श्री गोविन्द चरण कर । Govind Charan Kar

श्री गोविन्द चरण कर । Govind Charan Kar

श्री गोविन्द चरण कर बंगाल प्रान्त के सुदूर पूर्व ढाका ज़िले के रहने वाले थे । ये पुराने क्रान्तिकारी थे । सोलह-सत्रह वर्ष की उम्र में ही पढ़ना छोड़ कर ये क्रान्तिकारी दल में सम्मिलित हो गये । कुछ दिनों बाद पुलिस की दृष्टि इन पर पड़ी और सन् १९१० से ही वह इनके पीछे पड़ गयी । ये बड़ी सावधानी से काम करते रहे । पर अन्त में १६१६ में पुलिस ने इन्हें गिरफ्तार कर ही लिया । पर ये सहज ही गिरफ्तार न हुए । पुलिस के साथ बड़ी देर तक लड़ते रहने के बाद गिरफ्तार हुए । जब ये गिरफ्तार हुए, तब अर्ध मृत और प्रायः बेहोश अवस्था में पाये गये । चलनेकी शक्ति नहीं थी, बदन की जगह-जगह से खून की धार बह रही थी । पर गिरफ्तारी क्व वक्त इनके पास हथियार का कोई नामोनिशान भी न था । यह पूछने पर कि तमच्चा कहा है ।” इन्होने आश्चर्यचकित होकर कहा, – तमच्चा कैसा में तो गोली चलाना भी नही जनाता । मैं अभी तक तो आप लोगों की ही गोलियों की बौछार से भयभीत हु “ । पुलिसवाले ढुँदते- ढुँदते थक गये । पर तमच्चे का कुछ भी पता न चला ।

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गिरफ्तारी के बाद गोविन्द चरण कर बहुत दिनों तक हिरासत के अस्पताल में रखे गये । अच्छे हो जाने के बाद उन पर “पबना शूटिंग केस” चला । इस मुकदमे से बंगाल में बड़ी खलबली मच गयी थी । पुलिस ने उन पर हत्या करने की कोशिश करने की दफा लगवानी चाही; पर पास में हथियार न पाए जानेके कारण कुछ भी हो न पाया । फिर भी इन्हें दस साल काले पानी की कैद की सजा हुई ।

काले पानी में गोविन्द चरण कर कई साल रहे । उन दिनों अंडमान में क्रान्तिकारियो की भरमार थी । अधिकारियो के सब अत्याचारों के रहते हुए भी कर महाशय का कहना है, कि वहाँ का जीवन बड़ा आदर्श था । वहाँ बडे-बड़े विद्वान एकत्र थे । सम्पाद्कों और लेखकों की कोई कमी न थी । देश-पूज्य सावरकर, भाई परमानन्द वगैरह सब वहीं थे । कहने का मतलब यह, कि एक रास्ते पर चलने वाले बहुत से सिद्धान्तवादी मुसीबत के कारण सौभाग्यवश एक स्थान पर एकत्रित हो गये थे । समय की कोई कमी नहीं थी । किताबो के पार्सल बराबर पहुँचते रहते थे । वहाँ एक पुस्तकालय बन गया था । सरकार तो यह समझती थी, कि वह अपने शत्रुऔ की शक्ति उन्हें वहाँ बन्द कर कुचल रही है, पर वास्तव में ज्यादातर लोग वहाँ अपना भविष्य-निर्माण कर रहे थे । कर महाशय ने वहा काफी अध्ययन किया । वे अपने उस यौवन को सदा याद किया करते, तथा काकोरी केस में हवालात में समय अण्डमान राजनीतिक कैदियो के जीवन की अनेक जानने लायक बाते वे बडी ही रोचक ढंग़ से दूसरे साथियो से कहा करते थे । इनकी इन बातों के सुनने से लोग कमी ऊबते न थे ।

अभी पूरे चार साल भी न हो पाये थे, कि अस्वस्थता के कारण १९२० में ये रिहा कर दिये गये । वहाँ से लौटते ही गोविन्द चरण कर ने असहयोग आन्दोलन में भाग लेना शुरू कर दिया । गोविन्द चरण कर ने ढाके के गाँव-गाँव में बहुत प्रचार-कार्य किया । ढाका कांग्रेस कमेटी में इनका काफी प्रभाव था । इस जमाने में भी दिन रात सी.आई.डी.पुलिस इनके पीछे लगी रहती थी । सन् १९२५ में श्री शचीन्द्र नाथ सान्याल और श्री योगेश चन्द्र चटर्जी की गिरफ्तारी के बाद संयुक्त-प्रदेश के विप्लव आन्दोलन को ठीक तरह से चलाते रहने के उद्देश्य से इन्हें बंगाल से उधर भेजा गया । संयुक्त-प्रान्तके बड़े-बड़े शहरों में घूम कर गोविन्द चरण कर ने षड़यन्त्रकारी आन्दोलन का प्रचार भी किया । इस केस मे इनकी गिरफ्तारी लखनऊ में हुई ।

अमीनाबाद के पास एक मामूली होटल में रहा करते थे । यहाँ रहने का पता केवल एक देश-भक्त महाशय को मालूम था, जिन्होंने विश्वासघात करके पुलिस को पता बतलाकर, इन्हें गिरफ्तार करवा दिया । इनकी गिरफ्तारी के बाद यह भी पता लगा, कि उधर बंगाल सरकार ‘आर्डिनेन्स’ के द्वारा इन्हें अपना मेहमान बनाने के लिये अलग परेशान थी । गोविन्द चरण कर को सेशन जज ने दस साल की सज़ा दी थी । परन्तु पुलिस को इससे क्यों संतोष होने लगा ? उसने औरों के साथ इनकी भी सज़ा बढ़ाने के लिये अपील की और अपील से इन्हें आजन्म काले पानी की सज़ा दी गयी । काकोरी केस के हवालातियों में श्रीकर सबसे अधिक उम्रवाले होते हुए भी अपने को ‘लड़ाका’ और ‘योद्धा’ कहने में गौरवान्वित होते थे । पहली बार की गिरफ्तारी के समय के, पुलिस की गोलियाँ के तीन-चार चिह्न अब भी इनकी देह में बने हुए थे ।

गोविन्द चरण कर का जीवन लड़कपन से ही त्यागमय और कठोर रहा था । इन्होंने पंजाब तथा बम्बई प्रान्त के प्राय: सभी नगरों में भ्रमण किया था । कई प्रकार के उद्योग, धन्धों को भी ये अच्छी तरह जानते थे । हवालात में इन लोगों का जो जमाव होता, उसमें ये बहुत प्रमुख भाग लेते थे । हवालात के समय लखनऊ में १५ दिनों तक, और सज़ा के बाद फतेहगढ़ जेल में ४५ दिनों तक इन्होने अनशन किया था । पहले कुछ दिनों तक ये ढाका हिन्दू-सभा के मन्त्री भी रह चुके थे ।

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