अकबर के नवरत्न की नकारात्मक इतिहास
Akbar’s Navratna Negative History
अकबर के शासनकाल के इतिहास-ग्रन्थों में अकबर
को कलाकारों, साहित्यकारों
और विद्वानों के महान संरक्षक के रूप में दिखाने का प्रयत्न किया गया है। हमें बताया जाता
है कि उसके दरबार में अन्य योग्य व्यक्तियों के अतिरिक्त नौ व्यक्ति ऐसे थे, जो
विशिष्ट विषयों के धुरन्धर विद्वान थे और अकबर के दरबार के रत्न कहे जाते थे ।
लिखित प्रमाणों से सिद्ध हो जाता है कि ये सब
दलाल, पिट्टू, चापलूस
और अवसरवादी लोग थे, जिनमें अकबर के निरंकुश शासन के प्रति पूर्ण आत्मसमर्पण के
कारण कोई अहमन्यता या नैतिकता नहीं रह गई थी ।
इस बात में कोई सन्देह नहीं रह जाना चाहिए कि
ये सब कान्तिहीन रत्न थे जिनका वर्णन इतिहासकारों ने अयुक्ति पूर्ण किया है । जिन
नौ व्यक्तियों को अकबर के दरबार का विशेष रत्न कहा जाता है, उनके
नाम हैं – अबुल फ़जल, अबुल फैजी, टोडरमल, मानसिंह, मिर्जा अजीज़ कोका,
अब्दुल
रहीम खानखाना,
(बीरबल) बीरबर, तानसेन और हकीम हुमाम।
इतिहासकार बताते है कि अकबर के मन में इनमें
से किसी के प्रति भी
सम्मान की भावना नहीं थी। अकबर ने इनमें से किसी भी व्यक्ति के सम्मान में कुछ
नहीं बनवाया और किसी भी व्यक्ति को आने वाली पीढियों ने याद नहीं किया।
आइये जानते है इन नौ का इतिहास :
इस तरह जिन्हें नव-रत्न कहा जाता है, वे निस्तेज रत्न एवं अवसरवादी थे जो आपस में एक-दूसरे की जड़ काटने में लगे रहते थे। उन सबका जीवन सरल और सहज नहीं था। हमने पहले अकबर का यह कथन उद्धृत किया है कि ‘मैं किसी दरबारी को किसी रूप में भी योग्य नहीं समझता। ये दरबारी अकबर से घृणा करते थे जिसका संकेत उनके व्यवहार से मिल जाता है। नवरत्नों सम्बन्धी विवरणों से अकबर का यश बढ़ने की अपेक्षा कम ही होता है।