...

तिओतिहुआकान । Teotihuacan । Teotihuacan Pyramids

तिओतिहुआकान । Teotihuacan । Teotihuacan Pyramids

एजटेकों (Aztecs) द्वारा मैक्सिको पर कब्जा किये जाने से काफी पहले इस नगर में एक ऐसी सभ्यता हुआ करती थी, जो लगभग १००० वर्षों तक अस्तित्व में रही । इसे तिओतिहुआकान (Teotihuacan) सभ्यता कहा जाता था । तिओतिहुआकान का शाब्दिक अर्थ है – “जहां ईश्वर की पूजा की जाती थी।” किन्तु आठवीं शताब्दी ई. तक इस पवित्र नगर का पतन हो गया तथा अंत में यह नगर पूरी तरह से लुप्त ही हो गया ।

जिसने भी एक बार तिओतिहुआकान (Teotihuacan) को देखा हो, वह उन्हें भूल नहीं सकता और यदि भग्नावशेष बोल पाते तो वे निश्चय ही अपनी अद्भुत वास्तुकला, उपयोगी कला, शानदार महलों, वैभवपूर्ण पिरामिडों तथा आदर्श ढंग से बनी सड़कों तथा जनोपयोगी वस्तुओं का निर्माण करने वाले उद्योगों की अतीतकालीन गौरव-गाथा चिल्ला-चिल्ला कर बताते ।

वास्तव में तिओतिहुआकान (Teotihuacan) संस्कृति बहुत ही महान एवं सुस्थापित थी । तिओतिहुआकान मैक्सिको की घाटी में अवस्थित है । ५वीं शताब्दी ई. में यह सभ्यता अपने चरम उत्कर्ष पर थी । दरअसल तिओतिहुआकान मैक्सिको का आध्यात्मिक केन्द्र था । यह नगर अनेक प्रभावकारी पिरामिडों तथा मंदिरों से घिरा हुआ था । यह “पवित्र नगर” संभवतः किसी ऐसे विशाल साम्राज्य का केन्द्र था, जिसका निर्माण एक निश्चित नगर-योजना के आधार पर किया गया था ।

यद्यपि हमें तिओतिहुआकान (Teotihuacan) के बाद की सभ्यताओं के विषय में काफी जानकारी प्राप्त हो चुकी है, किन्तु तिओतिहुआकान के विषय में विस्तृत जानकारी का अभाव ही रहा है । हम वहां के निवासियों के विषय में कुछ नहीं जानते । उन्होंने अपने नगर को कैसे बनाया ? वे कौन-सी भाषा बोलते थे तथा वे अचानक कहां गायब हो गये ? इन सब प्रश्नों के उत्तर किसी के पास भी नहीं हैं ।

उपजाऊ घाटी तथा ज्वालामुखी पर्वतों से घिरे होने के कारण तिओतिहुआकान के निवासियों के पास अपने औजार, उपकरण तथा बर्तन बनाने के लिये पर्याप्त मात्रा में कच्चा माल था । आसपास की खानों में पाये जाने वाले लावा कांच (Obsidian) की प्रचुर मात्रा के कारण ही वहां की कला-कौशल का पर्याप्त विकास हो सका । यह माना जाता है कि जब यह नगर अपनी उन्नति के चरम शिखर पर रहा होगा, तब इसकी आबादी कम-से-कम १५०००० अवश्य रही होगी तथा वहां के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि रहा होगा ।

इस पवित्र नगर की खोज दुर्घटनावश हुई थी । सन् १८८० में फ्रांसवासी डिज़ायर चानें खजानों की खोज में भटक रहा था । इसी दौरान उसे मैक्सिको में तुला डी एलिन्दे (Tula de Allende) नामक स्थान पर एक पिरामिड के अवशेष मिले । उस समय पुरातत्त्ववेत्ताओं ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया । वस्तुतः द्वितीय महायुद्ध तक इस ओर ध्यान दिया ही नहीं जा सका । इसके बाद मैक्सिको के पुरातत्त्ववेत्ताओं ने प्राचीन टोल्टेक (Toltec) नामक स्थान पर परीक्षण तथा खुदायी आरंभ की, जिसका परिणाम अत्यंत आश्चर्यजनक निकला ।

