खोज का युग | फोनीशियन | हेरोडोटस का इतिहास | पायथीज | टॉलमी का जीवन परिचय | Ptolemy | Pytheas | Phoenician | Herodotus

खोज का युग

खोज का युग | फोनीशियन | हेरोडोटस का इतिहास | पायथीज | टॉलमी का जीवन परिचय | Ptolemy | Pytheas | Phoenician | Herodotus

सभी खोज-यात्राओं के पीछे मुख्य रूप से एक ही उद्देश्य था और वह था नये स्थानों का पता लगाकर वहां के लोगों के साथ व्यापारिक संबंध स्थापित करना ।

कुछ खोज-यात्राएं इस उद्देश्य से भी की गयीं कि नये स्थानों का पता लगाकर वहां नये उपनिवेश (Colony) बनाए जाएं । अनेक खोज-यात्री मूल रूप से सिपाही थे । वे दुरस्थ स्थानों की खोज-यात्राओं पर केवल इस उद्देश्य से निकलते थे कि वे वहां के निवासियों पर विजय प्राप्त करके चांदी-सोना और कीमती हीरे-जवाहरात लूट सकें ।

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बहुत सी खोज-यात्राएं विशुद्ध रूप से दुनिया के विषय में ज्ञान-वृद्धि के लक्ष्य को सामने रखकर ही की गयीं थीं । प्राचीन दुनिया के प्रथम खोज-यात्री फोनीशियन (Phoenician) थे, जो खोज-यात्राएं करते-करते भूमध्य सागर (Mediterranean Sea) के पूर्वी किनारों पर जा बसे थे । ये लोग दक्ष नाविक थे और ईसा से १४५० वर्ष पूर्व तक भूमध्य सागर के मार्ग से होने वाले व्यापार पर इनका पूरा कब्जा था ।

इन्होंने लेबनान (Labanon) टायर (Tyre) सिडन (Sidon) आदि जैसे अनेक व्यापारिक शहरों की स्थापना की । इन यात्रियों ने उत्तर की ओर जाने का साहस भी दिखाया और यूरोप तथा बाल्टिक सागर पर बसे देशों से भी व्यापार किया । ये साहसी नाविक इंग्लैंड के दक्षिणी किनारे पर बसे डेवोन (Devon) और कॉर्नवाल (Cornwall) नामक स्थानों से अक्सर व्यापार करते थे और इन स्थानों का नाम इन्होंने टिन द्वीप (Tin Island) रख रखा था ।

इन शहरों से वे कपड़ों और आभूषणों के बदले टिन, तांबा और जानवरों की खाल प्राप्त करते थे । भूमध्य सागर से अंधमहासागर में प्रवेश करने वाले ये प्रथम यात्री थे ।

एक यूनानी इतिहासकार हीरोडोटस (Herodotus) ने लिखा है कि फोनीशियन खोज-यात्रियों का जहाज ईसा से ६०० वर्ष पूर्व ही अफ्रीका के चारों ओर की यात्रा कर चुका था । ईसा से ४५० वर्ष पूर्व हन्नो (Hanno) नामक यात्री ने, जो संभवतः कार्थेज (Carthage) का राजा था, अफ्रीका के पश्चिमी किनारे की खोज की थी ।

इन प्राचीन यात्रियों को जल-मार्ग से यात्रा में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था । दिशा ज्ञात करने के लिए इनके पास कोई यंत्र नहीं था । फिर भी ये साहसी यात्री सूरज और तारों की सहायता से अपनी यात्राएं जारी रखते थे ।

१२वीं शताब्दी में चीनियों ने चुंबक का आविष्कार किया, जिसके आधार पर चुंबकीय दिशासूचक (Compass) बनाया गया । इसकी सुई का एक सिरा सदा उत्तर की ओर ही रहता है । अक्षांश (Latitude) का पता करने के लिए ये लकड़ी से बना एक क्रॉस स्टाफ नामक यंत्र प्रयोग में लाते थे ।

