ऑयल फायर फाइटर मॅरोन किनली की कहानी | The Story of Oil Fire Fighter Myron Kinley | Myron M. Kinley
चारों तरफ खतरे की चेतावनी देने वाले नोटिस लगे थे । खतरा : ड्रिलिंग चालू । सभी ऑयल मैन (तेल के कुओं पर काम करने वाले कर्मचारी) इस नोटिस की गंभीरता से भली भांति परिचित थे । तेल के कुएं के आस-पास काम करना वास्तव में खतरनाक था । इसके लिए पूर्ण एहतियात बरतना बहुत आवश्यक था । जमीन से लगभग ८०० मीटर से भी ज्यादा नीचे खुदाई चल रही थी । नीचे मौजूद भारी पत्थर की चट्टान को काटता हुआ स्टील ड्रिल-बिट धीरे-धीरे अपना काम कर रहा था । पत्थर के नीचे प्राकृतिक गैस का अथाह भंडार मौजूद था । ड्रिल बिट इंच-दर-इंच पत्थर को काटता हुआ अथाह गैस भंडार की ओर बढ़ रहा था । उस चट्टान के नीचे गैस का दबाव बाहर १६ किलोग्राम प्रतिवर्ग से.मी. से भी ज्यादा था । गैस के नीचे तेल था । बीच से खोखली उस ड्रिल पाइप के द्वारा खुदाई किए जा रहे उस छेद में चिकनी कीचड़ भरी मिट्टी को बराबर डाला जा रहा था । यह आवश्यक भी था, ताकि ड्रिल-बिट द्वारा चट्टान में छेद होने के उपरांत गैस रिसाव को रोका जा सके ।
अचानक वह हो गया जिसके लिए सारी सावधानी रखी गई थी । ड्रिल-बिट ने विशाल हुए भारी चट्टान को चीर दिया और सारी तैयारियों एवं सावधानियों को दरकिनार करते दबाव लिए गैस हर बाधा को तोड़ती, चीरती बाहर की ओर फट पड़ी । सतह पर पहुंचते ही गैस ने आग पकड़ ली । आग बड़ी ही खतरनाक स्थिति में थी । सैकड़ों मीटर ऊंची आग की वह तेज लपट किसी विशाल अग्नि के खंभे की तरह नजर आ रही थी ।
तीन विशाल लपटों की शक्ल में निकल रही वह आग इतनी गर्म थी कि उसकी गर्मी से इंग्लैंड के दो तिहाई घरों को गर्म रखा जा सकता था । इस विशाल और भयावह आग का कुछ तो किया जाना ही था । इस भीषण आग पर काबू पाने के लिए तत्काल विश्व के सबसे कुशल ‘ऑयल फायर फाइटर’ (तेल से लगी आग को बुझाने वाला), मॅरोन किनली (Fire Fighter Maron Kinley)( Maron M. Kinley)को बुलाया गया । शीघ्र ही मरोन किनली घटना स्थल पर आ पहुंचा ।
उसने अपनी अनुभवी निगाहों से घटना स्थल का मुआयना किया और अपना पहला आदेश, “गीले हो जाओ” कह सुनाया । किनली का इतना कहना ही काफी था । दल शीघ्र ही हरकत में आ गया और उसने अपने हौजों का मुंह खोला दिया । सबसे पहले तो दल ने किनली की विशेष रूप से निर्मित मोबाइल फायर केनोपी (एक विशेष ओट, जिसकी आड़ में किनली द्वारा ऐसे खतरनाक कामों को अंजाम दिया जाता) को पानी से तर किया । यह केनोपी या बचाव के लिए इस्तेमाल होने वाली ओट, ठोस स्टील एवं अग्निरोधी ऐसबेस्टस से बनी थी । अपनी इस विशेष अग्निरोधी ओट में बैठे किनली को एक ट्रेक्टर की मदद से आग के नजदीक सरकाया गया । आग की वजह से उत्पन्न गर्मी की भयंकरता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता था कि जो लोग किनली की विशेष निर्मित ओट पर पानी की बौछार कर रहे थे, ठीक उनके पीछे कुछ और लोग भी थे, जो इन लोगों को गीला रखने के लिए उन पर पानी की बौछार कर रहे थे । दुर्भाग्य से यदि कहीं पानी की सप्लाई रुक जाती, तो ऐसे में किनली का शरीर कोयला बनना तय था ।
जल रहे उस तेल कुएं के नजदीक पहुंचने पर किनली ने देखा कि वहां चारों तरफ ड्रिल-पाइप्स बिखरे पड़े थे । इन ड्रिल-पाइपों को किसी भी तरह से वहां से हटाना आवश्यक था । किनली के अगले आदेश पर दल के कुछ लोग उस ठोस स्टील एवं एस्बेसटस निर्मित ओट के पीछे जा खड़े हुए । दल के इन सदस्यों ने बड़े ही योजनाबद्ध तरीके से पिछली मोमबत्ती बन चुके उन ड्रिल पाइपों को एक ट्रेक्टर की मदद से वहां से हटा दिया । अब बारी थी उस डैरिक (ड्रिलिंग को आसानी से करने के लिए तेल कुओं पर बनाया जाने वाला एक विशाल फ्रेम) की । गैस के रिसाव और फिर उसके आग पकड़ने पर वह डैरिक भी आधे-अधूरे मलबे की शक्ल में बिखरा पड़ा था । यह काम अगर कोई कर सकता था, तो वह था किनली – किनली ने एक दो सौ लीटर क्षमता वाले ड्रम में विस्फोटक सामग्री भरकर उस ड्रम को दो हजार लीटर क्षमता वाले एक टैंक में रखवा दिया । पानी के इस विशाल टैंक को एक बड़े एवं लंबे पाइप से वैल्ड कर दिया और पाइप के खुले सिरे को एक बुलडोजर से जोड़ दिया गया । फिर, किनली के आदेश पर बुलडोजर ने अपनी तरफ के पाइप को आगे धकेलना शुरू किया । पाइप के अगले छोर पर वैल्ड की गई पानी की विशाल टंकी और उसमें मौजूद विस्फोटक पदार्थ से भरे ड्रम ने आगे खिसकना शुरू किया । धीरे-धीरे वह टैंक किनली द्वारा निर्दिष्ट स्थान पर पहुंच गया । किनली ने सबकी सुरक्षा निश्चित की और उसके बाद उसने बिस्फोटक का लीवर दबा दिया ।