सन् १९४० में संपूर्ण पुरातत्त्ववेत्ता राजकुमार इक्सटिलक्सोशिटल (Ixtilxochitl) के सम्मुख नत-मस्तक हो गये, जो १६वीं शताब्दी के दौरान हुआ था । वह तेज्कुको (Tezcuco) का धर्मदीक्षित युवराज था । वह एक शिक्षित व्यक्ति था तथा उसे मैक्सिकन इंडियनों की धार्मिक प्रथाओं की पूरी-पूरी जानकारी थी । उसने वहां के निवासियों का इतिहास लिखा, किन्तु इस इतिहास को उसके बाद आने वाली पीढ़ियों ने अस्वीकार कर दिया, क्योंकि यह इतिहास उस अस्पष्ट प्रागैतिहासिक युग की ओर वापस ले जाता था, जब तुला (Tula) नगर [वर्तमान नाम तोलन (Tollan)] में टोल्टेक लोग (Toltec) रहते थे ।

इक्सटिलक्सोशिटल ने उनके विषय में असामान्य कहानियां लिखीं । उसके अनुसार वे लिखना जानते थे, उन्होंने पंचांग बनाये तथा राजमहलों तथा मंदिरों का निर्माण किया । उसने यह भी लिखा कि उनके कानून न्यायपूर्ण थे, उनका धर्म कठोर नहीं था तथा वे ५०० वर्ष तक शांतिपूर्वक रहे । किन्तु शताब्दियों तक किसी भी उसके इस वृत्तांत पर विश्वास नहीं किया । अंततः सन् १८८१ में चानें ने इस वृत्तांत पर विचार किया और उसे युवराज इक्सटिलक्सोशिटल के इतिहास में सच्चाई नजर आई । किन्तु तब भी चानें पर भी किसी ने विश्वास नहीं किया । सन् १९४० में आकर पुरातत्त्ववेत्ताओं ने अपनी आंखों पर चढ़ा रंगीन चश्मा उतारा और इक्सटिलाक्सोशिटल के इतिहास की सच्चाई को पहचाना । उन्होंने टोल्टेक लोगों के प्रथम नगर तुला को खोज लिया । उन्हें सूर्य तथा चन्द्रमा के पिरामिड भी मिले । उन्हें उभारदार नक्काशी तथा मूर्तियों के सुन्दर नमूने भी मिले ।

टोल्टेक पिरामिडों के अचानक खोज लिये जाने के बाद तीन दशकों तक लगातार खुदायी का काम चलता रहा । मैक्सिको नगर के मध्य में पुरातत्त्ववेत्ताओं ने महान टियोकली (Teocalli) की खोज के लिये खुदायी शुरू की । यह खुदायी मैक्सिको में २७ मील उत्तर-पूर्व की ओर की गयी और परिणामस्वरूप अब तक खोजे गये पिरामिडों का सबसे बड़ा मैदान मिला । यह मैदान प्राचीन टोल्टेक संस्कृति का सबसे शानदार अवशेष माना जाता है । उन्होंने तिओतिहुआकान(Teotihuacan) नाम का नगर खोजा जिसका अर्थ है-“जहां मनुष्य, ईश्वर बन जाते हैं।”Teo’ शब्द का प्रयोग ‘ईश्वर’ के अर्थ में किया गया है । भग्नावशेषों से युक्त इस मैदान का, जो भाग सामने आया, उसका क्षेत्रफल ७.६ वर्गमील है तथा इससे भित्तिचित्रों से सुसज्जित निचले भवन पाये गये । बड़े-बड़े सीढ़ीदार पिरामिडों की मुख्य विशेषता उनमें बनी सीढ़ियां हैं तथा ये पिरामिड १२८ फुट ऊंचे बने हुए हैं । इनके अतिरिक्त वहां मृत व्यक्ति के साथ रखे जाने वाले मुखौटे भी मिले तथा मैक्सिको के गौरवपूर्ण युग के चिह्न के रूप में उत्तम कोटि के मिट्टी के बर्तन भी प्राप्त हुए । इस प्रकार से इस महान सभ्यता की खोज हुई ।

