तायहुआनाको सभ्यता | तिवानाकु सभ्यता | Tiahuanaco Civilization | Tiwanaku Civilization

तायहुआनाको सभ्यता | तिवानाकु सभ्यता | Tiahuanaco Civilization | Tiwanaku Civilization

तायहुआनाको (तिवानाकु सभ्यता ) के निवासी कौन थे ? आखिर उन्होंने अपने वैभवपूर्ण भवनों को अधूरा क्यों छोड़ दिया ? ऐसे अनेक प्रश्न तापहुआनाको की उजड़ी हुई इमारतों के रहस्य को घेरे हुए हैं । यह वह स्थान है, जहां इंकाओं (Incas) के आने से पूर्व १५वीं शताब्दी ई.पू. में एक महान सभ्यता विकसित हुई थी ।

एक यात्री को किसी भी नये स्थान की यात्रा के दौरान अनेक आश्चर्यो का सामना करना पड़ता है, किन्तु तामहुआनाको के नगर तो स्वयं में ही सबसे बड़ा आश्चर्य है । यह महान आश्चर्य जीर्ण-शीर्ण इमारतों के रूप में है – ऐसी इमारतों के रूप में, जो आज भी अपने अतीतकालीन गौरव की कहानी कहती हैं ।

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टिटिकाका (Titicaco) नहर के बोलीवियाई तट के निकट १३००० फुट की ऊंचाई पर एण्डीज़ (Andes) पठार पर तायहुआनाको (तिवानाकु सभ्यता ) के पत्थर ही इस विस्मृत सभ्यता के एकमात्र गवाह हैं । यहां के भवन वर्गाकार हैं तथा चहारदीवारी के कारण मजबूत भी हैं । स्मारकीय मुख्यद्वारों की ओर जाने वाली सीढ़ियों में से प्रत्येक सीढ़ी पत्थर के एक टुकड़े में से काटी गयी है । इन मुख्यद्वारों में बनी प्रतिमाएं अब शून्य में ताकती हुई प्रतीत होती हैं । यहां के मंदिर तथा महल भी उजड़े हुए प्रतीत होते हैं ।

तायहुआनाको (तिवानाकु सभ्यता ) के संबंध में कोई भी लिखित दस्तावेज प्राप्त नहीं हो सके हैं । प्रतिमाओं पर कुछ लिखा हुआ तो है किन्तु उन पर क्या लिखा है यह कोई नहीं पढ़ सका है । लिखित दस्तावेजों का अभाव होने पर किसी भी सभ्यता का इतिहास जानने के लिये पौराणिक कथाओं का ही सहारा लेना पड़ता है ।

एक रेड इंडियन पौराणिक कथा के अनुसार “किन्हीं अज्ञात दानवों के द्वारा लायी गयी बाढ़ के पश्चात् तायहुआनाको (तिवानाकु सभ्यता ) एक रात में ही निर्मित हो गया था, लेकिन उन्होंने सूर्य के आगमन की भविष्यवाणी की उपेक्षा की और उन्हें सूर्य की किरणों ने निगल लिया । उनके महल राख हो गये।”

स्पेनवासी भी इस पौराणिक कथा में विश्वास करते हैं तथा मानते हैं कि तायहुआनाको (तिवानाकु सभ्यता ) का निर्माण मनुष्यों द्वारा न किया जाकर, दानवों द्वारा किया गया है । इन अनेक विश्वासों ने इतिहासकारों की जिज्ञासा को बढ़ा दिया । आरंभ में कुछ इतिहासकारों ने इस सभ्यता को अमरीका के आदि मानव का पलना कहा । जबकि कुछ इतिहासकारों ने इसे अटलांटिस की राजधानी माना है तथा कुछ ने इसे एक ऐसी रहस्यपूर्ण साम्राज्य की राजधानी माना है, जो इंका (Incas) साम्राज्य के समान महान थी ।

