मार्को पोलो कौन था | मार्को पोलो भारत यात्रा | मार्को पोलो हिस्ट्री | मार्को पोलो इतिहास | marco polo kaun tha | Marco Polo in India

मार्को पोलो कौन था | मार्को पोलो भारत यात्रा | मार्को पोलो हिस्ट्री | मार्को पोलो इतिहास | marco polo kaun tha | Marco Polo in India

मध्यकाल के लोगों की दृष्टि में दुनिया बहुत छोटी थी, क्योंकि इसकी विशालता के विषय मे उन्हे अधिक ज्ञान नही था | साथ ही साथ उस समय के लोगो को अपनी वह छोटी दुनिया बहुत विस्तृत लगती थी, क्योंकि उन दिनों धरती, सागर और वायु-यात्रा के साधनों का नितांत अभाव था ।

छोटी-छोटी यात्राओं को पूरा करने में महीनों और वर्षों का समय लग जाता था । यूरोप के लोगों को एशिया, भारत, चीन और उसके आगे के देशों के विषय में बहुत ही कम जानकारी थी, क्योंकि उस समय तक इन देशों की खोज-यात्रा नहीं की गयी थी । कम जानकारी के बावजूद भी लोगों को इतना अवश्य पता था कि पूर्व के इन देशों में रेशम और मसाले भारी मात्रा में पैदा किये जाते हैं और यही कारण था कि यूरोप के शासक इन देशों की खोज करने के लिए अत्यंत लालायित रहते थे ।

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निकोलो पोलो और मेटियो पोलो (Niccolo Polo and Matteo Polo) इटली के दो प्रसिद्ध व्यापारी थे । वे वेनिस में रहते थे । इन्होंने सन् १२६० में एक विचित्र यात्रा की । वे रूस तक पहुंच गये और जब वे अपनी यात्रा पर कैसपयन सागर से होते हुए वापस आ रहे थे तो उन्हें चीन के बादशाह कुबलाई खान (Cublai Khan) के दरबार के कुछ व्यक्ति मिले । ये लोग इन दोनो भाइयों को अपने साथ पैकिंग ले गये । कहा जाता है कि चीन में इन लोगों का भव्य स्वागत हुआ । ये दोनों पहले यूरोपीय थे, जिन्हें कुबलाई खान ने देखा और यही पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने चीन की सीमा में सर्वप्रथम प्रवेश किया ।

कुछ वर्ष वहां रहने के बाद ये दोनों यात्री सन् १२६९ में इटली वापस लौट गये । कुबलाई खान इन लोगों से बहुत प्रसन्न था और उसने उन दोनों से प्रार्थना की थी कि वे जल्दी ही फिर चीन आए ।

दो वर्ष बाद अर्थात् सन् १२७१ में इन दोनों भाइयों ने एक बार फिर कुबलाई खान के दरबार में चीन जाने का निश्चय किया । इस बार इन्होंने अपने साथ निकोलो के १७ वर्षीय पुत्र मार्को पोलो को भी ले लिया । यद्यपि ये दोनों चीन जाने वाले प्रथम यात्री थे लेकिन फिर भी इन्हें इतनी प्रसिद्धि न मिल पायी जितनी कि मार्को पोलो को मिली ।

इन तीनों यात्रियों की यात्रा बड़ी ही कष्टदायक थी लेकिन बिना हिम्मत हारे, ये रेगिस्तानों और पर्वतों को पार करते हुए आगे बढ़ते गये । इन कठिन रास्तों से होते हुए वे फिलिस्तीन और आरमीनिया के रास्ते से बगदाद पहुंचे । वहां से ईरान होते हुए उन्होंने पामीर के पठारों को पार किया । इन पठारों को पहले किसी यूरोपीय ने पार नहीं किया था । पूर्व की ओर चलते-चलते उन्होंने गोबी मरूस्थल (Gobi Desert) को पार किया ।

