रोल्ड आमुन्सन | रुआल आमुन्सन | Roald Amundsen
दक्षिणी ध्रुव या अंटार्कटिका पर पहुंचने वाला प्रथम खोज-यात्री रोल्ड एमंडसन था । उसने अपनी यात्रा नैनसन (Nansen) की देखरेख में बने जलयान फ्राम (Fram) द्वारा पूरी की । यह साहसी यात्री १४ दिसंबर, १९११ को दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचा । ३००० कि.मी. की यात्रा पूरी करने में इस साहसी युवक को ९९ दिन लगे ।
एमंडसन का जन्म १६ जुलाई, १८७२ को बोर्ज (Borge) में हुआ । उन्होंने खोज-यात्राएं आरंभ करने से पहले चिकित्सा शास्त्र का अध्ययन किया । उनकी पहली यात्रा सन् १८९७ में हुई । एमंडसन की बाल्यकाल से ही इच्छा थी कि वह ध्रुवीय प्रदेशों की सर्वप्रथम यात्रा करके विश्व में कीर्तिमान स्थापित करे । अपनी इस इच्छा की पूर्ति के लिए उसने ध्रुवीय प्रदेशों के विषय में अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए अनेक पुस्तकों का अध्ययन किया । इस यात्री में एक विशेष बात यह थी कि वह किसी भी काम को अधूरा नहीं छोड़ना चाहता था । वह किसी भी कार्य को देरी से नहीं करना चाहता था । उसमें तुरंत निर्णय लेने की क्षमता थी । संभवतः यही कारण था कि वह दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला प्रथम व्यक्ति बना ।
एमंडसन की महान इच्छा थी कि दोनों ध्रुवीय प्रदेशों पर पहुंचने वाला वही प्रथम यात्री बने | सन् १९०९ में जब वह उत्तरी ध्रुव की ओर जाने की तैयारी कर रहा था तो उसे पता चला कि रॉबर्ट पिअरे नामक यात्री उत्तरी ध्रुव पर पहुंच चुका है । उसे इस तथ्य को जानकर कुछ दुःख अवश्य हुआ लेकिन उसने ध्रुवीय प्रदेशों की यात्रा का विचार नहीं छोड़ा । वह तैयारी करता रहा और जून, १९१० में नार्वे से उत्तरी ध्रुव जाने की बजाय वह दक्षिणी ध्रुव की ओर रवाना हुआ । एमंडसन का कहना था कि जो लोग अपने कार्यों के प्रति सतर्क नहीं रहते, वे जीवन की दौड़ में पिछड़ जाते हैं और शायद एमंडसन की जीवन की सफलताओं का यही रहस्य था ।
अपनी इस यात्रा के लिए एमंडसन ने नैनसन से फ्राम नामक जहाज मांगा । यह वही जहाज था जिसके द्वारा नैनसन ने उत्तरी ध्रुव के क्षेत्रों की यात्रा की थी । एमंडसन ने अपनी यात्रा के लिए घोड़ों का प्रयोग नहीं किया जैसा कि रॉबर्ट स्कॉट ने किया था । उन्हीं दिनों रॉबर्ट स्कॉट भी दक्षिणी ध्रुव की यात्रा कर रहा था । नावें के ओस्लो (Oslo) बंदरगाह से चार दिन की यात्रा में ही वह समुद्र के बर्फीले क्षेत्र को पार करके आगे बढ़ गया । वहां से ११ दिन तक यात्रा करने के बाद वह व्हेल की खाड़ी में जा पहुंचा । यहीं से दक्षिणी ध्रुव की कठिन यात्रा आरंभ होती थी । भयंकर जाड़े का मौसम शुरू हो चुका था । ठंड को देखकर उसने कुछ दिन वहीं रुक जाना उचित समझा और अपना डेरा डाल दिया ।
शीतकाल समाप्त होते ही उसने आगे की यात्रा आरंभ की । इस यात्रा पर जाने के लिए एमंडसन ने चार साथियों, स्लेज गाड़ियों और ५२ कुत्तों के साथ २० अक्तूबर, १९११ को अपनी यात्रा आरंभ की । उसके कुत्ते बहुत शक्तिशाली और तेजी से भागने वाले थे । वह बर्फीले पहाड़ों की सीधी चढ़ायी न चढ़कर उनकी बगल से होता हुआ दक्षिणी ध्रुव की ओर चला । चढ़ायी के बाद ढलान आरंभ हो था, जिस पर स्लेज गाड़ियां तेजी से फिसलती हैं । काफी यात्रा करने के बाद उसने २४ कमजोर कत्ते छांटे और उन्हें गोली से मार दिया । इससे आगे की यात्रा कठिन थी । बर्फ गिर रही थी । चारों तरफ धुंध थी और शरीर में सुइयों की तरह चुभने वाली ठंडी हवाएं चल रही थीं । एमंडसन हिम्मत के साथ आगे बढ़ता जा रहा था । धीरे-धीरे चलता हुआ वह १४ दिसंबर, १९११ को दक्षिणी ध्रुव पहुचे और वहां अपने देश नार्वे का झंडा फहरा दिया ।
इसके कुछ दिन बाद रॉबर्ट स्कॉट भी वहां जा पहुंचा लेकिन दक्षिणी ध्रुव पर विजय पताका फहराने का श्रेय एमडसन को ही प्राप्त हुआ । बेचारे रॉबर्ट स्कॉट का तो दुर्भाग्य ही रहा । तीन दिन दक्षिणी ध्रुव पर रहने के बाद १७ दिसंबर, १९११ को वह अपने साथियों के साथ घर की ओर लौट पड़ा । इस प्रकार उसने सर्वप्रथम दक्षिणी ध्रुव की यात्रा की और सकुशल घर लौट आया ।
सन् १९१८ में उसने उत्तरी ध्रुव की यात्रा की लेकिन उसे सफलता न मिली । सन् १९२५ में अमरीकी यात्री लिंकन एल्सवर्थ (Lincoln Allsworth) के साथ वायुयान द्वारा एमंडसन ने उत्तरी ध्रुव की उड़ान की । सन् १९२६ में एल्सवर्थ और इटली के एक यात्री अम्बेर्टो नोबाइल (Umberto Nobile) ने वायुयान द्वारा उत्तरी ध्रुव की यात्रा की । सन् १९२८ में अम्बेर्टों की खोज के लिए एमंडसन ने एक उड़ान की लेकिन उसका जहाज दुर्घटनाग्रस्त हो गया और यह महान साहसी यात्री दूसरे यात्री के प्राणों की रक्षा के लिए अपने प्राण दे बैठा ।
जब तक लोग दक्षिणी ध्रुव जाते रहेंगे, तब तक एमंडसन का नाम नहीं भुला पायेंगे । सन् १९१२ में एमंडसन ने दक्षिणी ध्रुव की यात्रा से संबंधित एक पुस्तक लिखी, जिसका नाम है-‘द साउथ पोल’ (The South Pole)। एक पुस्तक उन्होंने सन् १९२७ में एल्सवर्थ के साथ लिखी । इस पुस्तक का नाम है- ‘द फस्ट क्रासिंग ऑफ द पोलर सी’ (The first crossing of the polar sea)