कई दशकों तक खुदायी का काम चलता रहा किन्तु कोई उपयोगी जानकारी प्राप्त नहीं हो सकी । सन् १९३२ में वैडेल सी. बैनेट के नेतृत्व में पुरातत्त्ववेत्ताओं के एक समूह को एक मंदिर के भग्नावशेषों में से एक विशाल मूर्ति प्राप्त हुई । यह मूर्ति २४ फुट ऊंची थी तथा जमीन में १० फुट नीचे पायी गयी थी । इसके अतिरिक्त ८ फुट ऊंची एक अन्य मूर्ति भी पायी गयी, जो लाल बलुआ पत्थर से निर्मित है ।

इस छोटी मूर्ति के प्राप्त होने के कारण अनेक रहस्य उत्पन्न हो गये । इस मूर्ति के चेहरे पर बनी घनी मूछें, अंग्रेजी के “T” के आकार की नाक तथा दाढ़ी ने पुरातत्त्ववेत्ताओं को आश्चर्य में डाल दिया । इसके बाद से उन्होंने इस सिद्धांत को बिलकुल अस्वीकार कर दिया कि तायहुआनाको (तिवानाकु सभ्यता ) का कभी अमरीकावासियों से कुछ लेना-देना था । रेड इंडियनों तथा स्पेन की पौराणिक कथाओं द्वारा प्रतिपादित सभी तर्को को अस्वीकार करते हुए पुरातत्त्ववेत्ताओं के अनुसार यह मूर्ति विराकोचा (Viracocha) नामक दाढ़ी वाले श्वेत ईश्वर की है, जिसने एण्डियन (Andean) संसार की रचना की ।

उनके अनुसार यह देवता तायहुआनाको (तिवानाकु सभ्यता ) में उस व्यापक बाढ़ के बाद प्रकट हुआ था, जो लगभग साठ रातों तक रही थी । इसके अतिरिक्त ऐसे अनेक अवशेष पाये गये हैं, जो स्थिति को और अधिक अस्पष्ट कर देते हैं । प्यूमा पुंका (Puma Punca) को विशालतम भवनों में से एक माना जाता रहा है किन्तु अब इस भवन का कोई भी चिह्न शेष नहीं है । केवल पत्थरों का एक अव्यवस्थित ढेर प्राप्त हो सका है । किन्तु इस विशाल भवन की मजबूती का अनुमान यहां पाये गये उन बड़े-बड़े पत्थरों से लगाया जा सकता है, जो २६ फुट लंबे और १६ फुट चौड़े हैं ।

यहां अनेक मानव-खोपड़ियां भी पायी गयी हैं । किन्तु अभी तक इस बात का निर्णय नहीं हो सका है कि ये खोपड़ियां धार्मिक अनुष्ठानों में बलि चढ़े लोगों की हैं अथवा नहीं ?

सन् १९३० में इस सभ्यता के संबंध में अत्यंत महत्त्वपूर्ण खोजें हुई । अमरीकी पुरातत्त्ववेत्ताओं ने इस सभ्यता के काल को तीन भागों में बांटा है – आरंभिक काल, उन्नत काल तथा हासोन्मुख काल (Early, Classic and Decadent)।

बोलीवियाई विद्वानों तथा पुरातत्त्ववेत्ताओं ने अमरीकी खोजों को ही आगे बढ़ाया । उनके अनुसार ट्रासोन्मुख काल में ही विभिन्न मंदिरों का निर्माण हुआ । इस सभ्यता के विषय में सन् १९६८ तक इसी प्रकार अनुमान लगाये जाते रहे । किन्तु सन् १९६८ में कुछ गोताखोरों ने टिटिकाका झील में डुबकी लगायी । वहां उन्हें मिट्टी तथा कीचड़ से ढकी हुई ऊंची-ऊंची दीवारें मिलीं । इसी के साथ ही अनेक बांध तथा पक्की सड़कें भी मिलीं । इनका निर्माण समानांतर सरंचना में किया गया था ।