अगले ही पल एक तेज धमाके के साथ डैरिक छोटे-छोटे टुकड़ों में टूट कर आकाश में बिखर गया धमाका इतना तेज था कि जमीन में दबा कोई 800 मीटर लंबा एवं दस से.मी. चौड़ाई वाला पाइप भी एक झटके के साथ उखड़ कर आकाश की तरफ लपक पड़ा । हालांकि वह पाइप ठोस स्टील से निर्मित थी, तो भी उसकी हालत देखने लायक थी ।
पाइप बल खाती हुई हवा में उछली और नीचे गिरी, तो कुछ इस तरह से लिपटी पड़ी थी, मानो कोई विशाल सांप कुंडली डाले पड़ा हो । अब आग एक अकेली लपट के रूप में दिखाई देने लगी थी । आग का यह खंभा कोई तेरह मीटर लंबाई लिए था और इसे बुझाने के लिए किनली ने तय किया कि उसे एक और धमाका करना पड़ेगा, एक तगड़ा धमाका । परंतु यहां एक समस्या थी । उस जलते हुए तेल कुएं के आस-पास की जमीन उस आग की वजह से तप कर लाल हो गई थी |
और तय था कि उस वजह से गैस में दुबारा आग लग सकती थी । किनली ने अपनी योजनानुसार उस पूरे स्थान पर लाखों लीटर पानी का छिड़काव शुरू कर दिया । दूसरी तरफ वह खुद जेलीगनाइट का बम बनाने में लग गया ।
किनली की विशेष सुरक्षात्मक ओट के सामने की तरफ एक ड्रम लगा दिया गया । इस ड्रम में दो सौ पचास किलोग्राम जेलीगनाइट भरा गया था । अब धीरे-धीरे बम बांधे गए और उसको आग वाले स्थल की ओर सरकाया जाने लगा । पानी की कमान संभाल रहे दल के सदस्यों ने इस विशेष प्रबंध पर बेतहाशा पानी छिड़कना शुरू कर दिया । यह जरूरी भी था, क्योंकि अत्यधिक गर्मी होने पर बम का नियत स्थान एवं समय से पहले ही फट जाने का डर था । सावधानी से सरकता हुआ वह बम आखिर आग की उस विशाल लपट तक पहुंच ही गया और फिर कुछ ही पलों में वह जमीन से तीन मीटर ऊपर ऐन उस लपट के बीचों-बीच जा पहुंचा । हर किसी का दिल रोमांच से भर गया था । न जाने अगले पल क्या होगा ? किनली ने एक बार फिर लीवर दबाया । अगले ही पल धरती हिला देने वाली एक आवाज हुई और वह विशाल लपट बुझ गई, मानो किसी ने फूंक मार कर कोई मोमबत्ती बुझा दी ।
किसी तेज चीख की सी आवाज मारती गैस तेजी के साथ बाहर निकल रही थी । गैस की यह फुहार सैकड़ों मीटर की ऊंचाई लिए हुए थी । पानी अब भी बड़ी भारी मात्रा में फेंका जा रहा था, ताकि गैस का पुनः ज्वलन न होने पाए । कुछ ही दिनों बाद जब यह निश्चित हो गया कि सब कुछ ठीक-ठाक है, तो उस कुएं का निरीक्षण किया गया । परीक्षण में पाया गया कि उस तेल के कुएं की परिधि का काम करने वाला पाइप (केसिंग) जल चुका था । इसे काट कर अलग कर दिया गया ।
कुएं की परिधि बांधने के लिए एक नए पाइप को केसिंग हैंगर की मदद से तय स्थान पर उतार कर कस दिया गया । अब बारी थी इस केसिंग पर विशाल वाल्व (केमरोन वाल्व) लगाने की | विशाल वाल्व धीरे-धीरे गैस की फुहार की ओर बढ़ने लगा । फुहार अत्यधिक तेज होने के कारण वाल्व बार-बार अपने स्थान से हिलने लगता था । वाल्व से टकराने पर गैस की फुहार के दिशा परिवर्तन होने से आस-पास के पत्थर छोटे-मोटे केकड़ों की मानिंद उछलने लगते थे । भाग्य से पत्थरों के इस तरह से उछलने से कोई चिनगारी नहीं उपजी, अन्यथा कुछ भी हो सकता था । वाल्व को उसके स्थान पर लगा दिया गया और फिर इसे धीरे-धीरे कसा गया । तेज दबाव से किसी चीत्कार की तरह निकलने वाली वह गैस धीमी होती होती किसी फुसफुसाहट सरीखी हो गई और अंततः पूर्ण रूप से बंद हो गई ।
रिंग-20 नामक उस तेल के कुएं के आस-पास आज बाइस दिनों बाद पहली बार खामोशी थी । आज यह पहली बार था कि कुएं पर काम करने वालों को एक-दूसरे के कान में चीखना नहीं पड़ रहा था । गर्म धुएं के खतरनाक गुबार छंट चुके थे और हर कोई आसानी से सांस ले पा रहा था ।