वीरबर
(बीरबल) का इतिहास
Veerbal | Beerbal
वीरबर को सामान्य बातचीत में बहुधा बीरवल कहा
जाता है । दोनों शब्द एक-दूसरे से बहुत भिन्न हैं । वीरबर शब्द का अर्थ है श्रेष्ठ
योद्धा और बीरबल शब्द का अर्थ है योद्धा की शक्ति ।
समकालीन मुस्लिम इतिवृत्तों में बीरबर शब्द
का प्रयोग किया गया है। वीरवर का जन्म १५२८ मे एक निर्धन ब्रामहन
परिवार में हुआ था। उसका मूल नाम महेशदास था | छोटी आयु में वह
अम्बर के राजा भगवानदास के सेवकों में सम्मिलित हो गया था | जब
अकबर गद्दी
पर बैठा तब भगवानदास ने वीरवर उसे दिया । उस समय महेशदास अपने-आपको ब्रह्मकवि कहा
करता था |
अकबर के दरबार में
वह एक बहुत छोटे पद से उन्नति करता हुआ इस बड़े पद पर
पहुँच गया था क्योकि अकबर ने वीरबल के रूप में ऐसे एक व्यक्ति को देखा जो उसके
आदेश पर कोई भी काम कर सकता था और जो सब कलाओं में सिद्धहस्त था । अन्दुल रहीम की
तरह महेशदास भी कविताएं बनाकर अकबर का मन बहलाया करता था। १५७४ में उसे नगरकोट के वैध
शासक जयचन्द के स्थान पर नगरकोट का शासक बनाने का प्रयत्न किया गया । अकबर के लिए
यह एक साधारण नीति थी
कि वह किसी हिन्दू राजा के राज्य को छीनकर उस पर अपनी किसी कठपुतली को राज्याधिकार
दे देता था और मुस्लिम सत्ता के बल पर उसे शासक हिन्दू राजा के प्रतिद्वंदी
के रूप में खड़ा कर देता था ।
इसी नीति
के अनुसार वीरबर को उकसाया गया कि वह नगरकोट का राजा कहलाना चाहता हो तो उस राज्य
के विरुद्ध युद्ध-अभियान करे। वीरबर ने इस अभियान का नेतृत्व किया, जिसमें
नगरकोट के मुख्य मन्दिर की पवित्र हिन्दू मूर्ति और उसका छत्र मुसलमानों की लूट का
शिकार हुए। ऐसे अत्याचार करने के बाद भी वीरबर को नगरकोट का राजा न बनाया जा सका।
सांत्वना देने के लिए कुछ सोना और कालिंजर में एक जागीर देने का प्रस्ताव किया गया।
परन्तु उसे इसका भी आनन्द लेने का अवसर नहीं दिया गया ।
१५८३ में उसे आदेश मिला कि उत्तर-पश्चिमी
सीमांत पर यूसुफजई अफगानों के विद्रोह को दबाने के लिए प्रस्थान करो। इस अभियान के
दौरान उसकी हत्या करा दी गई ।
अकबर-बीरबल बिनोद के बारे में जो कहानियाँ
भारत में प्रचलित हैं, वे किसी चतुर लेखक द्वारा गढ़ी
गई हैं और दूसरे लेखकों ने समय-समय पर उनकी संख्या में वृद्धि की है और उन्हें
अकबर-बीरवल की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि देने का प्रयत्न किया है । असली बीरवल का जीवन
हँसी और कविता से बहुत दूर जघन्य, खतरनाक और
अत्यधिक घृणित था ।