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जगलूल पाशा | Jaglul Pasha
ममियों का मुल्क मिश्र ममियों की तरह मुर्दा बनकर पड़ा हुआ था । प्राचीन वैभव और गौरव की स्मृति के सिया उसके पास और कुछ भी नहीं रह गया था । परन्तु १९ वीं सदी के मध्यभाग में वहाँ एक ऐसे महापुरुष ने जन्म लिया, जिसके कार्य-कलाप को देखकर सारे संसार की दृष्टि एक बार फिर मिश्र की ओर आकृष्ट हुए बिना नहीं रही । मिश्र के इस महापुरुष का नाम श्री जगलूल पाशा था ।
सन् १८५० ई० में एक प्रतिष्ठित किसान के घर में जगलूल का जन्म हुआ था । गाँव की पाठशाला का अध्ययन समाप्त कर ये उच्च शिक्षा पाने के लिये अल-अज़हर विश्वविद्यालय में भेजे गये । अल-अफगानी के साथ यहीं इनकी मुलाकात हुई । ये जमालुद्दीन मुसलमान जगत् को बहुत दिनों की नींद से जगाने वाले एक महापुरुष हो गये हैं । इन्होंने नवयुवक जगलूल के प्राणों में स्वाधीनता का मन्त्र भर दिया था ।
जगलूल सर्व प्रथम ‘आफिशियल जर्नल’ नामक पत्र के सम्पादक रूप में सर्व साधारण से परिचित हुए । पर यह काम छोड़ कर इन्होंने बैरिस्टरी करनी शुरू की । वहाँ के मन्त्री मुस्तफा फहमी की कन्या के साथ इनका विवाह हुआ था ।
सन् १८८२ ई० में अंग्रेजो ने मिश्र पर अधिकार किया था । इसके कुछ ही दिन बाद अत्यधिक लोकप्रिय नेता जगलूल को किसी राजनीतिक मामले में सज़ा दी गयी, पर जेल से छूटने के बाद इन्हें जज का पद दिया गया । मिश्र के पहले हाई कमिश्नर ने इन्हें सन् १९०६ में शिक्षा विभाग के मन्त्री का पद प्रदान किया ।
सन् १९१४ में अगरेजों द्वारा प्रतिष्ठित मिश्र की व्यवस्थापिका सभा के सहकारी समापति का आसन भी इन्हें ही दिया गया था । पर युरोपीय महासमर का अवसान होने पर जब मिसरवालों की सारी आशाओं पर पानी फिर गया, तब श्री जगलूल पाशा ने मिश्र की पूर्ण स्वाधीनता के लिये (१९१८ में) आन्दोलन करना शुरू किया । १३ वीं अप्रैल १९१८ को जगलूल ने हाई कमिश्नर विनगेट के पास इंग्लैण्ड जाकर अपनी माँग के विषय में बातें करने के लिये पास-पोर्ट पाने की दरखास्त की । पर उन्हें इसके लिये मजूरी नहीं मिली । इससे जगलुल को बड़ा ही क्षोभ और दुःख हुआ ।
अब उन्होंने मित्र राष्ट्रों की शान्ति परिषद के सामने मिश्र की माँगें रखने की मंजूरी चाही । पर इस बार भी उन्हें पासपोर्ट नहीं दिया गया । १९१९ के मार्च में वे कैद करके ‘माल्टा’ में निर्वासित किये गये । उनके निर्वासन दण्ड से सारे देश मे आग भड़क उठी । विद्रोह लंदन तक पहुँच गया । जगलूल छोड़ दिये गये । सारे देश ने वीर नेता को हृदय से लगा लिया ।
इसके बाद मिलनर-कमिशन मिश्र वालों को योग्यता की परीक्षा लेने के लिये विलायत से भेजा गया । पर इस कमिशन के सवालों ने जगलूल पाशा को बात मानकर पूर्ण वहिष्कार किया । पर इसके लिये १९२१ के अन्त में जगलूल फिर कैद करके ‘सिंघाली’ द्वीप भेज दिये गये; परन्तु मिश्र का आन्दोलन बढ़ता ही गया । १९२३ के अंत में नयी शासन व्यवस्था की गयी । जगलूल कैद से छोड़ दिये गये । पर इस शासन-व्यवस्था से भी जगलूल के साथ मिश्री लोग सन्तुष्ट नहीं हो सके हैं । जगलूल पाशा अब इस संसार में नहीं हैं ।