तानसेन का इतिहास | Tansen
तानसेन का जन्म १५३१-३२ में किसी समय
ग्वालियर से २७ मील दूर बेहट गाँव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
संगीत की उसकी आरम्भिक शिक्षा ग्वालियर में हुई जिसकी उच्च श्रेणी के हिन्दू संगीत
में अपनी परम्परा थी। गायक के रूप में तानसेन को अपार ख्याति मिली है।
कहते हैं, वृन्दावन
के एक साधु संगीतज्ञ हरिदास ने भी तानसेन को संगीत की
शिक्षा दी थीं। उन्होने
भाटा (आधुनिक रीवां) के राजा रामचन्द्र के यहां दरबारी
संगीतकार के रूप में सेवावृत्ति प्रारम्भ की। उच्च कोटि का गायक होने के कारण उन्हे यहीं
तानसेन की उपाधि मिली ।
१५६२ में जब अकबर ने उस राज्य पर आक्रमण किया
तब तानसेन को वहाँ से खींच लाया गया। बदायूनी के विवरण के अनुसार “तानसेन
अपने हिन्दू आश्रयदाता को छोड़ना नहीं चाहता था । अन्त में, जलाल-खी-कूर्ची
(एक
मुस्लिम सेनापति) ने आकर उसे अपना कर्तव्य समझने को विवश किया।” तानसेन को
प्रायः इस बात के दृष्टान्त के रूप में पेश किया
जाता है कि अकबर संगीत को कितना प्रोत्साहन देता था, परन्तु
यह एक झूठा दावा
है। अकबर के दरबार में लाए जाने से पहले भी तानसेन एक सफल संगीतकार था ।
अकबर की आक्रामक सेनाओं से बचने के लिए
रामचन्द्र को पुरुषों, महिलाओं, सोना, हीरे-जवाहर
और घुड़सवार एवं पैदल सैनिकों सहित तानसेन को भी अकबर को समर्पित करना पड़ा, उस
समय तानसेन फूट-फूट कर रोया ।
अकबर के दरबार में जाकर तानसेन बहुत दुःखी
था। पुरातन पंथी हिन्दू तानसेन से अलग हटते थे और मुसलमान उसे मियाँ कहकर पुकारते
थे । इस तरह इतिहास में तानसेन को मुसलमान के रूप में पेश किया गया है यद्यपि वह
जीवन के अन्तिम क्षण तक हिन्दू रहा । एक विदेशी शासक के दरबार में विवश होकर
छब्बीस वर्ष तक संगीत-सेवा करने के बाद उसकी मुत्यू १५८८ में हुई, उसका
शव ग्वालियर क़िले के समीप मुहम्मद गौस के मजार के पास है ।