पायथीज (Pytheas) नामक यूनानी यात्री ने ईसा से ३२० वर्ष पूर्व ब्रिटेन के चारों ओर की यात्रा की । सिकंदर महान एक ऐसा विजयी बादशाह हुआ, जिसने यूनान से भारत तक अपने साम्राज्य का विस्तार किया । सिकंदर एक महान सिपाही तो था ही साथ में एक बुद्धिमान व्यक्ति भी था । विजय-यात्रा के दौरान संपर्क में आए लोगों का लेखा-जोखा रखने के लिए अनेक विद्वान उसके साथ रहते थे ।

भूमध्य सागरीय सभ्यता में रोम का दूसरा स्थान था । रोमवासियों ने ईसा से १४६ वर्षे पहले कार्थेज का विनाश किया । उन्होंने एक विशाल साम्राज्य स्थापित किया लेकिन भौगोलिक ज्ञान के क्षेत्र में उन्होंने कोई विशेष वृद्धि नहीं की ।

प्राचीन समुद्री यात्री अपनी यात्राओं का लेखा-जोखा बड़े कौशल के साथ रखते थे । वे अपनी तय की गयी यात्राओं की दूरियां मापते तथा टापुओं, शहरों, पर्वतों तथा नदी स्रोतों से संबंधित आंकड़े भी जमा करते थे । यात्राओं से लौटने के बाद इन्हीं आंकड़ों के आधार पर वे मानचित्र तैयार करते थे । मानचित्र तैयार करने की कला के विकास में प्राचीन यूनानियों का विशेष योगदान रहा है । आरंभ में उनका विचार था कि पृथ्वी चपटी है लेकिन ईसा से ३८० वर्ष पूर्व तक पहुंचते-पहुंचते यूनानी विद्वान इस निष्कर्ष पर पहुंच चुके थे कि पृथ्वी गोल है ।

इस तथ्य की रोशनी में उन्होंने उचित मानचित्र बनाने भी आरंभ कर दिये थे । इस क्षेत्र में टॉलमी (Ptolemy) नामक एक विद्वान का विशेष योगदान रहा । उन्होंने सन् १५० में कुछ किताबें लिखीं, जो मानचित्र बनाने की कला के विकास में बहुत ही लाभदायक सिद्ध हुई । उनकी पुस्तकों के नाम क्रमशः आलमेगस्ट (Almagest) तथा जियोग्राफी (Geography) थे ।

टॉलमी की मृत्यु के बाद उनकी इन किताबों का कुछ पता न रहा अतः मध्यकाल में भी यूरोप के लोगों को इस दिशा में शुरू से ही काम करना पड़ा ।

लेकिन टॉलमी की किताबों के अनुवाद अरब वालों के पास मौजूद थे । टॉलमी की खोई हुई भूगोल की पुस्तक सन् १४०७ में प्राप्त हुई, जिससे १५वीं शताब्दी के खोज-यात्रियों को बहुत सहायता मिली । इसके बाद विश्व के अनेक मानचित्र बनाये गये, जिनमें नयी जानकारियों के आधार पर अनेक सुधार किये गये । मध्य युग में अनेक साहसी नाविकों द्वारा अनेक समुद्र यात्राएं की गयीं, जिनसे विश्व के विभिन्न देशों के विषय में मानव की ज्ञान-वृद्धि होती गयी । अनेक यात्रियों ने नये-नये देशों को खोज निकाला, जिससे दुनिया के लोग एक-दूसरे के पास आते गये । औद्योगिक क्रांति (Industrial Revolution) के बाद यातायात साधनों के विकास में एक क्रांति आ गयी जिससे दुनिया क्रमशः सिकुड़कर लघु से लघुतर होती चली गयी । आज एक देश से दूसरे देश तक पहुंचने में सालों और महीनों का वक्त नहीं लगता बल्कि कुछ ही घंटों में लंबी-लंबी यात्राएं संभव हो गयी हैं ।

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