समुद्रतल की खोज यात्राएं | Undersea Explorations

Undersea Explorations

समुद्रतल की खोज यात्राएं | Undersea Explorations

अनेक पुरुषों और महिलाओं ने धरती के कोने-कोने तक यात्राएं कर डाली हैं । इतना ही नहीं मानव पर्वतों की विशाल चोटियों तक जा पहुंचा है । रेतीले रेगिस्तानों को पार कर चुका है और भयानक नदियों की खोज-यात्राएं कर चुका है । वह अंतरिक्ष में स्थित ग्रहों तक भी जा पहुंचा है लेकिन अभी सागर की विशाल गहराइयों के विषय में बहुत कुछ जान लेने के बाद भी उसका ज्ञान संकुचित है ।

समुद्र की तलहटी पर जाना अत्यंत जोखिम का काम है क्योंकि अपार जलराशि के नीचे भांति-भांति के जीव-जंतु, पेड़-पौधे, चट्टानें और पहाड़ हैं । सागर के अंदर ऐसे अनेक जंतु हैं जिनकी आंखों से प्रकाश निकलता है और उनके शरीर से बिजली पैदा होती है । वहां कुछ ऐसे भी जीव हैं जिनके शरीर के बटन जैसे अंग हीरे-जवाहरात की तरह चमकते रहते हैं । सागर के अंदर गहरायी के साथ-साथ अंधकार भी बढ़ता जाता है । अतः सागर की गहराइयों में उतरकर खोज-यात्राएं करना काफी कठिन कार्य है ।

ढाई मील की औसत गहराई वाले सागरों का क्षेत्रफल धरती से कहीं ज्यादा है । समुद्रतल भी धरती की भांति ही ऊबड़-खाबड़ है और वहां एवरेस्ट से ऊंचे पहाड़ और ग्रैंड-कैनयन (Grand-canyon) से भी अधिक गहरे गड्ढे हैं ।

निःसंदेह ही मानव की प्राचीनकाल से ही समुद्र की तलहटी के विषय में जानने की इच्छा रही है लेकिन जल के अंदर की कठिनाइयों तथा खतरों के कारण वह इस प्रयास को करने से घबराता है । कुछ वर्ष पहले तक मानव के पास में समुद्र की पानी में उतरने को तैयार बैथिस्फीयर गोताखोरी के लिए आधुनिक किस्म के उपकरण थे । यद्यपि लिखित प्रमाणों के अनुसार आसारिया (Assyrians) के लोग लगभग ३००० वर्ष पहले समुद्र में गोताखोरी किया करते थे लेकिन यह कार्य जिंदगी को दांव पर लगाने के समान था ।

समुद्र की वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यात्रा करने वाले अनेक व्यक्तियों में से चार्ल्स वाइविल थॉमसन (Charles Wyville Thomason) एक थे ।

सन् १८६० के दौरान वह एक सूट पहनकर समुद्र में ३६०० फुट की गहरायी तक गये और अनेक प्रकार के जंतुओं तथा पौधों का अध्ययन किया । सन् १८७२ में चैलेंजर नामक जलयान पर समुद्र की गहराइयों से संबंधित उद्देश्यों के अध्ययन के लिए उसने यात्रा आरंभ की । वह वैज्ञानिकों के एक दल का अगुआ था । उसकी इस यात्रा का उद्देश्य था समुद्र की गहराइयों में जाकर वहां के पेड़-पौधों और जंतुओं के विषय में जानकारी प्राप्त करना । सन् १८७४ और १८७५ के दौरान इन्होंने चीन सागर की गहरायों के विषयों में जानकारी प्राप्त की । चार्ल्स वाइविल थॉमसन ने पता लगाया कि इस सागर के एक स्थान पर इसकी गहराई ४५७४ फैदम (एक फैदम बराबर छह फुट) थी । यात्रा पूरी करने के बाद चार्ल्स वाइविल थॉमसन २४ मई, १८७६ को वापस लौटा ।

थॉमसन और उसकी टीम ने समुद्र की १८००० फुट गहराइयों तक जाकर अनेक जंतुओं, पौधों और खनिज पदार्थों के नमूने एकत्रित किये । चैलेंजर की यात्रा की सफलता के बाद अनेक लोगों को समुद्र की गहराइयों में जाने की प्रेरणा मिली । समुद्र की गहराइयों में उतरने वाले उपकरणों में काफी सुधार हुए । सन् १९३४ में डॉ. विलियम बीबे (William Beche) और ओटिस बार्टन (Otus Barton) समुद्र की गहराइयों में बेथिस्फीयर (Bathysphere) नामक गोताखोर यान द्वारा गये | यह स्टील से बना हुआ गोलाकार यान था जो एक केबल (Cable) की सहायता से समुद्र में नीचे जाता था । दोनों यात्री इस यंत्र द्वारा ३००० फुट की गहरायी तक जा सके । वे और भी अधिक गहरायी में जा सकते थे लेकिन केबल टूटने के डर के कारण इन्होंने और जोखिम नहीं उठाया ।

