हेनरिक बार्थ इतिहास, यात्रा विवरण, कार्य | हेनरिक बर्थ | Heinrich Barth Travels And Discoveries

हेनरिक बार्थ

हेनरिक बार्थ इतिहास, यात्रा विवरण, कार्य | हेनरिक बर्थ | Heinrich Barth Travels And Discoveries

पश्चिमी अफ्रीका के किनारे के विषय में १५वीं सदी से ही यात्रियों के विषय में काफी समय तक ज्ञान का अभाव ही था । उत्तर में विशाल सहारा मरुस्थल, पश्चिम में घने रेनफॉरेस्ट और टिबकट (Timbuktu) शहर तथा रहस्यमयी चड झील (Lake Chad) के विषय में सुनी सुनायी कहानियों से ही ज्ञान प्राप्त था । १९वीं शताब्दी के आरंभ में मेजर गॉर्डन लेंग (Gordon Laing) और रेनी कैली (Rene Caille) ने टिबकटू जाने की योजना बनायी । मेजर लेंग तो वहां मारा गया लेकिन रेनी कैली ने उस शहर को तथा वहां के लोगों को देखने के लिए वहीं रुकने का कुछ प्रबंध कर लिया ।

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सन् १८४७ में हेनरिक बार्थ, जो बर्लिन विश्वविद्यालय में भूगोल पढ़ाता था, एक वैज्ञानिक यात्रा में शामिल हुआ जो सहारा से मध्य अफ्रीका और लेक चडन्तक होनी थी । उसे अरबी भाषा का ज्ञान था और उसने उत्तरी अफ्रीका की यात्रा कर रखी थी । इस यात्रा के अध्यक्ष एक ब्रिटेन के यात्री थे जिनका नाम जेम्स रिचर्डसन (James Richardson) था । रिचर्डसन पहले ही सहारा तक ही यात्रा कर चुके थे और अब उनका विचार चड झील तक पहुंचने का था । इस यात्री समूह का तीसरा सदस्य एडोल्फ ओवरवेग (Adolf Overweg) था, जो एक भूगर्भशास्त्री और ज्योतिष वैज्ञानिक था ।

मार्च, १८५० को रिचर्डसन, बार्थ और ओवरवेग ने यात्रा आरंभ की । इनके साथ ६० ऊंटों का कारवां था जिन पर व्यापार के लिए माल लदा हुआ था और एक नाव थी, जिसके दो हिस्से थे और इन दोनों हिस्सों को लेक चड पर पहुंचने के बाद जोड़ा जाना था । उन्होंने दक्षिण से मरजुग (Murzug) तक यात्रा की । वहां उन्होंने एक महीने तक इंतजार किया, क्योंकि अधिकारियों को इन लोगों के लिए एक सुरक्षा दल का प्रबंध करना था । जून के मध्य में उन्होंने पश्चिम और घाट (Ghat) की तरफ बढ़ना शुरू किया ।

उनके सामने विशाल रेगिस्तान फैला हुआ था । चारों ओर जंगलीपन, बालू के ढेर और नंगी चट्टानें ही दिखायी देती थीं । दिन में सूरज की प्रचंड गर्मी होती थी और रातें स्वच्छ और ठंडी तथा आकाश तारों से भरा हुआ दिखायी देता था । उन दिनों सड़कों का निर्माण नहीं हुआ था । सुरक्षा दल के नेतृत्व में वे आगे बढ़ रहे थे ।

यदि यह दल उनके साथ न होता तो जल्दी ही उनका कारवां रास्ता भटक गया होता । यात्रा के इस चरण में बार्थ तो लगभग मरने योग्य हो गया था । ऐसा हुआ कि उसे एक बालू के विशाल ऊंचे टीले पर चढ़ने की सूझी । अपने साथ कुछ बिस्कुट और खाल से बने थैले में पानी लेकर वह उस बालू की पहाड़ी पर चढ़ने के लिए तैयार हो गया । उस पहाड़ी के रास्ते में नुकीले पत्थर थे और ऊंचाई उसकी कल्पना से ज्यादा थी । चढ़ने के लिए पहले उसे काफी नीचाई में उतरना पड़ा, बाद में उसने पहाड़ी की ऊंचाई चढ़नी शुरू की । जब वह रेंगता-रेंगता चोटी पर पहुंचा तो सूरज की तेज गर्मी का सामना करना पड़ा । चोटी से नीचे उतरने के बाद उसने साथियों का ध्यान आकर्षित करने के लिए उसने पिस्तौल से फायर किये लेकिन किसी ने भी उसकी आवाज न सुनी और अपने खाल के थैले में से पानी पिया । थोड़ी ही देर में उसे बेहोशी आने लगी | आगे बढ़ने की शक्ति अब उसमें नहीं थी ।