इन बांधों तथा सड़कों की नयी खोजों ने रहस्य को और अधिक गहरा दिया । पुरातत्त्ववेत्ता तथा इतिहासकार यह सोचने के लिये विवश हो गये कि या तो इनका प्रयोग अंत्येष्टि क्रिया के लिये किया जाता होगा या फिर इनका प्रयोग महत्त्वपूर्ण लोगों को झील तक ले जाने के लिये किया जाता होगा । ये लोग झील पर जाकर अवश्य ही पूजा-पाठ किया करते होंगे ।

कुछ पुरातत्त्ववेत्ताओं के अनुसार तायहुआनाको (तिवानाकु सभ्यता ) एक पवित्र नगर था । वहा दूर-दूर से अनेक तीर्थयात्री विभिन्न भेटें लेकर आया करते थे । किन्तु ये उपहार तथा चढ़ावे किसी भी प्रकार से अलग-अलग संस्कृतियों के प्रतीत नहीं होते थे । निस्संदेह सभी वस्तुओं की शैली पूर्णतः तायहआनाको की है । इस प्रकार कुछ इतिहासकारों का यह अनुमान कि ये तीर्थयात्री दूर-दूर से आते थे, बिलकुल निराधार सिद्ध हो जाता है ।

तायहुआनाको (तिवानाकु सभ्यता ) एक आवासीय नगर भी था, यद्यपि इसकी जनसंख्या बहुत सीमित थी । वहां की भूमि बहुत उपजाऊ नहीं थी, अतः बड़े पैमाने पर कृषि संभव नहीं थी । संभवतः यही कारण था कि वहां बहुत लोग बस पाये । यहां बसने वालों में से अधिकांश लोग कुम्हार, जुलाहे, लुहार, दस्तकार आदि थे ।

काफी समय तक इस प्रकार का उत्तर नहीं मिल पाया कि आखिरकार भवनों के निर्माण के लिये सामान कहां से प्राप्त किया जाता था ? वहां आसपास न तो चट्टानें थी और न ही खानें, अतः विद्वानों के लिये यह एक रहस्य ही था कि पत्थर कैसे और कहां से प्राप्त किये जाते थे ? किन्तु तायहुआनाको (तिवानाकु सभ्यता ) के भवनों का वैज्ञानिक परीक्षण करके ज्ञात हुआ है कि इन भवनों के निर्माण में चूना पत्थर (Limestone), बलुआ पत्थर (Sand Stone), असिताश्म (Basalt) तथा एण्डीसाइट (Andesite) का प्रयोग किया जाता था । ये सभी पदार्थ ६० से २०० मील की दूरी पर स्थित खानों में उपलब्ध हो जाया करते थे । अतः विद्वानों ने यह निष्कर्ष निकाला कि ये पदार्थ इतनी दूर से किसी वाहन द्वारा लाये जाते होंगे । इस धारणा की पुष्टि वे सड़कें भी करती हैं, जो तायहुआनाको (तिवानाकु सभ्यता ) को अन्य नगरों से जोड़ती थी । इस सभ्यता के अस्तित्व के विषय में उचित जानकारी का अभी भी अभाव है । इस सभ्यता के निवासियों के विषय में अभी भी बहुत कम जाना जा सका है । किसी को यह नहीं पता है कि यह नगर क्यों उजड़ गया ? इस नगर के भवनों को अधूरा क्यों छोड़ दिया गया ? क्या विनाशकारी युद्धों के कारण इस नगर का अंत हुआ ? ऐसा हुआ तो वे युद्ध धार्मिक थे अथवा राजनैतिक ? संक्षेप में, कहा जा सकता है कि हम केवल यह जानते हैं कि ऐसी एक सभ्यता अस्तित्व में आयी थी, लेकिन इसके निवासियों के विषय में हमारे पास कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है ।

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