इसके पश्चात् औगस्टे पिकार्ड (Auguste Piccard) नामक स्विम वैज्ञानिक ने समुद्र की गहराइयों के अध्ययन के लिए वैथिस्केफे (Bathyscaphe) नामक यान बनाया जिसकी सहायता से सन् १९४८ में वह १७३२ फैदम की गहरायी तक समुद्र के अंदर जा सके । इस यंत्र में किसी केबल की आवश्यकता नहीं पड़ती थी । इसमें एक केबिन था जिसमें आदमी बैठ सकते थे । पानी की मात्रा को नियंत्रित करके यान की गहरायी निश्चित की जाती थी । इसकी पिकार्ड के एक साथी डोनाल्ड वाल्श (Donald Walsh) ने २३ जनवरी, १९६० सहायता से समुद्र की तलहटी का अध्ययन सुविधापूर्वक कर ३५७८४ फूट की गहरायी तक जाने का विश्व कीर्तिमान स्थापित किया । यह यंत्र सागर की गहराइयों के अध्ययन के लिए बहुत ही लाभदायक सिद्ध हुआ ।

प्रो. पिकार्ड के साथ जैक्स कॉस्ट्यू भी कार्यरत थे । वह फ्रांस की जलसेना के एक अफसर थे तथा पूरे जीवन भर सागर की गहराइयों के अध्ययन से संबंधित यात्राएं करते रहे । वैसे तो उन्होंने सागर तल के अध्ययन के लिए दूसरे महायुद्ध के बाद सन् १९४६ में ही एक अनुसंधान दल की स्थापना कर दी थी लेकिन उनका मुख्य कार्य सन् १९५१ में शुरू हुआ । सन् १९५१ में २१ वैज्ञानिकों के दल के साथ कैलिपसो रेड सी (Calypso Red Sea) अभियान आरंभ हुआ । काउस्टेड इस अभियान दल के डायरेक्टर थे । उन्होंने चार वर्ष के अभियानों में ट्यूनिशिया के तट के पास ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी का डूबा हुआ एक प्राचीन रोमन जहाज खोज निकाला ।

सन् १९६२ में काउस्टेड और उनके मित्रों ने समुद्र की गहराइयों में उतरने वाला एक विशेष यान बनाया । इस यान में सोने के लिए बिस्तर, भोजन बनाने के लिए कुकर, टेलीफोन और अन्य सुविधाएं उपलब्ध थीं । इस यान की सहायता से उन्होंने सागर की गहराइयों में लंबी अवधि तक रहने के परीक्षण किये । सन् १९६३ में काउंस्टेड और उनके साथी ३० दिन तक लाल सागर की तलहटी पर रहे । इसी प्रकार १०० मी. गहरायी पर भूमध्य सागर में २२ दिन तक रहने का कीर्तिमान काउस्टेड और उसके छह अन्य साथियों ने स्थापित किया। काउस्टेड अपने पूरे जीवनकाल में समुद्र की गहराइयों में ठीक उसी प्रकार की बस्तियां बनाने के स्वप्न देख रहे थे , जिस प्रकार की बस्तियां मानव अंतरिक्ष में बनाने के स्वप्न देख रहा है ।

सन् १९६९ में सागर की अतुल संपदा से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी की गयी । इसके बाद सागर की गहराइयों से अनेक चीजें प्राप्त की गयीं । ब्रिटेन ने समुद्री खोजों के लिए बाकस (Bacchus) नामक यान बनाया, जिसमें आदमी रह सकते थे । विश्व के अनेक देशों ने समुद्र की तलहटियों के अध्ययन करके अनेक रहस्यों का पता लगाया । अंत में यह कहना अनुचित न होगा कि सागर की तलहटी को खोजने में अनेक खतरे हैं लेकिन यह तय है कि इन खोजों से होने वाले लाभ निश्चय ही अंतरिक्ष अभियानों से अधिक होंगे। सागर की तलहटी के तेल भंडारों और प्राकृतिक गैस का तो हम प्रयोग कर ही रहे हैं लेकिन ऐसा जान पड़ता है कि निकट भविष्य में अंतर्जलीय खेती भी होने लगेगी ।

अमरीका की एक कंपनी ने तो प्रशांत महासागर की तलहटी में सोने की भी खोज डाली है । आज समद्र की तलहटी की खोज के विषय में मानव की रुचि बहुत अधिक बढ़ गयी है और दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है ।

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