तीन साल की कठिन यात्रा के बाद इन तीनों यात्रियों ने चीन की राजधानी पेकिग में प्रवेश किया । कबलाई खान का महल वास्तव में संसार का एक आश्चर्यजनक नमूना था । चार मील की पत्थरों से बनी चहारदीवारी से घिरा यह महल आठ हिस्सों में बंटा हुआ था । प्रत्येक हिस्सा चीनी संगमरमर, रेशम, कीमती पत्थरों और सोने से सजा हुआ था । पोलो परिवार को देखकर कुबलाई खान बहुत प्रसन्न हुआ । उसने मार्को पोलो को अपने विशाल राज्य में इधर-उधर भेजना आरभ किया ।

मार्को पोलो ने जल्दी ही मंगोल भाषा सीख ली । उसने अपने द्वारा लिखी पुस्तक में अपनी यात्राओं के अनुभवों का ब्यौरा दिया है । अपनी यात्राओं के दौरान उसने जो कुछ भी देखा, वह उस सब का लेखा-जोखा अपने पास करता रहा । उसने एक विशालकाय जंतु देखा, जो दस कदम लंबा था और एक विशाल ड्रम की भांति दिखता था । उसका सिर बहुत बड़ा था और मुंह इतना बड़ा था कि वह आदमी को साबुत ही निगल सकता था ।

उसने चीन के विशाल साम्राज्य के चप्पे-चप्पे का भ्रमण किया तथा बर्मा और लंका की यात्राएं भी कीं । अपनी यात्राओं में मगरमच्छ से उसका सामना पहली बार पड़ा था । इसका विवरण उसने अपनी पुस्तक में दिया है । अपनी पुस्तक में उसने कुछ ऐसे विवरण भी दिये हैं, जो उसने अपनी यात्राओं के दौरान दूसरे लोगों से सुने थे । इन सब बातों के विषय में उन दिनों यूरोपवासियों को कुछ भी पता नहीं था ।

चीनी दरबार में उसने एक उच्च पद पर रह कर १७ वर्ष की अवधि तक कुबलाई खान की सेवा की । उसका कहना था कि चीनी की शासन-व्यवस्था उन दिनों बहुत अच्छी थी । वहां की सड़कें चिकनी थीं । वहां मुद्रा-व्यवस्था प्रचलन में थी और सभी शहर बड़े अच्छे ढंग से बसे हुए थे । पत्थर से बने पुल और मकान बहुत सुंदर लगते थे । जगह-जगह सार्वजनिक स्नानागार बने हुए थे ।

मार्को पोलो सन् १२९५ में २५ साल तक विदेश में रह कर ४१ साल की उम्र में वापस लौटा और अपनी आश्चर्यजनक यात्राओं और साहसिक कारनामों के विषय में एक पुस्तक लिखी ।

इस बार की अपनी यात्रा में वह रूस, चीन, बर्मा, जावा, सुमात्रा, लंका, मेडागास्कर और फारस (Percia) तक हो आया था । वह पहला यूरोपीय यात्री था, जिसने इतने स्थानों की रोमांचक यात्रा की थी ।

इस यात्रा से जब मार्को पोलो इटली वापस लौटा तो घरवालों ने उसे पहचाना तक नहीं । वह अपने साथ ढेर सारे हीरे-जवाहरात ले गया था । उसने सदर पूर्व के विषय में जो पुस्तक लिखनी थी, उसमें दिये गये कथनों पर इटली वालों ने विश्वास नहीं किया और किताब में लिखी सभी बातों को झूठा करार दे दिया ।

उसकी मृत्यु के अनेक वर्षों बाद उसकी पुस्तक में दिये गये तथ्यों पर तब विश्वास किया गया जब दूसरे खोज-यात्रियों ने उन सब तथ्यों का सत्यापन कर दिया ।

मार्को पोलो एक बहुत ही साहसी युवक था । अपनी यात्राओं में उसने अनेक कष्ट उठाये । भूगोल की ज्ञान वृद्धि के क्षेत्र में उसके दिये गये योगदानों को भुलाया नहीं जा सकता ।

उसके द्वारा दिये गये ज्ञान का पूर्व की ओर आने वाले कोलंबस जैसे खोज-यात्रियों ने भरपूर लाभ उठाया ।

मार्को पोलो का जन्म वेनिस में सन् १२५४ में हुआ था । उसका परिवार एक व्यापारी परिवार था, जो व्यापारिक यात्राओं पर बाहर आता-जाता रहता था । उसकी मृत्यु सन् १३२४ में वेनिस में हुई ।

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