पूरी रात वह वही पड़ा रहा । अगले दिन दोपहर को जब वह प्यास से पागल हो रहा था तो उसने अपने शरीर में एक घाव कर लिया और अपने ही खून से अपने सूखे और फटे होठों को गीला किया । उसके बाद वह बिलकुल ही बेहोश हो गया ।

भाग्यवश ऊंट पर चढ़े हुए उसके एक साथी ने उसे देख लिया और उसे बेहोशी की अवस्था में कैंप में ले गया ।

वे अपनी यात्रा में घाट को पार कर चुके थे लेकिन आधा रेगिस्तान पार करना बाकी था । तभी मार्ग दिखाने वाले उनके गाइड उनसे नाराज हो गये । उन्होंने उन तीनों यात्रियों को अपना धर्म बदलने के लिए मजबूर किया और धमकी दी कि यदि उन्होंने धर्म नहीं बदला तो वे उन्हें मार डालेंगे । तीनों यात्री अपने कैंप में उनके हमले का इंतजार करते रहे लेकिन उनके पास हथियार होने के कारण ऐसा कुछ नहीं हुआ । आगे बढ़ने पर उन्हें लुटेरों ने घेर लिया और उनसे उनका काफी सामान छीन लिया । इस प्रकार रास्ते में अनेक कठिनाइयों का सामना करते हुए वे १० जनवरी को तेगलेल (Tegelel) पहुंचे ।

वहां से इन तीनों यात्रियों ने अपनी यात्रा को तीन समूहों में विभाजित किया । बार्थ को कानो (Cano) की ओर जाना था और वहां से कुकावा (Kukawa) नामक स्थान पर रिचर्डसन से मिलना था । उन्होंने यह भी निश्चय किया कि वे तीनों लोग चड झील पर मिलेंगे । फरवरी के महीने में बार्थ कानो शहर पहुंच चुका था । उसके बाद उसने चड झील जाने के लिए यात्रा आरंभ की, क्योंकि उसे वहां अपने साथियों रिचर्डसन और ओवरवेग से मिलना था । वह यौबे (Yobe) नदी के साथ-साथ कुकावा की ओर आगे बढ़ा लेकिन वहां पहुंचने पर उसे पता लगा कि हफ्ते पहले रिचर्डसन की मृत्यु हो चुकी है। उसने उसका सामान इकट्ठा किया और उसे एक व्यापारी कारवां के हाथों त्रिपोली वापस भेज दिया । वह चड झील की ओर आगे बढ़ने लगा । अंततः बार्थ एवं ओवरवेग चड झील तक जा पहुंचे ।

वहां पहुंचने पर उन्होंने अपनी नाव के दोनों भागों को जोड़ा और झील के विषय में जानकारी प्राप्त करनी आरंभ की । बार्थ ने इसके चारों ओर के क्षेत्रों को देखा और वह बेनू नदी (River Benue) तक जा पहुंचा । ओवरवेग ने झील के विषय में अनेक रहस्यों का पता लगाया ।

जब अपनी यात्रा से बार्थ वापस लौटा तो उसने देखा कि उसका साथी ओवरवेग बुखार से पीड़ित है । कुछ ही दिनों में बार-बार बुखार के हमलों के कारण ओवरवेग की मृत्यु हो गयी । बार्थ अकेला रह गया था । उसने वापस लौटने की बजाय टिबकट जाने का निश्चय किया । १० महीने यात्रा करने के बाद वह टिबकटू पहुंचा, लेकिन वहां उसे निराशा ही हाथ लगी । उस शहर में बहुत गर्मी थी और वहां के लोगों का व्यवहार उसके प्रति ठीक न था । छह महीने तक शहर से बाहर रुक कर वह मई, १८५४ में एक तुर्क कारवां के साथ वापस कानो और बोरनू (Bornu) की तरफ चला । उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब उसने बोरनू अपनी सुरक्षा के लिए इंतजार करते हुए एक दल को देखा । अपनी इस महान यात्रा में उसने १० हजार मील के लगभग दूरी तय की और चड झील तथा टिबकटू के बीच के अनेक क्षेत्रों के रहस्यों का पता लगाया ।

छह साल की यात्रा के बाद घर लौटने पर उसकी उपलब्धियों और अनुसंधानों के लिए उसे जर्मनी और इंग्लैंड वालों ने अनेक सम्मान प्रदान किये । इस महान साहसी यात्री की मृत्यु ४४ वर्ष की उम्र में हो गयी लेकिन वह इतनी लिखित जानकारी छोड़ गया जो बाद के यात्रियों के लिए बहुत अधिक उपयोगी सिद्ध हुई ।

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