परोपकार नहीं है, बेताल।”
“वह कैसे राजा विक्रम ?”
“जीमूतवाहन का यह परोपकार व्यर्थ गया है।”
“कैसी बात करते हो । जीमूतवाहन ने उस बुढ़िया का कितना बड़ा उपकार किया । क्या यह परोपकार नहीं माना जाएगा।”
विक्रम ने कहा — ” बेताल ! सुनो, सच्चा परोपकार निःस्वार्थ होता है । मोक्ष और पुण्य की कामना से ही राजा जीमूतवाहन ने अपना बलिदान किया । इसमें उसका अपना स्वार्थ आ गया । फिर जो अपने पुत्र के लिए कुछ न कर सका, वह दूसरों के पुत्र का उपकार करे, यह तो अनुचित है । जीमूतवाहन को अपने बेटे अग्निवाहन के समक्ष झुकने के स्थान पर अपने प्राण त्याग देना था ।
अग्निवाहन को राजकाज सौंपकर जीमूतवाहन ने अपनी प्रजा पर दुखों, अत्याचारों का पहाड़ तोड़ दिया । क्या इस अपराध के लिए जीमूतवाहन को क्षमा किया जा सकता है । तुम स्वयं निर्णय करो।”
राजा विक्रम की बात सुनकर बेताल खामोश होकर सोचता रहा, फिर बोला—“तुम ठीक कहते हो राजा विक्रम। तुम्हारा न्याय सही है।”
और इसके साथ ही वह अट्टहास करने लगा । भयानक अट्टहास करता हुआ वह वापस आकर एक बार फिर उसी पेड़ पर लटक गया । इस बार विक्रम को क्रोध न आया । उसने बेताल को उठाकर फिर कंधे पर रख लिया और लेकर चल पड़ा ताकि वह शीघ्रातिशीघ्र योगी के पास पहुंच जाए और कार्य समाप्त हो ।
तभी एकाएक बेताल हंसने लगा –