इतिहासकारों के अनुसार तिओतिहुआकान की सभ्यता का विकास तिओतिहुआकान तथा मैक्सिको की घाटियों की स्थानीय आबादी में से ही हुआ । किन्तु उनके बाद आने वाले एज़टेकों ने अपने पौराणिक महाकाव्यों तथा वृत्तांतों में अपने से पहले वाली उस जाति को ‘टोल्टेक जाति’ कहा है । एज़टेकों के अनुसार, ‘टोल्टेक’ का अर्थ ‘दक्ष कारीगर’ है ।

एज़टेकों द्वारा प्रतिपादित इस अर्थ को पूर्णतः अस्वीकार नहीं किया जा सकता । तिओतिहुआकान के निवासी वास्तव में ही दक्ष कारीगर थे । उनके पिरामिड तथा दस्ताकारी एज़टेकों द्वारा दी गयी इस पदवी का ही प्रतिपादन करते हैं ।

तिओतिहुआकान नगर एक विस्तृत ज्यामीतिक (Geometrical) आधार पर बनाया गया था । इस नगर की योजना समकोणों पर एक-दूसरे को काटती हुई दो विशाल वीथियों द्वारा की गयी थी । मुख्य सड़क को मृत व्यक्तियों की वीथि (Avenue of the Dead) कहा जाता था । यह उत्तर से दक्षिण की ओर जाती थी । इसकी लंबाई एक मील तथा चौड़ाई कहीं-कहीं १४० फुट तक थी । एज़टेक वृत्तांतो में ‘मृत व्यक्तियों की वीथि’ नाम का उल्लेख किया गया है । इसे यह नाम इसलिये दिया गया था क्योंकि इस वीथि पर बहुत सी कब्रें बनी हुई हैं । किन्तु बाद में हुई खुदाइयों से कुछ और ही ज्ञात हुआ । पिरामिड के आकारों के इन प्लेटफार्मों का ऊपरी भाग सपाट था, जिन पर मंदिर बनाये गये थे ।

मृत व्यक्तियों की वीथि के उत्तर में सूर्य का प्रसिद्ध पिरामिड है । पुरातत्त्ववेत्ताओं की गणना के अनुसार इस पिरामिड के निर्माण में कम-से-कम ५० वर्ष अवश्य लगे होंगे । इसे पहली शताब्दी ई. में पूरा किया गया । इसके सामने एक लाल ज्वालामुखी चट्टान है । यह पिरामिड २१६ फुट ऊंचा है तथा इसका निचले भाग का क्षेत्रफल ७६०X७६० फुट है। यह माना जाता है कि इसका निर्माण सृष्टि के केन्द्र के रूप में किया गया होगा । इसमें एक वर्ग के कोनों में एक मुख्य बिन्द से युक्त चार बिन्दु बनाये गये हैं । मुख्य बिन्दु जीवन के केन्द्र अर्थात् हृदय का द्योतक है । इसी बिन्दु पर विरोधी शक्तियां मिलती हैं तथा एक हो जाती हैं ।

मृत व्यक्तियों की वीथि के उत्तरी छोर पर चन्द्रमा का पिरामिड है । यह सूर्य के पिरामिड से छोटा है, किन्तु इसकी शेष बनावट उसी प्रकार है । इस नगर का तीसरा प्रमुख स्मृति-चिह्न नगर-दुर्ग (Citadel) है । ऊंचाई पर बने मंदिरों से घिरे इस स्थान का प्रयोग पूजा-स्थल तथा तिओतिहुआकान धर्माधिकारियों के प्रशिक्षण केन्द्र के रूप में किया जाता होगा ।

इन राजसी पिरामिडों के अतिरिक्त क्वेट्जलकोट्ल (Quetzalcoatl) का मंदिर भी पाया गया है । क्वेट्जलकोट्ल शब्द का अर्थ परों वाला सांप है, जो एक इंडियन (Indian) देवता हुआ करता था । इसे परों वाला सर्प इसलिये कहा गया है । क्योंकि इसके मध्य अमरीका का एक सुन्दर पक्षी क्वेट्जल (Quetzal) के समान पंख है तथा सांप का शरीर है । इस मंदिर की दीवारों तथा ढलानों के चारों ओर बनी उभरी आकृतियों के सिर क्वेट्जल तथा वर्षा के देवता के हैं ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Seraphinite AcceleratorOptimized by Seraphinite Accelerator
Turns on site high speed to be attractive for people and search engines.